पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७०६

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तुलाधेट-तुलाधरमदान तुलावट ( पु.) तुलाय तौलनाये घटः। तुलाधार तथा या प्रयन, विषुवम क्रान्ति, व्यतीपात, दिनक्षय, दण्ड, तराजको डंडो जिसमें रसो बधो रहती है। युगादि, मन्वन्तगदि, मक्रान्ति, पोर्ष मामी. हादशो, तुलाधर (म.पु.) तुलाया मान दण्डस्य धरः -प्रच। पटका पादिमें किया जाता है। ममार-भयभोरको . १ वाणिजक, वनिक धर्मापुरुष । २ तुलाराशि । ३ तीर्थ, यह, वन, तडाग अथवा मनोन स्थानमें यह सूर्य । ४ तला गुग्ण, तराको डोरो । (त्रि.) " तुला- महादान करना होता है। जोवन पनित्य है, धन दण्ड धारक, तराजको पकडनेवाला। अत्यन्त चञ्चल है। ऐसा जान कर-इस दाममें हाथ डाले। तुलाधार (स• पु० सुखा-प्रण । १ सलाराशि । २ तुला. पुण्यतिथिम ब्राणको निर्दिष्ट कर मण्डप प्रस्तुत करे गुग्म, तराजको डोरी जिसमे पलडे धे रहते। और उसमें सासाथ तोरण एवं चारों भोर चार कुण्ड वाराणसीनिवासो एक व्याध। यह सदा माता पिता- पोर पूर्ण कुम्भ स्थापन करें। इसके पूर्वोत्तर में एक हाथ को मेवामें तत्पर रहता था, इमो पुण्यसे यह सर्वदर्शी को वेदो बनावे . दम वेदोमें यहादि ब्रह्मा, शिव, पाथा। तबोध नामक एक व्यक्ति जब इनके सामने पथ तपादि देवताओंको पूजा फल, वस्त्र और मालाम पाया तब उसने उसका समस्त पूर्व वृत्तान्त कह सुनाया। बरनो होतो है। ब्रह्मा, शिव और पातको पूजा रस पर उस वालिने भी माता पिता की सेवाका ब्रत ले प्रतिमा तथा पन्य देवतापोंको पूजा डिलमें लिया। हद्धर्मपु. ३ अ.) ४ वाराणमो निवासो बषिक, करते हैं। मान महर्षि जालिको मोक्षधर्म का उपदेश दिया साल, दो, चन्दन, देवदार, योपों पोर विल्व था। (भारत १२।२६० अ०) पादि लकड़ियोंको एक तुला बनानो होतो है। तुला. तुम परीक्षा (सं• स्त्रो०) अभियुक्तों का एक परोक्षा। दण्डको ऊँचाई ५ हाथ और बोचमें चार थका प्राचीन कालमें यह अग्निपरीक्षा विष-परोक्षादिके फासला रहे। तुनाशो सोकर लोहेको होनी चाहिये। ममान प्रचलित थो। रमको परोक्षा इस तरह थो - एक उसे सुवर्ण युक्त रत्नमाला, माल्यविलेपन प्रादिसे विभू. सले स्थानमें याकाष्ठको एक बड़ोसो तुला खड़ो को पित कर उममें पांच को पांच पताका लगा देनी जातो और चारों भोर तोरण प्रादि बांध जाते थे। फिर चाहिये । मध्य-पाठ पूर्वक देवताओंको पूजा करते थे पोर पभि- सदानमें विधान दच वेदविद बाबण नियुक्त रहे। थुलाको एक बार तराजू के पलड़े पर बिठाकर महोपादिसे ऋग्वेदो होनेसे पूर्व को और यजुर्वेदो होनेसे दक्षिाको तोल लेते थे। फिर उसे उतार कर दूसरी बार तोलते मोर, सामवेदी होनेमे पश्चिमकी और नया अथर्ववेदी थे। यदि पलड़ा कुछ भुक जाता था, तो अभियुक्त दोषो होनेसे उत्तरको भोर दो ब्राह्मणों को रखना होता है। समझा जाता था। पोछे विनायकादि लोकपाल, पादत्वादि ग्रहगण, तुलापुरुष (सं .) एक प्रकारका व्रत। इसमें ब्रह्मा पादि देवताओं की पूजा करते और स्वस्व मन्त्र पिण्याक (तिलको खलो), भात, मवा, अस पौर सत्त हारा होम चतुष्टय जपसूता पादि यजमामके साथ यथा म से प्रत्येकाको कामयः तोन तोम दिन तक खा कर । विहित मन्बहारा करते है। पोछे टेता और ऋत्विको. पन्द्रह दिनों तक रहना पड़ता है। यमने से २१ को हिमभूषण दान देते है। जापागण यान्तिक हिमोजा व्रत लिखा है। इसका पूरा विधान यात्रवस्या, अध्यायका जप करते पोर मादि अन्त पौर मध्यम प्राधण शारीत पादि स्मृतियों में पाया जाता है। खस्तिवाचन करते है। सुखापुरषदान (सं.सो. ) तुलापुरुषस्य तुलास्थित पुरुष- बाद तीन बार तलाको प्रदक्षिण कर पुष्पाञ्चालिसे भारसम परिमित व्यस्य दान तत् । षोड़श महादान के समन्बासे उसे प्रामन्नण करते.- . अन्तगत दानविशेष, सोलह प्रकारके दानोमसे "नमस्ते सर्वदेवानी शक्तिस्त्वं शक्तिमास्थिता। . .एक दान। यह सब हामीले प्रधान और पादिदान साक्षीभूता बगडात्रा निमिता विश्व योनिना।"