पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७५९

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नागस्वामी ७४७ ___"तदाटगुण तेस' मर्दयेत् मतु बादयेत् । (क) . स्वामी व माषा भारतवर्ष महापुरुषों को लगा ( पु.) तिस'मा देखो। सोलाभूमि ।तिमे हो मामाने रस देश जन्म नलगो ( पु.) १ तेग देशवासो । (खी.)२ पाप किया है, बाद वे प्रभूत उपकार साधन कर तसग देशको भाषा । (वि.) ३ मांग देश सम्बन्धी, तिरोहित हो गये। मामा बास्वामो बाया. तैसंग देशवा। धामके एक पमूबसमें देखनेने पाम्यन्तरिक तलक (सं० को ) स्वयं तेलं, अल्पायकान् । प्रख तामसिक भाव दूर हो जाता था पोरदय सास्तिका परिमाण नलघोड़ा तेल। भावका समावेश होता था। जिनाने एक बार इनकी तलकन्द (म• पु० ) तेलप्रधान: कन्दः । कन्दविशेष । मृत्ति देख लो वो बधाम रसका पराभव कर इम पर्याय द्रावककन्द, तिलाशितदल, कारवार- सकते । विदेशीय याविक पोर साधु लोग जिस प्रकार कन्दमा पौर तिलचितपत्रक। इसके गुणला भलिपूर्वक विशेखर, पचपूर्ण, मषिणि कादिका दर्शन द्रावी, कट, सत्य, वात, अपस्मार, विष पौर भोक परते थे, इस महामाका भी उसी प्रकार भनिपूर्वक नायक। दर्शन कर वे पाबाको चरितार्थ बना विमल पनि लकलज (स'. पु. ) तेलात तिलसम्बन्धिनः बस्या- नीय पवित्र सुख पनुभव कर गये। जायते जन-छ। तेलविह, खलो। से लकार ( पु०) करोति पण । व र . हम लोगों ने देश में साधु पुषोंको जीवनी पवार जातिविशेष, तेली। नववर्त पुराणके अनुसार स लिपोत, महाला ते लाखामोके विषय में भी वो. जातिकी उत्पत्ति कोटक जातिको सो और कुमार पुरुषसे । है। पता लगानेसे जो कुछ मालूम एमा, बड़ी रस जगह लिखा जाता है। महामाका प्रशत नाम अतलाई गई है। इसके पर्याय-धूसर, पाक्रिक पौर लिखामी था। ये जातिके वानव थे। दाक्षिणाम तलो । यात्राकालमें इस आतिको देखनसे प्रमङ्गल होता है। प्रदेश होलिया नगर इनका जब एषा था। १५२८ पताब्दीके पौषमासमें रनोंने जन्मग्राप किया था। इन. "ददर्शामगलं राजा पुरो पत्ममि बत्मनि । के पिताशा नाम नरसिंपर था। मरसिंर सहित. कुम्भकार तैलकार व्याधं सोपजीविन ॥" पपुरुष थे। इनके दो विवाह हुए थे जिनसे दो (ब्रह्मवै• गणपतिक. ३५०') से लकिट ( स० को. ) से लव कि सत् । तलमला, पुत्र सत्यकएए । प्रथम पक्षके पुत्रका नाम शिधर पौर दूसरवा बोधर बा.|४. वर्षको अवस्खा के पिताका खलो। पर्याय-पिन्धाक, लि, पोर तलकबाज । देशात पुपा। इनको माता विद्यावतो पोर विचष गुण - यह कटु, गौल्य. कफ, बात पर प्रभेदमायक। अभिमती धौं। पिताके मरने पर बैलिज पपनों माता तलकोट ( सं.पु. ) कोटभट, तेलिन नामका कोड़ा। से ही विद्या सौखते थे। इसी प्रकार बार वर्ष बोत. लक्य (सं. क्लो. ) तिलकस भावः कर्म का तिलका गये, इस समयमोंने मातासे योगशिक्षा भी सौख लो यक । परन्त पुरोहितादिभ्यो थक। पा९१२८ । यो । उनको अवखा जब ५२ वर्षको तब माता भी तिलकका भाव, तिलक करनेका काम। इस सोकसे चल बसीं। मत्य के बाद इनकीमाताकी जहां तमा (स.पु०) देशविशेष, श्रोश ससे ले कर चोलराज- अन्त्यष्टिशिया हुई थी, वहांसे ये फिर लौट कर घरम को मध्यभाग तककी देला देश कहते हैं । त्रिलिग देखा। यहाँको भाषा विलिङ्ग वा तेलगू है। पाये। श्रीधरन रहें घर लानको बहुत चेष्टा को, पर लाभा-जैसलमेरके रहनेवाले रिन्दोके एक कवि।। कुछ फल मापा। बलिङ्गने श्रोधरको यह कह कर ये महारावल रणजितसि जैसलमेर-मरणको दरबारमें विदा किया कि, 'भाई। पब मैं फिर मायामय संसारमें . रहते थे। ये साधारमा श्रेणोके एक कवि पदोंने प्रवेश न करूंगा, जो कुछ पतक सम्पत्ति है खबन्दमे स्वजित रामासा' नामक पब मा।।... उसका भोगवारो।' चौधरने उनके समके लिए ar