बढ़ावन-बवख
बढ़ावन (हिं० स्त्री०) गोवरको टिकिया जो बच्चोंको नजर यिक, वैदेह, बाणिज, वाणिजिक, क्रायिक, विक्रयिक,
माड़नेके काम आती है।
बाणिजक, वाणिजाकार। २ करणान्तर। ३ बैश्य ।
बढ़ावना ( हिं० कि० ) बढ़ाना देखो।
ये लोग क्रय विक्रय करते हैं, इसीसे इन्हें वणिक् कहते
बढ़ावा (हिं पु० ) १ प्रोत्साहन, किसी कामकी ओर हैं। बाणिजा ही इनकी वृत्ति है। ४ करण विशेष ।
मन बढ़ानेवाली बात । २ साहस या हिम्मत दिखानेवाली (स्त्री०) पण्यते व्यवहोयते इति पण-इजि, पस्य व, अभि-
वात, ऐसे शब्द जिनसे कोई कठिन काम करनेमें प्रयत्स धानात् स्त्रीत्व। ५ वाणिजा, व्यापारको चीजोंकी आम-
दनी रफ्तनी।
बढ़िया (हिं० वि०) १ उत्तम, अच्छा। (पु० ) २ एक वणिज (सं० पु०) बणिगेव बणिज स्वार्थे अण, अभिधानात्
प्रकारका कोल्हू । ३ डेढ़ सेरकी एक तौल। ४ गन्ने, न वृद्धिः। १ वणिक, बनिया। २ ज्योतिषोक्त
अनाज आदिकी फसलका एक रोग। इसके होनेसे कनखे बव और वालव आदि ग्यारह करणोंके अन्तर्गत
नहीं निकलते और दाब बन्द हो जाती है। (स्त्री० ) ५ छठा करण। जिस दिन यह करण होता है,
एक प्रकारकी दाल।
उस दिन शुभ कार्यादि निषिद्ध है, किन्तु वाणिज्य कर्म इस
बढ़ेल (हिं॰ स्त्री० ) हिमालय परकी एक भेड़ जिससे करणमें प्रशस्त बतलाया गया है। इस फरणमें जन्म
ऊन निकलता है।
लेनेसे जात बालक बुद्धिमान, कृतज्ञ, विविध गुणशाली,
बढ़ ला (हिं० पु०) वन शूकर, जंगली सूअर । गुणग्राही बणिकोंका प्रिय और बाणिज्यकर्ममें उन्नति-
बढ़े या (हिं० वि०) १ उन्नति करनेवाला, बढ़ानेवाला। शील होता है।
२ बढ़नेवाला।
“प्राशः कृतज्ञो गुणवान् गुणशो
बढ़ोतरी ( हि स्त्री० ) १ उत्तरोत्तर वृद्धि, वढ़ती। २
वणिगजन प्राप्तमनोरथः म्यान् ।
उन्नति ।
यस्य प्रसूतौ वणिजाभिधानं
बण ( स० पु० ) बणनमिति बण-अप्। शब्द, आवाज । भाण्डप्रधानं द्रविणं हि तस्य ॥” (कोष्ठीप्रदीप)
बणिक ( स० पु० ) १ वाणिज्य करनेवाला, बनिया, : ३ शिव, महादेव।
सौदागर । २ विक्रता, बेचनेवाला। ३ ज्योतिषमें छठा वणिज्य ( स० क्लीः ) वणिजो भावः कर्म वा बणिज
करण ।
( दूतवणिगभ्यां च। पा ५।१।१२६ ) इत्यत्र काशिको-
बणिक पथ ( स० पु०) बणिजां पन्था अच् समासान्तः। क्त यः। बाणिज्य बणिकका भाव या कर्म !
१ हट्ट, हाट, बाजार । २ बाणिज्य व्यापारको चीजोंकी बणिज्या (सं० स्त्री०) वणिज्य-टाप, स्वभावात् स्त्रीलिङ्गये।
आमदनी रफ्तनी।
बाणिज्य।
(सपु०) वणिजः पण्याजोवस्य बन्धुर्धनद-बत ( हिं० स्त्री० ) बात। इसका प्रयोग यौगिक शब्दों में
त्वात् । १ नीलीवृक्ष, नीलका पौधा । २ बणिकोंके वन्धु । ही होता है, जैसे बतकही, बतबढ़ाव ।
बणिग्भाव (सं० पु०) बणिजो भावः । वाणिजय । पर्याय -- वतक (हिं० स्त्री० ) वतम्ब देखो।
सत्यानृत, वाणिजा, वाणिजया, बणिकपथ, वणिजय। वतकहाव ( हि पु०) बातचीत। २ विवाद बातोंका
पणिग्वह ( स० पु०) बहतीति बह-अच -बह, वाणिजां झगड़ा।
वाणिजा द्रष्याणां वहः। उष्ट्र, ऊँट।
बतकही (हिं स्त्री०) वार्तालाप, वातचीत ।
बणिज (सपु०) पणते क्रयविक्रयादिना व्यवहारतीति बतख (हिं० स्त्री०) हंस जातिको एक चिड़िया जो
पण (पणरादेश्च वः। उण २१७० ) इति इजि पस्य च पानीमें तैरती है। इसका रंग सफेद, पंजे झिल्लीदार
व।१ क्रयविक्रयकर्ता, बनिया। पर्याय-वैदेहक, सार्थ- और चिपटी होती है । चोंच और पंजेका रंग पीलापन
वा, नैन, वणिज, पण्याजोव, आपणिक, क्रयविक्रय- लिये लाल होता है। इसका डीलडौल भारी होता है,
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१६५
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