पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०४ फुलागुड़ी-फुल्ति एक प्रकारका बबूल। इसके पेड़ मंझोले होते हैं और है कि उनका मल दूसरी जगह न लगे, गड़तरा। विशेष कर ग्वेनोंकी वाड़ों पर लगाए जाते हैं। इसको फुलेरा (हिं० पु० ) देवताओंके ऊपर लगानेकी फूलकी लकड़ी मजबूत और ठोस होती है। इसे लोग कोल्हकी : बनी हुई छनरो। जाठ और गाड़ियोंके पहिये आदि वनानेके काममें लाते फुलेल ( हि पु० ) १ सुगन्धयुक्त तेल, फलोंकी महकसे हैं। इसके पेड़से एक प्रकारका गोंद निकलता है जो बना हुआ तेल जो सिरमें लगानेके काममें आता है। औषध काम आता है। यह गोंद अमृतसरका गोंद इसकी प्रस्तुत प्रणाली इस प्रकार है--पहले तिलको परि- नामसे प्रसिद्ध है। ३ मरफ लाई देखो। कार कर छिलका अलग कर देते हैं। उसके बाद ताजे फुलागुडी --आसाम प्रदेशके नौगांव जिलान्तर्गत एक फूलोंकी कलियाँको जमीन पर बिछा कर उनके ऊपर तिल प्रसिद्ध स्थान । यहां प्रतिवर्षके चैतमासमें एक मेला छितरा देते हैं। तिलोंके ऊपर फिर फूलोकी लगता है। कलियाँ बिछाई जाती हैं। जब कलियां खिल फुलाना (हिं क्रि०) १ किसी वस्तुके विस्तार या फैलाव. जाती हैं, तब फूलोंकी महक तिलोंमें आ जाती है। को उसके भीतर वायु आदिका दबाव पहुंचा कर इस प्रकार एक बार नहीं, कई बार तिलोंको फूलोंकी तह बढ़ाना, भीतरके दबावसे बाहरकी ओर फैलाना। २ पर फैलाते हैं। जितना ही अधिक तिल फूलोंमें वासा कुसुमित करना, फूलोंसे युक्त करना । ३ घमण्ड बढ़ाना, : जाता है, उतनी ही अधिक सुगन्ध उसके तेलमें होती गर्वित करना। ४ किमीमें इतना आनन्द उत्पन्न करना है। अनन्तर उन सुवासित तिलोंको पेल कर कई प्रकार- कि वह आपेके बाहर हो जाय। के तेल तैयार होते हैं। फुलाव ( हि पु० ) फूलनेकी क्रिया या भाव, फूलनेकी २ हिमालय पर कुमाऊँसे ले कर दार्जिलिङ्ग तक होने- अवस्था । वाला एक पेड़। इसके फलकी गिरी खाई जाती है। फुलावट ( हि स्त्री० ) फूलनेकी क्रिया या भाव, उभार . इससे जो तेल निकलता है वह साबुन और मोमवत्ती या सूजन। बनानेके काममें आता है। लकड़ी हलके भूरे रंगकी होती फुलावा ( हि० पु० ) स्त्रियोंके सिरके बालोंको गूंथनेको हैं जिसकी मेज, कुरसी आदि बनती हैं। डोरो जिसमें फूल वा फुदने लगे रहते हैं। • फुलेली (हि स्त्री० ) फुलेल रखनेका कांच आदिका बड़ा फुलिंग (हिं पु०) चिनगारी। बरतन। फुलिया ( हि स्त्री० ) १ कोल या काँटा जिसका सिरा फुलेहरा (हिं० पु०) उत्सवोंमें द्वार पर लगानेके सूत, रेशम फुलकी तरह फैला हुआ, गोल और मोटा हो । २ किसी , आदिके बने हए झब्बेदार बन्दनवार । कील या छड़के आकारकी वस्तुका फूलकी तरह उभरा फुलोच्छ-नेपाल राज्यकी प्राचीन राजधानी। यह ललित- और फैला हुआ गोल सिरा। ३ कानमें पहननेका एक पाटनके समीप गोदावरीके किनारे अवस्थित है। सोम- प्रकारका लौंग नामक गहना। वंशी राजपूतोंके आक्रमणसे राज्यको रक्षा करनेके लिये फुलिसकेप (अॅ० पु०) एक प्रकारका चिकना सफेद कागज गस्तिराजने यहां एक दुर्ग बनवाया था। जिसके भीतर हलकी लकीरे पड़ी रहती हैं। पहले इसके फुलौरा (हिं० पु० ) बड़ी फुलौरी, पकौड़ा। तख्तेमें मनुष्यके सिरका चित्र बना रहता था जिस पर फुलौरी (हि. स्त्री० ) चने या मटर आदिके बेसनकी बरी, नोकदार टोपो होती थी। इसी कारण इसे 'फूलसकेप' बेसनको पकौड़ी। कहने लगे जिसका अर्थ बेवकूफकी टोपी होता है। अब फुल्त ( स० वि० ) फल-आरम्भ भावे क्त वा तवोनेंट अत इस कागजमें अनेक चिह्न बनाये जाते हैं। इत्त्वं । फलनारम्मयुत, जो फलने पर हो। फुलरिया ( हिं० स्त्री० ) कपड़े का एक टुकड़ा जो छोटे फुल्ति ( स० स्त्री० ) फल-क्तिन्, (चि । ७४८ ) बच्चोंके चूतड़के नीचे इस लिये बिछाया वा रखा जाता इति अत-उत्। फलन । (मुग्धबोधव्या)