पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१६१

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बड़वानलचणे-बड़हार १५५ बडवानलचूर्ण (सपु० ) एक चूर्ण जिसके सेवनसे बड वाल ( हिं० स्त्री०) हिमालयके उस पारकी सराईकी अजीर्णका नाश और क्षधाकी वृद्धि होती है। (वैद्यक) भेड़ोंकी एक जाति । बड़वानलरस (स० पु०) बटिकौषधविशेष। इसकी बड वासुत ( स० पु०) वड.वायाः घोटकी रूपायाः सुतः। प्रस्तुत प्रणाली-पारा, गन्धक, पिपुल, विटलवण, उद्भिद- अश्विनीकुमार। इन दोनोके नाम नासत्य और दन लवण, सौवर्चललवण, मिर्च, हरीतकी, आमलकी, बहेड़ा, भी हैं। ये दोनों स्वर्गके चिकित्सक और परम रूपवान् यवक्षार, साचिक्षार और सोहागा इन सव द्रव्योंका हैं। सूर्यदेवकी बड वापत्नीके गर्भसे इन्होंने जन्मग्रहण समान भाग ले कर चूर्ण करे। पीछे सम्हालूकी पत्तियों किया है। हरिवंशके 8 वें अध्यायमें इनको उत्पत्तिका के रसमें एक दिन भावना दे कर दो वा तीन रत्तीकी पूरा विवरण लिखा है। अश्विन और अश्विनीकुमार देखो। गोली बनावे। रोगीके अवस्थानुसार अनुपान दे। बर वाहृत ( स० पु०) बड.पया दास्या हतः। बडवा इसके सेवनसे मदाग्नि बहुत जल्द दूर हो जाती है। हृत, पन्द्रह प्रकारके दासोमेंसे एक, वह जो दासीके साथ (रसेन्द्रसारस० अजीणोधि०) विवाह करके दास हुआ हो। अन्यविध-पारा, गन्धक, माक्षिक, यवक्षार, ताम्र बजु हँस (हिं० पु०) मेघरागका पुत्र एक राग। कुछ लोग और अभ्र सम भाग ले कर चीत और अकवनके रसमें इसे संकर राग मानते हैं जो रुद्राणी, जयन्ती, मारू, सौंद कर २ रत्तीकी गोली बनावे । अनुपान पानका रस है। दुर्गा और धनाश्रीके मेलसे बनता है । कहीं कहीं यह मधु- इस औषधके सेवनके बाद हींग, सैन्धवलवण, सौवर्चल- माधव, शुद्ध हम्मीर और नरनारायणके मेलसे बना कहा लवण, अनार, विल्ब, कुल मिला कर दो तोला, भृङ्गराज गया है। रसमें पीस कर सुराके साथ मिला कर सेवन करना ! बड़हंससारंग (हिं. पु०) सम्पूर्ण जातिका एक राग होता है। इसके सेवनसे सब प्रकारके गुल्मशूल और जिसमें सव शुद्ध स्वर लगते हैं। परिणामशल जाते रहते हैं। (रसेन्द्रसारमः गुल्मचि.) । बस हसिका (स स्त्री०) एक रागिनी जो हनुमत्के बडवामुख (सं० पु०) बाट वाया घोटक्या मुखं आश्रय- मतसे मेघरागकी स्त्री कही गई है। त्वेनास्त्यस्य अर्श आदित्वादच् । १ बड़वानल । २ शिव• बड़हर ( हिं० पु० ) बड़हल देखो। का मुख। ३ महादेवका नामभेद । ४ कूर्मके दक्षिण बड़हल (हिं० पु०) संयुक्त प्रान्त, पश्चिमी घाट, पूर्व बङ्गाल कुक्षिमें स्थित पक जनपद । और कमाऊ की तराईमें होनेवाला एक बड़ा पेड़। इसकी “फूर्मस्य दक्षिणे कुक्षौ वाह्य पादस्तथापरम् । पत्तियां छः सात अंगुल लम्बी और पांच छः अंगुल काम्बोजाः पहवाश्चैव तथैव बड़वामुखाः॥” चौड़ी तथा कर्कश होती है। फूल बेसनको पकौडीके ( माकपु० ५८।३०. समान पीले पीले गोल गोल होते हैं। उनमें पस्खड़ियां ५ बटिकौषधविशेष । प्रस्तुत प्रणाली-पारा, : नहीं होतीं। फल पकने पर पीले और छोटे शरीफेके बरा- तान, अभ्र, सोहागा, कर्कचलवण यवक्षार, ( जवाखार ) बर पर बह बेडौल होते हैं। इनका स्वाद खटमीठा होता साचिक्षार (सज्जीखार ), सैन्धवलबण, सोंठ, अपामार्ग, है पर गूदेका रंग पीलापन लिये लाल होता है। लोग पलाश और वरुणक्षार सम भाग ले कर और अम्लुवर्ग के इसके फूल और कच्चे फलका अचार और तरकारी रसमें भावना दे कर तथा फिर चीतेके रसमें बार बार बनाते हैं। बड हलके हीरकी लकडी कडी और पीली सौंद कर लघुपुटपाक द्वारा तैयार करे। इसकी मात्रा होती है । इससे नाव तथा सजावटके सामान बनाते हैं। १ माशा है । इसके सेवनसे ज्वर और ग्रहणी रोग दूर आसाममें इसकी छाल दांत परीष्कार करनेके काममें होते हैं। लाई जाती है। वैद्य लोग इसके फलको वादी मानते हैं। बड़वार (हिं० वि०) बड़ा देखो। बडवारी (हिं स्त्री.) १ महत्व, बर.प्पन । २ प्रशंसा, दर हार (हिं० १०) विवाह हो जानेके पीछे वर और बरा तियोंकी ज्योनार।