पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१२१

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फ जी सेख - फज-उला-जयीर ३ उक्त तहसीलका एक शहर । यह अक्षा० २६ ४७ : वोजगणित और लीलावतीका अनुवाद करके अपनी उ० और देशा० ८२ १० पू०के मध्य गोगरा नदीके : विद्याधुद्धिका परिचय दे गये हैं। किनारे अवस्थित है। जनसंख्या लगभग ७५०८५ है। उन्होंने कुरान शास्त्रका भी एक अति वृहत् व्याख्या इसके पश्चिममें वर्तमान अयोध्यानगर पड़ता है। ये ग्रन्थ लिखा है। उस ग्रन्थमें उन्होंने २८ अक्षरेके मध्य दोनों ही नगर प्राचीन अयोध्या महानगरीके ऊपर बसे नुक्ता संयुक्त अक्षरोंको बाद दे कर केवलमात्र १३ अक्षर- हैं। १७३२ ई० में मनसुर अली खा यहां आये थे। उन- में शब्दयोजना करते हुए उसे जनसाधारणके पाठयोग्य का अधिकांश समय इसी शहरमें ध्यतीत होता था। ! बनाया था। कुछ लोगोंका कहना है, कि अल्लोपनिषद कन्तु उनके वंशधर सुजाउद्दौलाने १७६० ई०में इस नगर. इन्हींका बनाया हुआ है। भाषामें भी इन्होंने बहुतसे दोहे को राजधानीमें परिणत किया था। १७७५ ई में जब , बनाये है। सुजाउद्दौलाको मृत्यु हुई, तब आसफ उद्दौलाने १७८० एक बार अकबरने इनसे हिन्दुस्तानकी सभी भाषाएं ई में राजधानीको लखनऊ उठा लाये। १७६८ ई०से . सीखने के लिये कहा। ये कई वर्षों तक भारतवर्ष के बहू बेगम इस नगरका निष्करभोग कर रही थी। १८१६ सभी प्रान्तोंमें घूम घूम कर वहांकी भाषाएँ सीखते रहे। ईमें उनकी मृत्युके बादसे यह नगर श्रीहीन हो गया जब घर लौटे और दरबारमें हाजिर हुए तब बादशाहने है। उनका समाधिमन्दिर और तत्संलग्न 'देल-खुम' कहा, 'फैजी! किस प्रान्तमें कौलसी भाषा बोली जाती प्रासाद् अयोध्या प्रदेशके मध्य देखने लायक है । कहते हैं, है, उदाहरण सहित कहो। फैजी सब देशोंकी बोलियां कि इसके बनानेमें तीन लाख रुपये खर्च हुए थे। यहां , बादशाहको सुनाने लगे। अन्तमें वे अपनी जेबसे एक रोहिलखण्ड रेलपथका स्टेशन है। शहरके उत्तर-पश्चिम शीशी जिसमें कुछ कंकड़ भरे हुए थे निकाल कर खड- गोगराके किनारे सेनानिवास है। यहां पुरुष और स्त्रीके' खड़ाने लगे। अकबरने हँस कर पूछा, 'फैजी! यह किस लिये पृथक पृथक अस्पताल हैं। मुल्ककी बोली है।' फैजीने उत्तर दिया, 'खुदावन्द'! यह फैजी सेख .. अकबरशाहके प्रधान मन्त्री सेग्व अब्दुल- नैलङ्गी है और तैलङ्ग देशमें बोली जाती है। यह सुन फजलके बड. भाई और नागरवासी सेख मुदारिकके कर बादशाह और सब सभासद हँसने लगे। इस प्रकार पुत्र । ६५४ हिजरीमें उनका जन्म हुआ। उनका ये दरवारमें प्रायः हँसाते ही रहते थे। इस कारण प्रकृत नाम अब्बुल फज था, पर फैजी नामसे ही जन अकवरकी इन पर बड़ी कृपा रहती थी। १००४ साधारणमें परिचित थे। ये उक्त सम्राटके राज्यारोहण- हिजरी ( १५६६ ई० ) में दमारोगसे इनकी मृत्यु हुई। के १२ वर्ष बाद राजसभामें पहुंचे और 'मालिक उप- यह एक एकेश्वरवादी थे। इस कारण इस्लाम्- सुआरा' उपाधिसे भूपित हुए। इतिहास, दर्शन, आयु.. धर्मावलम्बिगण इन्हें विधी समझ कर तिरस्कार करते वेद तथा गद्य और पद्य रचनामें वे विशेष पारदर्शी थे। थे। फैजी एक असाधारण धीशक्ति-सम्पन्न पण्डित उस समय उनके मुकाबलेमें दिल्ली भरमें और कोई न थे। अरबी साहित्यमें, काव्यमें और हकीमो-विद्यामें था। प्रथम रचनाओं में उनका फैजो नाम मिलता है, . इनकी विशेष पारदर्शिता थी। ये कुल मिला कर १०१ पर पीछे उन्होंने फैयाजी नामसे अपनेको सम्मानित किया ग्रन्थ लिख गये हैं। इनकी ऐसी तीव्र बुद्धि थी, कि था। उन्होंने निजामी लिखित विख्यात पांच खामसा , जो पुस्तक एक बार पढ़ लेते थे, वह इन्हें याद हो जाती कविताके प्रतिद्वन्द्वी हो 'मर्कज-अदबर' 'सुलेमान और : थी। इनकी तनखाहका अधिक भाग पुस्तके खरीदने- बिलकाज 'नलदमन' 'हप्त किङ्कवर' और अकवरनामाकी में ही खर्च होता था। कहते हैं, कि ४६०० पुस्तकें इनके रचना की। छप्रवेशमें एक ब्राह्मण पण्डितके घर रह कर पुस्तकालयमें निकली थीं। उन्होंने हिन्दू-साहित्य और विज्ञानकी आलोचना की थी। फैज-उल्ला अजूमीर -एक मुसलमान काजी । ये संस्कृत काव्य और दर्शन छोड़ वे भास्कराचार्य-प्रणीत दाक्षिणात्यके वाहनीराज सुलतान महमूमने शासन-