पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१४१

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बक-चकगना दक्षिण और पूर्वभारत, गङ्गाके किनारे, ब्रह्म, उत्तर भावप्रकाशके मतसे यह शीत, नक्तान्ध्यनाशक, चातुर्थक- आष्ट्रेलिया और मरिसस द्वीपमें यह वृक्ष उत्पन्न होता । निवारक, तिक्त, कषाय, कटुपाक, पीनस, श्लेष्मा, पित्त है। इसका पेड़ स्वभावतः २२ या ३० फुट तक ऊंचा और वातघ्न माना गया है। होता है। इसको लकड़ी बहुतं हलकी होती है जिससे ३ कुबेर । ४ एक राक्षस जो भीमके हाथसे मारा थोड़े ही दिनोंमें पेड़ अपने आप मर जाता है । इसके . गया था। (भारत १९५७३ ) ५ असुरविशेष, बका- फूल देखनेमें ढाकके फूलके समान, पर उससे बड़े और सुर। भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा यह असुर निहत हुआ सफेद तथा कुछ ललाई लिये हुये सफेद होते हैं। था। भागवतमें इसका विषय यों लिखा है इसका गोंद लाल, धूप और हवा लगनेसे बैंगनकी तरह एक समय गोप बालकगण श्रीकृष्णजीके साथ वनमें काला हो जाता है। वह जल और मदिरामें गल जाता है। गायें चराने गये। वहां श्रीकृष्ण गायोंको पानी काठके सूखा और नीरस होनेके कारण छाल धूप लगनेसे पिलानेके लिये एक जलाशय पर पहुंचे। उसी समय लग हो जाती है, किंतु भीतर मछलीके छिलके बकका रूप धारण कर एक असुर आया और उसने की तरह जो पतली छाल होती है उससे उत्कृष्ट, मज- श्रीकृष्णको निगल लिया। बलराम आदि यह देख भयसे बूत तन्तु प्रस्तुत होता है। छालमें धारकता-शक्ति है । विह्वल हो सबके सव रोने लगे। उस बगुलेकी चोंच चेचकके प्रारंभमें अथवा सस्फोटक ज्वरमें इसकी छाल बड़ी और तेज थी। भगवान श्रीकृष्ण बगुलेके मुखके पानीमें भिगो कर खानेको दी जाती है। कहीं कहीं फूल बीचमें बैठ कर अग्निको तरह उसके तालू भागको जलाने और पत्तोंका रस शिर-पीड़ा और नासिका रोगमें; लगे। बगुला जब उस वेदनाको न सह सका, तब उसने दिया जाता है। इस रसको अच्छी तरह नाकके द्वारा ! श्रीकृष्णको उगल दिया। इसके बाद वह चोंचके द्वारा मूंघनेसे कफ पतला हो निकल आता है, जिससे माथेका श्रीकृष्णको मारनेके लिये उनके सामने आया। भगवान् दुखना और भारोपन दूर हो जाता है। श्रीकृष्णने उस असुरको फिर आते हुए देख अपनी दोनों लाल रंगके बक फूलके रेशेको ठढे जलमें वांट कर बाहुओंसे उसको चोंच पकड़ कर उसी समय उसको वातयुक्त स्फीत स्थानमें लेप देनेसे फ़ायदा देखा गया। यमपुर भेज दिया। (भागवत १०।११ अ० ) है। कृष्ट घाव वा शस्त्राघातमें अथवा दष्ट स्थानमें पत्तोंकी बकचंदन ( हि पु०) एक प्रकारका वृक्ष । इसकी पत्तियां पुलटिस बांधनेसे क्षत स्थान आरोग्य हो जाता है । फूलोंका गोल और बड़ी होती हैं। इसका पेड़ ऊंचा और लकड़ी रस आखोंमें डालनेसे झपनी दोष दूर होता है। हरे मजबूत होती है। फल इसका लम्बा और पतला होता पत्ते और फूल रांध कर खानेमें अच्छे लगते हैं। इसकी है जिसमें छःसे आठ नौ अंगुल लबे तीन चार दल होते गरी बरवटकी तरह व्यंजनादिमें खायी जाती है, किंतु हैं। यह ऊपर कुछ ललाई लिए भूरे रंगका होता है। खानेमें ज्यादा कसैली और अधिक खानेसे उदरमें रोगको फल सिरके दर्द में पीस कर लगाए जाते हैं। पैदा करती है। बकचन ( हि पु० ) बकच दन देखो। ___ यह फूल शिवजीको पूजामें पवित्र माना जाता है। बकचा (हिं पु० ) पंकुचा देखो। प्रायः सभी पूजामें इसका व्यवहार होता है। यह सफेद, बकचिञ्चिका ( स० स्त्री० ) मत्स्यविशेष, एक प्रकारको पीला, नीला और लालके भेदसे चार प्रकारका है। मछली। इस मछलीके मुहकी जगह लम्बी चोंचसी तन्त्र मतमें यह यन्त्रपुष्प माना जाता है। विशेषतः अन्यान्य होती है। इसे कौवा मछली भी कहते हैं। फूलों के पर्युषित होने पर उनके द्वारा पूजा नहीं की बकची (हिं० स्त्रो०) एक प्रकारकी मछली । २ बकुर्चा देखो। जातो, किंतु वकपुष्पके पर्युषित होने पर भी उससे पूजा बकजित् ( स० पु० ) वक जितवान् इति जि-किप तुक- की जाती है । वैद्यकके मतमें इसके गुण-मधुर, शिशिर, च। १ भीमसेन । २ श्रीकृष्ण। श्रम, कास, त्रिदोषनाशक एवं बलकारी है। (राजनि .) बकठाना (हिं० कि० ) किसी बहुत कसैलो चीज जैसे