फेनका-फेफड़ा
फेनका (स. स्त्री०) फेनेन कायतीति कैक-टाप। १ परमाराध्या भगवतीका स्मरण किया । भगवतीने भी
जलपक्क तण्डुलचूर्ण, पानीमें पका हुआ चावलका चूर। प्रसन्न हो कर उस फेनमें आत्मसंस्थापन किया । इधर
२ अरिष्टकवृक्ष, रीठेका पेड़।
वज भी उस फेनपिण्ड द्वारा आवत हुआ। अब इन्दने
फेनगिरि --सिन्धुनदीके मुहानावती एक पर्वत। उस फेनावृत वज्रको वृनके ऊपर फेंका जिससे वृत्र उसी
फेनदुग्ध (सं० स्त्रो० ) फेन इव दुग्ध यस्याः। दुग्ध-: समय धड़ामसे पृथ्वी पर गिरा और मर गया। इसी
फेनीक्षुप, दूधफेनी नामका पौधा जो दवाके काममें आता प्रकार फेनावृत अशनि द्वारा इन्दने वलका संहार किया
है। यह एक प्रकारकी दुधिया घास है।
था। (देवीभाग.६।६।५५-५६)
फेनप (सं० पु०) १ स्वयं पतित फलादिजोवो मुनि- फेनिका (सं० स्त्री०) फेन इव आकृतिरस्त्यस्याः फेन-
विशेष । फेनं पिवतीति फेन-पा-क । (त्रि०) २ फेनपान- ठन्-टाप् । पक्वान्नविशेष, फेनो नामकी मिठाई । इसकी
कर्ता, फेन पीनेवाला।
प्रस्तुत प्रणाली ढोले गुधे हुए मैदेको थालीमें रख
फेनमेह ( स० पु० ) प्रमेहभेद । इसमें वीर्य फेनकी तरह कर घोके साथ चारों ओर गोल बढ़ावे। फिर उसे कई
थोड़ा थोड़ा गिरता है। यह श्लेष्मज प्रमेह है। वार लपेट कर बढ़ावे। इस प्रकार बढ़ाता और लपेटता
प्रमेह देखो। चला जाय। आखिर घोमें तल कर चाशनीमें पागते या
फेनमेहिन् ( सं० त्रि०) फेनमेह अस्त्यर्थे इनि । प्रमेहरोग- यो हो काममें लाते हैं। यह मिठाई दूधमें भिगो कर
युक्त।
खाई जाती है।
फेनल (सं० त्रि०) फेनोऽस्त्यस्येति फेन ( फेनादि । फेनिल ( स० क्ली० ) फेनोऽस्त्यस्पेनि ( फेना दिलच्च ।
लच्च । पा ५।२|EE ) इति चात्-लच । फेनयुक्त, फेनिल। पा २१६६ ) १ कोलिफल, बेरका फल । २ मदनफल,
फेनवत् (सं० त्रि.) फेनोऽस्त्यस्येति ( फेनादिःच्च ।। मैनफल। ३ अरिष्टव क्ष, गेठेका पेड़। ४ बदरीवन,
ण २६९) इत्यत्र अन्यतरस्यामित्यनुवत्तेः पक्षे मतुप बेरका पेड़। ५ जलब्राह्मी, हिलमोची ।। त्रि.) ६ फेन-
मस्य वः। फेनिल, फेनयुक्त।
युक्त, फेनवाला।
फेनवाहिन् (सं० पु०) फेनवत् शुभ्रतां वहतीति वह-णिनि । फेनो - १ नोआखाली जिलान्तर्गत एक उपविभाग। भूपरि-
वस्त्र, कपड़ा।
माण ३४३ वर्गमील है।
फेना ( मं० स्त्री० ) फेनोऽस्ति वाहुल्येनास्याः फेन-अच २ पूर्व बङ्गमें प्रवाहित एक नदी। यह त्रिपुराके
टाप । १ सातलाक्षप । २ शेहुण्डभेद ।
पहाडी प्रदेशसे निकल कर दक्षिण-पश्चिमकी ओर बह
फेनान (सं० क्ली०) फेनस्यान। बुबुद्, वुलबुला। गई है। यह नदी चट्टग्राम और त्रिपुराके पावत्यप्रदेशके
फेनायमान (सं० त्रि०) फेनमुद्रमतीति फेन ( फेनाच्चति वीच हो कर बहती हुई वङ्गोपसागरमें मिल गई है।
वाच्य । पाश१६) इत्यस्य वार्तिकोक्त्या क्यङ ततः फेनी ( हिं० स्त्रो०) लपेटे हुए, सुनके लन्छेके आकारकी
शानच् । १ उत्थित फेन दुग्धादि । फेनइव आचरति मिठाई। फेनिका देखो।
क्यङ् शाणच । २ फेनको भांति आचरणयुक्त। फेन्य (सं० त्रि०) फेन- यत्। फेनभव, जो फेनसे
फेनाशनि ( स० पु०) फेन एव अशनिवन यस्य । इन्द्र। निकले।
इन्द्रने फेन द्वारा वृत्रासुरका वध किया था, इसीसे फेफड़ा ( हिं० पु० ) शरीरके भीतर थैलीके आकारका वह
इनका यह नाम पड़ा है। देवीभागवतमें लिखा है, कि वृता- अवयव जिसकी क्रियासे जीव सांस लेते हैं।
सुरके साथ जब इन्द्रका घोर संग्राम छिड़ा, तब इन्द्र युद्ध- वक्षाशयके अभ्यन्तर वायुनालमें थोड़ी दूर नीचे दो
स्थलमें शल वध करनेका उपाय सोचने लगे। इसी समय कनखे इधर उधर फूटे रहते हैं। इन कनखों से संलग्न
इन्द्रको समुदमें पर्वतके समान ऊची फेनराशि दिखाई मांसका एक एक लोथड़ा दोनों ओर रहता है। ये
दी। इन्दने अतिशय भक्तिपूर्वक उस फेनको ले कर थैलीके आकारके और छिदमय होते हैं । ये ही दोनों लोथडे
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/११७
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