पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१११

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१०५ फुल्ल ( स० वि० ) फुल्लतीति फुल-अच, वा फलतीति फुल्लारविन्द (सं० स्त्री०) प्रस्फुटित पन्न, खिला हुआ फल-क्त (आदितश्च । पा ७।२।१६ ) इति इडभावः (ति कमल । च। पा ७।४।८६ ) इति उत्वं, अनुपसर्गात । ( फुल्ल- फुल्लि ( सं० स्त्री०) विकाश । क्षी वेति । दा२।९५) इति निष्ठा तस्य ल। १विकसित, फुल्ली ( हिं० स्त्री० ) १ फुलिया। २ फलके आकारका फूला हुआ। (पु०) २ पुष्प, फल। कोई आभूषण या उसका कोई भाग। फुल्लकुल्लम-मानभूमके अन्तर्गत एक छोटी सम्पत्ति । फुवारा ( हि पु०) फुहार। देखो। फुल्लग्राम वीरभूमके अन्तर्गत एक प्राचीन ग्राम। यह फुस ( हि स्त्री० ) अतिशय मन्द स्वर, बहुत धीमी सिउड़ीनगरसे ४ कोस अग्निकोणमें अवस्थित है। यहां आवाज। फुल्लरादेवीका मन्दिर विद्यमान है। | फुसड़ा ( हि पु०) फुचडा देखो। फुलतुवरी (सं० स्त्री० ) स्फटिकारिका । फुसफुसा (हिं० वि० ) १ नरम, ढोला। २ कमजोर, फुल्लदाम ( स० पु. ) फुल्लानां पुप्पाणां दाम-इव । उन्नीस फुससे दूर जानेवाला । ३ जो तीक्ष्ण न हो, वर्णकी एक वृत्ति। इसके प्रत्येक चरणमें ६, ७, ८, ६, मंदा। १०, ११, और १७वां वर्ण लघु होता है। फुसफुसाना ( हिं० क्रि०) फुसफुस करना, इतना धीरे फुल्लन ( स० वि० ) वायुसे परिपूर्ण । धीरे कहना, कि शब्द व्यक्त न हो। फुल्लपुर ( स० क्ली० ) नगरभेद । फुसलाना ( हि क्रि० ) १ भुला कर शान्त और चुप फुलफाल ( सं० पु० फुल फलतीति फल-अण । सूर्पवात, रखना, बहलाना। २ मीठी मीठी बातें कह कर अनु- वह हवा जो सूपसे की जाती है। कूल करना, भुलावा दे कर अपने मतलब पर लाना। ३ फुलरा--चण्डीकाथ्योक्त कालकेतु व्याधकी स्त्री। द्विज सन्तुष्ट करनेके लिये प्रिय और विनीत वचन कहना। ४ जनार्दन, माधवाचार्य, बलराम कविकण आदि चण्डी-! किसी बातके पक्षमें या किसी ओर प्रवृत्त करनेके लिये काव्यलेखकोंने फल्लराचरित्रका जो रेखापात किया था, | इधर उधरकी बातें करना, चकमा देना। मुकुन्दरामने उसका सम्पूर्ण विकाश किया है। मुकुन्द- फुहार ( हि० पु०) १ जलकण, पानीका महीन छींटा । रामके हाथसे यह चरित्र अति सुन्दररूपसे चित्रित हुआ

२ महीन बूंदोंकी झड़ी, झींसी।

है। तद्वर्णित फुलराकी सहिष्णुता और पातिव्रत्य आदर्श- फुहारा (हि पु०) १ जलकी वह टोंटी जिसमेंसे दबावके स्थानीय है। कारण जलकी महीन धार या छींटे वेगसे ऊपरकी ओर फुल्लरीक ( स० पु० , फल (फर्करीकादयश्च । उण ४।२०), उठ कर गिरा करते हैं। साधारणतः जो फुहारे देखने में इति ईकन् प्रत्ययेन निपातनात् साधुः। १ देश । २' | आते हैं वे कृत्रिम हैं। मनुष्य हम लोगोंके लिये यह सर्प। फुहारा बनाते हैं । जड़जगत्में भी हम लोग ऐसी जल. फललोचन स. पु०) फल्ले विकसिते लोचने यस्य। धारा उठती देखते हैं । किस प्रकार वह ऊर्ध्वगामी जल- १ मृगविशेष । (त्रि०) २ प्रफुल्ल नेत्रयुक्त । स्रोत समान वेग और अविश्रान्त गतिसे शून्यमार्गमें फुलवत् (स० वि० ) प्रस्फुटनके योग्य । उठता है वह नीचे देते हैं। फुल्ला-चन्द्रद्वीपके अन्तर्गत एक नदी । प्राकृतिक नियमवशसे भूगर्भके मध्य अन्तनि हित जल- फुल्लारण्य-दाक्षिणात्य प्रदेशमें रामेश्वरके निकटवत्ती स्रोत थोड़ा थोड़ा करके एक जगह जमा होता है। पीछे वह एक पवित्र तीर्थ। यह समुद्रके किनारे वनके मध्य गर्भ जब भर जाता है, तब जल आपे आप वेगवान् अवस्थित है। फुल्ल नामक किसी योगीके नाम पर गतिसे अपना रास्ता निकाल लेता है। पहाड़ी प्रदेशको इसका नामकरण हुआ है। यह क्षेत्र वैष्णवोंका प्रियतम कड़ी मट्टोको भेद कर वह अपनी राहसे नीचे है। फुल्लारण्य-माहात्म्यमें इसका विस्तृत विवरण जाता है । भूपृष्ठमें संलग्न होनेसे वह पृष्ठावरणको भेद लिखा है। कर ऊपरकी ओर उठता है। Vol. XV. 27