बदमिजाज-बदरपाचन
बदमिजाज (फ० वि० ) दुःस्वभाव, बुरे स्वभावका, चिड़ः बदर ( फा० वि० ) बाहर । जैसे, शहर बदर करना।
चिड़ा।
बदरकुण ( स० पु० ) बेर पकनेका समय।
बदमिजाजी ( फा० स्त्री० ) वुरा स्वभाव, चिड़चिड़ापन। बदरगञ्ज-बङ्गालके रंगपुर जिलान्तर्गत एक गण्डग्राम
बदरंग (फा० वि०) १ बुरे रंगका, जिसका रंग अच्छा न हो। और प्रधान वाणिज्यस्थान। यह अक्षा० २५४० उ०
२ विवणे, जिसका रंग बिगड़ गया हो । (पु०) ३ चौसर- और देशा० ८६६ पू. के मध्य अवस्थित है । यहां चावल,
के खेलमें एक एक खिलाड़ीकी दो गोटियों में वह गोटी जो धान और सरसों आदि रखनेकी बड़ी बड़ी आढ़ते हैं।
रंग न हो। ४ ताशके खेलमें जो रंग दांव पर गिरना बदरवय । स० की०) बदराणां त्रय'। तीन प्रकारका
चाहिये उससे भिन्न रंग।
बदर, वृहद्वदर, क्षु बदर और शृगालकोलि । ( चरसूत्र
बदर गी (फा० स्त्री०) रंगका फोकापन या भद्दापन। :
४ अ० ) भावप्रकाशके मतसे सौवीर, कोल और कर्कन्धु
बदर (संकी० वदति स्थिरीभवती छिन्नेऽपि पुनःप्ररोह- यही तोन प्रकारके बदर हैं।
तीति, वद-अरच । १ कार्पास, कपास ।२ कार्पामवीज, बदरनवीसी ( फा० स्त्री० ) १ हिसाब कितावकी जाँच।
कपासका बीया. बिनौला। ३ सेविफल । ४ शृगाल- हिसाबमें गमु दनु रकम अलग करना।
कौलि । ५ बृहत् कोलिवृक्ष, बड़ा बेरका पेड़। ६ कोलि.
बदरपाचन----तीर्थभेद । महाभारतमें लिखा है-- महर्षि
फल, बेरका फल। संस्कृत प यि-कर्कन्धु, बदरी,
भरद्वाजकी कन्या श्रु वातीने देवराजकी पत्नी होनेको
कोल, फेणिल, कुवल, घोण्टा, सौवीर, अजाप्रिया, कुहा,
इच्छासे बहुत कठिन तपोनुष्ठान किया। भगवान् इन्द्र
कोलिविषम, भयकएटक, सौवीरक, गुड़फल, वालेट, फल- उसकी तपस्यासे बडे, प्रसन्न हुए और वशिष्ठदेवका रूप
शैशिर, गुढ़वीज, वृत्तफल, कण्टकी, वक्रकण्टकी, वक्र धारण कर वहां पहुंचे। श्र वावतीने नाना प्रकारसे
कण्टक, सुरस, सुफल, स्वच्छ, ककन्धु, बदर, कोली, : उनकी पूजा करनेके बाद अपना अभिप्राय प्रकट किया।
कुवलो, स्वादुफला, गृध्रनखी, पिच्छिला, कुवल । गुण -- इस पर वशिष्ठरूपधारी इन्द्र ने कहा, 'तुम्हारी कठोर
मधुर, कषाय, अम्ल । परिपक्व फलका गुण - मधुराम्स, उष्ण, तपस्याका विषय मुझसे छिपा नहीं है। तुम्हारा मनो-
कफकारक. पचन. अतिसार, रक्त और श्रमदोषनाशक रथ अति शीघ्र पूरा होगा। अभी तुझे ये पांच बदर देता
तथा रुचिकर।
हूं, उनका अच्छी तरह पाक करो।' इतना कह इन्द्र वहांसे
___ यह पेड़ प्रायः सारे भारतवर्ष में होता है। जंगली
__चल दिये और उसी आश्रमके समीप इन्द्रतीर्थ जा कर
बेरको झरबेरी कहते हैं। जब कलम लगा कर इसे तैयार
• अग्निका तप इस उद्देशसे करने लगे जिससे श्रुवावती बदर-
किया जाता है, तब वह पेवं दी ( पैबंदी ) कहलाता है।
पाक न कर सके । इधर ग्रह्मचारिणी ध्रुवावतीने तनमनसे
इसकी पत्तियां चारेके काममें और छाल चमड़ा सिझाने-
पवित्र हो बदर-पाक करना आरम्भ कर दिया। सारा
के काममें आती है। बङ्गालमें इस वृक्षकी पत्तियों पर ;
| दिन बीत गया, तो भी सभी बदर सुपक न हुए। इस
रेशमके कीड़े भी पालते हैं। इसकी लकड़ी जो कड़ी
। प्रकार ध्रुवावतोके अनेक दिन बीत गये । आखिर अपने
और कुछ लाली लिये हुए होती है, प्रायः खेतीके औजार
उद्देश्यको फलीभत न होते देख वह अपना शरीर दग्ध
बनानेके और इमारतके काममें आती है। इसमें एक .
- करनेको तुल गई। पहले उसने अपने दो पैर अग्निमें
प्रकारके लबोतरे फल लगते हैं जिनके अंदर बहुत कड़ी डाले, पर जरा भी क्लेश अनुभव न किया। धीरे धीरे गुठली होती है। यह फल पकने पर पीले रंगका हो : उसका सम्पूर्ण शरीर भस्म होने लगा। इसी समय जाता है और मीठा होनेके कारण खूब खाया जाता है। - इन्द्रने वहा पहुँच कर ध्रुवावतीसे कहा, 'ब्रह्मचारिणी ! कलम लगा कर इसके फलोंका आकार और स्वाद बहुत । । अब तुम्हें वदरपाक नहीं करना पडेगा । मैं तुम्हारी कुछ बढ़ाया जाता है। भक्तिकी परीक्षा करनेके लिये वशिष्ठका रूप धारण कर ६ देवसर्षपक्ष। विशाणमाम, दो शाण या आठ माशेकी एक तौल। आया था । तुम्हारा अभिलाष परिपूर्ण होगा । यह देह