पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१०३

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फिरोजशाह पूरबो-फिरोजशाह तुगलक सुलतान १७ भिक्षावृत्ति द्वारा उन्होंने जीवनयापन किया था । उपाधि दो । फिरोज राजकार्यमें उन्हें हमेशा सलाह दिया फिरोजशाह पूरबी--एक हबसी सरदार । इसका पहला करते थे। महम्मदने दिल्ली प्रदेशको चार भागोमें विभक्त नाम मालिक आन्दिल था। १४६१ ई में खोजा सुलतान कर एक भागका शासन-भार फिरोजशाहके ऊपर सौंपा शाहजादाको मार कर ये फिरोज नामसे बङ्गालके मिहा- था। महम्मदशाहके अधीन राजकीय शिक्षामें इनमें ४५ सन पर बैठे। इन्होंने पुवकी तरह हिन्द मुसलमान प्रजा- वर्ष बीत गये। मात्रका ही पालन किया था। गौड़नगर (लक्ष्मणावती). १३५१ ई०को ठट्टनगरमें महम्मदकी मृत्यु हुई । राज- का पुनः संस्कार उनकी एक गौरव कीर्ति है। १४६४ ' अमात्यों और कर्मचारियोंके अनुरोध तथा सम्मतिसे ई०में उनकी मृत्यु हुई। . फिरोज ही राजा बनाये गये। किन्तु पीछे राजकीय फिरोजशाह बाह्मनी सुलतान-दाक्षिणात्यके एक मुसल- परिचालनमें कोई त्रुटी न हो जाय, इसकी उन्हें भारी मान राजा, सुलतान दाऊद के पुत्र । वामनीराज मुलतान : चिन्ता हुई। ईश्वग्में उनकी अचला भक्ति थो। उसी समसुद्दोनको राज्यच्युत और कारावद्ध करके ये १३६७ धर्मके बलसे वे भविष्यमें दया और दाक्षिण्यके साथ ई०में सुलतान फिरोजशाह रोजअफजुन नाम धारण प्रजापालन करने में समर्थ हुण थे। महम्मदकी मृत्युके कर सिंहासन पर अधिरूढ़ हुए । इनके प्रभावसे वाह्मनी- लिये परिधृत शोक-परिच्छदके ऊपर हो उन्हें राज- राजवंश उन्नतिकी चरम सीमा तक पहुंच गया था। परिच्छद धारण करना पड़ा, क्योंकि वे किसी हालत- सिंहासन पर बैठने ही इन्होंने अपने भाई अहमद खाँको से शोक परिच्छद त्याग करने में राजी न हुए। हाथीकी ( खानग्वाना ) अमीर-उल उमरावके पद पर नियुक्त किया पीठ पर सवार हो वे राजान्तःपुरमें गये और खोदाबन्द- और निज उपदेश दाता मीर फैजुलाको 'मालिक नायव , जादा महम्मदकी बहन के सामने जा कर शोकाभिभूत उपाधिसे भूपित कर वजीर-उस सुलतानतका कार्यभार हो पड़े। उस रमणीने उनके सरल स्वभाव पर मोहित सौंपा। अपने भाई अहमदको बाह्मनी-मिहासन देनेके हो अपने हाथसे सुलतान तुगलकका मुकुट उन्हें पहना १० दिन बाद ही १४२२ ई०में वे मृत्यु मुखमें पतित हुए। दिया । फिरोजशाह तुगलक सुलतान--दिल्लीके पठानवंशीय अधि- महम्मदके मृत्युकालमें मुगलोंने भारत पर आक्रमण पति। सुलतान गयासुद्दीन तुगलकके भाई सिणा- किया और इसे लूटा भी था। बिना राजाके राज्य-रक्षा सलारके औरस और दिवालपुरपति रणमल्लभट्टिकी कन्या करना दुरूह समझ कर उमरावोंने फिरोजशाहको राज- (सुलताना बीवी कदवानू ) के गर्भसे ७०६ हिजरीमें सिंहासन प्रदान किया। मुगल लोग फिरोजके हाथसे इनका जन्म हुआ था । ७ वपकी अवस्थामें इनके पिताकी पराजित हो नौ दो ग्यारह हुए । इस समय दिल्ली में झूठी मृत्यु हुई। अनाथा राजकन्याको अपने एकमात्र पुत्रको खबर फैला, कि फिरोजशाह मुगलोंसे बन्दी और हत हुए। पढ़ानेकी बड़ी फिक्र हुई। तुगलकशाहको वालक पर सुतरां दुःखसे अभिभूत हो खाजाजहान्ने महम्मदके बड़ा तरस आया और वे निज पुत्रवत् उसका लालन पालन पुत्रको राजसिंहासन पर विठाया। जब उन्होंने सुना, करने लगे। तुगलकको कृपासे उन्होंने राजकीय सभी कि फिरोज जीवित हैं, तब वे इस विषम भ्रमको चिन्ता शिक्षा पा ली। १४ वर्ष की उमरमें वे उन्हींके अनुग्रहसे करने लगे। उनका यह भ्रम दुसरा शायद ही समझेगा, ४ वर्ष तक राज्यके समस्त स्थानों में परिभ्रमण करते यह सोच कर उन्होंने आत्मरक्षाके लिये २० हजार अश्वा- रहे। जब वे १८ वर्ष के हुए, तब महम्मदशाह दिल्लोके रोही संग्रह किया। फिरोज यह संबाद पाते ही दिल्लीको सिंहासन पर बैठे। दो राजाका राज्यशासन देख कर दौड़ पड़े। पीछे कुल रहस्य मालूम हो जाने पर एक उन्हें बहुत कुछ ज्ञान हो गया था। महम्मदने उन्हें १२ दुसरेके गले मिले। हजार अश्वारोही सेनाका अध्यक्ष और नायव इ-अमीर राजपद पर अधिष्ठित हो फिरोजशाहने बहुतसे नपे हामिव ( Deputy of the Lord chumberluin ) को नये कानून निकाले। इससे प्रजावर्ग का दुःख बहुत कुछ Vol. XV. 25