पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१४६

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बकल टरर-बकोर कर शिवजीने उसे देखा : कामदेवने महादेवजीके नयना- लगाई जानेवाली टेढ़ी लकड़ी । इसके बीचमें छिद्र करके नलसे अपनेको जलते हुये देख अपने हाथमेका पुष्प- धुरी लगाई जाती है और दोनों छोर पहियेके दोनों ओर याण छोड़ा। धनुष पांच भागोंमें विभक्त हुआ जिससे की पटरीमें साले या बैठाए हुए होते हैं। चपक, वकुल, पाटला, चमेली और मल्लिका इन पांच बक्कम ( अ० पु० ) भारतवर्षके मन्द्राज, मध्यप्रदेश और फलोंको उत्पत्ति हुई । २ शिव । ३ एक प्राचीन देशका बर्मामें होनेवाला एक वृक्ष। इसका पेड़ छोटा और नाम । कटीला होता है। लकड़ी काले रंगकी तथा दूढ़ और बकुल टरर ( हि पु० . सफेद रंगको एक चिड़िया जो। टिकाऊ होती है। यह मेज कुसी आदि वनानेके काम पानी में रहती है और मनुष्यके बराबर ऊंची होती है। आती है। रंग और रोगनसे इस पर अच्छी चमक आती बकुला ( म स्त्री० । बकल-टाप । कटुका, कुटको नामको है। इसकी लकड़ी छिलके और फलोंसे लाल रंग ओषधि। - निकलता है जिससे सूत और उनके कपड़े रंगे जाते हैं बकुला हिं० पु. ) बगला देग्यो । __ और जो छींटकी छपाईमें भी ध्यवहृत होता है। इसके वकुली ( स० स्त्री० । बकुल गौरादित्वात् डीप । १ बीज बरसातमें वोए जाते हैं। काकोली, एक प्रकारकी ओषधि । २ बकुल, मौलसिरी। बक्कल ( हिं० पु० ) १ छिलका। २ छाल।। बकेन ( हि० स्त्री० ) वह गाय या भैंस जिसे पचा दिये बक्का ( हि पु०) सफेद या खाकी रंगके एक प्रकारके साल भरसे अधिक हो गया हो और जो बरदाई न हो छोटे की। ये धानकी फसल में लगते हैं और उसके और दूध देतो हो। ऐसी गाय या भै सका दूध अधिक पत्ते तथा बालोंको खा कर उसे निजींव कर देते हैं। ये गाढ़ा और मीठा होता है। कोड़े जहां चाटते हैं, वहां सफेद हो जाता है। बकेरुका ( स स्त्री० ) बकानां वकसमूहानां ईरूक गतिः बक्काल (अ० पु०) आटा, दाल, चावल या और चीजें बेचने यंत्र । १ बलाका, बगली । २ वातवर्जित शाखा। वाला, बनिया । बकेल ( हि स्त्री० । पलाशकी जड़ जिसे कृट कर रस्सी बक्की ( हिं० वि० ) १ बकबाद करनेवाला, बहुत बोलने बनाते हैं। या बकबक करनेवाला। (स्त्री०)२ भादोंके महीनेके बकैया ( हि पु० ) वञ्चों के चलनेका एक ढंग। इसमें अन्तमें होनेवाला एक प्रकारका धान। इसके धानको वे पशुओं के समान अपने दोनों हाथ और दोनों पैर भूमी काले रंगको होती है और चावल लाल होता है। जमीन पर टेक कर चलते हैं। यह मोटा धान माना जाता है। बकोट (संपु० ) बक, बगला । वक्कुर (हि. पु. ) बत्रन, बोल। बकोट ( हि स्त्री० ) १ पजेकी वह स्थिति जो किसी बक्खर ( हि पु० १ बाखर देखो। २ वह खमीर जो वस्तुको ग्रहण करने या नोचने आदिके समय होती है। कई प्रकारके पौधोंकी पत्तियों और जड़ों आदिको कट कर २ वकोटने या नोचनेकी क्रिया या भाव। ३ किसी तैयार किया जाता है। यह दूसरे पदार्थोंमें खमीर पदार्थकी उतनी मात्रा जो एक बार चंगुलमें पकड़ी जा उठानेके लिये डाला जाता है। सके। बक्रोर--बुद्धगयाके पूरव फल्गू नदीके किनारे अवस्थित बकोटना । हि क्रि०) बकोटसे किमीको नोचना, नाखूनों- एफ गएड प्राम। यहाँ बहुत सी प्राचीन कीर्तियोंका मनांचना। ध्वंसावशेष देखने में आता है। यहांके कटनी नामक काटी । हि स्त्री.) स्वावली देखो। स्तूपका व्यास १५० फुट है। इनमें जो ईटे लगो हैं उनका वकौंडा । हि पु० १ पलाशको कटी हुई जड़ जिससे परिमाण १५॥ ४१०४ १३॥. इञ्च है। अलावा इसके रस्सी बटी जाती है। २ वकोंग देखो। कितने भग्न स्तूप और बुद्धमूर्ति अक्तित दृष्टिगोचर होती बकौरा । हि पु० बैलगाडीके दोनों ओर पहियेके ऊपर हैं। यूयन चुवंग भी इस स्थानका परिदर्शन कर गये