पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७५४

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मनिव-वैचिसय जनियर (म.बी.) एक प्रकारको छोटो वोणा। ५ पराक्रम। परोरको वह पति जो पाहारको त जस (सलो .) तेजसो विकारः तेजस प्रण। रस और रसको धातुमे परिणत करती। १कृत, घो। २ धातु द्रथमा । (मनु ५१११) ३ तोथं . (पु.)७ सूक्ष्म शरोर व्यध्य पशिस चैतन्य । (वेदाम्तमा०) विशेष। (भारत ४१०१) ८ सुमतिके एक पुत्रका नाम। (ब्राडपु. १६ अ.) ४ सांस्योल रजोगुणोत्तम एकादशेन्द्रियादि। ८ बहुत तेज चलनेवाला घोड़ा। १० भगवान् । ११ एक "सात्विक एकादयः प्रवर्तते बारादह कागत् । प्रकारको शारीरिक पति या पति, पाहारको रसमें भूतादेस्तम्मान: मतामसस्त असादुभय॥" और रमको धातुमें परिणत करतो है । (त्रि.) १२ तेज- (सांख्यका० २५) सम्बन्धो, जसे उत्पन। बस (पर्धात् सात्विक प्रहार ) मे एकादशक तेजसावत'नो (म. स्त्रो. : पावततेऽत्र पाहत- य.ट. (पात एकादयन्द्रिय), सामममे तन्मात्र और तेजससे स्त्रियां डोप, जसाना पावर्तनो। मूषा, चांदो सोना दोनों से प्रवर्तित होते। परकारका जब सात्विक गलानको परिया। चय प्रवल होता है, तब उसको वैजत संसा होतो सैजसो ( खो.) गजपिप्पलो । १. फिर उसे सात्विक अनार कहा जा सकता है। तल (म.पु. ) ऋषिभेद, एक ऋषिका नाम । सात ( मात्विक ) पहारसे हो एकादश इन्द्रियों- तैतिक्ष (स' वि०) तितिक्षा गोलमस्य, तितिक्षा एवादि को उत्पत्ति हुई है। इसलिये इन्द्रियोंमें सत्वांश वाप। तितिक्षाशोल, समाशाल । अधिक होने के कारण वे अपने विषयको ग्रहण करनमें तैतिक्ष्य (स.पु..स्त्री.) तितिक्षस्य ऋषः गोवापत्य समर्थ होती है। तामस भूतादिसे सम्मान हुपा है गर्गा धज । तितिक्ष ऋषिके वंशज। पर्थात् जब तम हारा सत्त्व और रज: अभिभूत होता है, तैतिर ( पु.सो.) तत्तिर पृषो. साधुः। तित्तिर ताउस पहारको तामस करते । सांख्याचार्याने पक्षो, तोतर। २ गण्डक, गैडा। . रस तामस पहारको भूतादि कहा है। भूतादिसे तैतिल (म.पु०) १ गण्डक, गै"ड़ा। (को०) २ ग्यारह पर तमावकी उत्पत्ति होतो।। तेजससे इन दोनों करणों में चोथा करण । फलित ज्योतिषके मतसे इस (पर्थात् एकादश इन्द्रिय पौर पर तन्मात्र)-का प्रवत न करणम मनुष्यका जन्म होनेसे वह कलाकुशल, रूपवान्, पुषा । रजबारा जब सस्व पोर तम अभिभूत होता वसा, गुणी, सुशाल और कामी होता है। ३ देवता । । ..सब वा पहारो तंजस मंचा पाता है। पूर्वोत तैतिलम (सं.पु. ) गोवप्रवत्तक ऋषियोका प्रवरभेद । साविक पर जब बात हो पर एकादश इन्द्रियों - तैत्तिर (.क्लो. तित्तिरोणा समूहः तित्तिर-पच ! •को उत्पब करता, तब उसे तेजस पाधारको सहा- अनुदात्ताद रज । पा२।४४ | १ तित्तिर पक्षो, तोतर । यता लेनी पड़ती है। साविक निष्किाय है. तेजस २ गण्डक, गेडा। आहारके माध बिना मिले उसमें कार्य करनेको शक्ति सिरिस..पु.) १ कुकुरवंशके एक राजाका नाम । नहीं पातो। इसलिए तेजसके साथ मिल कर एका ऋषिमंद, बष्ण यजुर्वेदके प्रवत्तक एक ऋषिका साइन्द्रियों को उत्पन करता है। इसी तरह भूतादि नाम। तामस पहबार भी निष क्रिय है. वह तेजसर्ग. माथ ही तैत्तिरोय (सं० पु० ) सिसिरिया प्रोव अधोयते छन्। मिल कर तन्मात्रों को उत्पन करता है। इसलिए." तित्तिरीय प्रोस समस्त शाखाध्यायो। यह शब्द व जससेहो न दोनों ( एकादश इन्द्रिय पोर पक्ष बचनान्त है। सनमान) की उत्पत्ति तो हैजसो एकामाव इनकी उत्पत्तिमै कारण है। तेजसको सहायताके सकर सके सम्बन्धमें भागवतादि पुराणों में इस प्रकार लिया विमा सत्व पोर तम कोई भी कार्य नहीं कर सकते। ..एक बार वयम्पायनने मारवां को। उसके प्राय ( द) पिचके लिए उन्होंने अपने शिष्योंको बावनबी पाया.