पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१७६

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१७० बदाकसान-पदौनी और थोडीसी को देखी जाती हैं ; किन्तु उन कब्रोंका बदाम ( हि पु०) बादाम देखो। कैसा भी इतिहास नहीं पाया जाता। ममशी ईदगा . बदामी (फा०वि० ) १ बादामी देखो। २ कौड़ियालेकी और जुम्मा मस्जिद ही यहांको प्राचीन कीर्तियां हैं। जातिका एक पक्षी, एक प्रकारका किलकिला। शम्सुद्दीन अल्तमशने उसका निर्माण कराया था। बदारिया--युक्त प्रदेशके एटा जिलान्तर्गत एक गण्डग्राम । ऐसी प्राचीन मुसलमान-कीर्ति भारतमें और कहीं भी यह वृढी गङ्गाके किनारे अवस्थित है। इसके दूसरे दिखाई नहीं देती। इनके अलावा आजकलके जमानेमें : किनारे सरोन नगर है। नदी पर लोहेका एक सुन्दर भी राज्यकार्य तथा विद्या प्रचारके लिये ब्रिटिश सर- पुल बना हुआ है। म्य निस पलिटीके अधीन रहनेके कारने अनेक घर बनवा दिये हैं। कारण यह स्थान भी नगरमें गिना जाता है। बदाकसान-अफगान तुकि स्तानके अन्तर्गत एक पाव - बदिया-उल-जमानखाँ-बङ्गालके अन्तर्गत वीरभूमका तीय राज्य। यह अक्षा० ३५५० से ३८ ३० उ० तथा मुसलमान शासनकर्ता। इनके पिताका नाम आसद- देशा०६९३० से ७४० पू०के मध्य अवस्थित है। उल्ला था। पिताकी मृत्युके बाद ये सन् ११२५ सालमें हिन्दकृश पर्वतमाला इसके पास ही दण्डायमान है। राज सिंहासन पर बैठे। उसी समय इन्हें मुर्शिदा- कोकचा जातिका उपत्यका-निवास भी इस राज्यके बादके नवाब मुर्शिदकुलीखाँसे सनद मिली। भास्कर अन्तर्गत है। यह विस्तीर्ण राज्य १६ जिलोंमें विभक्त . पण्डितको अधिनायकतामें मरहठोंने बङ्गालके पश्चिम है जिनमेंसे फैजाबाद ही सर्व प्रधान है । यहां मूल्य- भाग पर आक्रमण करनेके लिये के दुआसुगाके निकट वान् पत्थर, ताम्र, गन्धक और सीसक आदि धातव छावनी डाली थी। बदिया उलजमान्ने वद्ध मान-राज पदार्थ पाया जाता है। १०वीं शताब्दीमें अरबी प्रभृतिकी सहायता पा कर मरहठोंको कटोआसे मेदिनोपुर भौगोलिकोंने इस स्थानके मणित्नादिका उल्लेख किया है। तक खदेरा। वीरभूम देखो। यहां धान्यादि नाना प्रकारके शस्य और नाना सुमिष्ट' बदी ( हि स्त्री० ) १ कृष्ण पक्ष, अंधेरा पाख । फल उत्पन्न होते हैं। बद्कशी जाति यहांकी अधि. (फा० स्त्री०) २ अपकार, बुराई । वासो है। आचार-व्यवहारमें ये लोग काफरिस्तान, बटे ( हि अव्य० ) १ लिये. वास्ते। २ दलाली समेत सागनम् और रोशानोंके जैसे हैं। इस राज्यके प्राचीन इतिहासके सम्बन्धमें कोई : बदौनी-मुन्तखव-उल तवारिखके प्रणेता एक विख्यात विश्वस्त प्रमाण नहीं मिलता। जनश्रुतिसे मालूम होता मुसलमान ग्रन्थकार । इनका प्रकृत नाम थ शेिख अबदुल है, कि आलेकसन्दरके वंशज बदाकसानके पूर्व शासक : कादिर बदौनी । रणस्तम्भगढ़ के निकट तोड्प्राममें इनका थे। फिर कोई कोई कहते हैं, सि सम्राट् बाबरने अपने . जन्म हुआ था। पीछे बदाऊँ में आ कर वस जानेके लड़के मिर्जा हिन्दल पर वदाकसानका राज्यभार सौंपा। कारण इनका बदौनी नाम पड़ा। इनके पिताका नाम हिन्दलके भारत आने पर सम्राट के जेनरल मिर्जा मुलुकशाह था। नगरवासी शेख मुवारकसे इन्होंने सुलेमान राज्याधिकारी हुए । उनके मरने पर उनके लिखना पढ़ना सीखा था। सम्राट अकबरशाहने इन्हें लड़के राजगद्दी पर बैठे। १८४० ई में कतधानके मीर : । अपनी सभामें बुलाया और अरबी तथा संस्कृत भाषाके मुराद बेगने इस पर अपना दखल जमाया। कतघान प्रन्थादिका पारसी भाषामें अनुवाद करनेको कहा। • और अफगान-युद्धके समय बदाकसान काबुलका करद- राज्य हो गया। इन्होंने दरबारमें रह कर मुआजम-उल-बुल-दान, अमीर- बदान (हि स्त्री०) प्रतिज्ञा पूर्वक पहलेसे किसी वातका. रशीदी और रामायणका अनुवाद किया। नीति और स्थिर किया जाना, किसी बातके होनेका पक्का। धर्म शिक्षाके लिये इन्होंने नजात् उर-रशीदकी रचना की बदाबदी ( हि स्त्री०) दो पक्षोंकी एक दूसरेके विरुद्ध थी। अलावा इसके पे महाभारतके दो पोका अनु- प्रतिक्षा या हट, लाग डाट, होड़ा होड़ी। वाद और EEE हिजरोमें काश्मीरका संक्षिप्त इतिहास