पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१९३

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बन्धूकपुष्प-बन्ध्या १५७ फूल दो पहरमें खिलता है और शामको मुरझा जाता है। यवक्षार इनके समान भागको थूहरके दूधमें पीस कर संस्कृत पर्याय-रक्तक, बन्धूजीवक, बन्धुक, बन्धु, बन्धुल, मूर्ति बनावे। पीछे उस मूर्तिको योनिमें देनेसे आत्तव जीवक, बन्धुजीव, बन्धूलि, बन्धुर, रक्त, माध्याहिक, ओष्ठ-! निकलता है। ज्योतिष्मतीकी पत्तियां, सजीखार, वच, पुष्प, अर्कबल्लभ, मध्यन्दिन, रक्तपुष्प, रागपुष्प, हरि- और शाल इन्हें शीतल दूधके साथ पीस कर पान करे, प्रिय । तीन दिनके मध्य ही रज अवश्य ही निकलने लगेगा। यह पुष्प असित, सित, पीत और लोहितके भेदसे श्वेतबहेड़ा, यष्टिमधु, रक्त बहेड़ा, ककैटङ्गी और . चार प्रकारका है। गुण ---जगरनाशक, विविध अरिग्रह : नागकेशर इन सब द्रव्योंका मधु, दुग्ध और घृतके साथ और पिशाचप्रशमनकारक है। २ पोतशालक। ३ पान करनेसे बध्यानारी गर्भधारण करती है। अमगंध खधूप, बदूक । ५ दोधक नामक वृत्तका एक नाम। के काढ़े के साथ दुध पाक करके कुछ दुध रहते उसे (नि.) ५ लघु, छोटा। उतार ले। पीछे ऋतु स्नान करके उसका धृतके माथ बन्धूकपुष्प ( स० पु०) बन्धूकस्य पुष्पमिव पुष्पं यस्य । सेवन करनेसे निश्चय गर्भ रह जाता है। पुप्पानक्षत्रमें १ पीतशाल । २ वीजक । लक्ष्मणामूल उखाड़ कर ऋतुस्नान करनेके बाद घृत- बन्धूर (स० पु०) बंध-बंधनं ( मद्गुरादयश्च । उण ११४२) कुमारीका रस धके साथ सेवन करें। इससे बध्या इत्यत्र खजुरादित्वादूरप्रत्ययेन सिद्ध। १ विवर, विल। : दोष दूर हो जाता है और नारी थोड़े ही दिनोंके अंदर (त्रि०) २ रम्य, सुन्दर । ३ उन्नतानत, वह स्थान जो कहीं गर्भधारण करती है। पीत झिण्टीका मूल, धाईका फूल, ऊंचा और कहीं नीचा हो। वटका अंकुर, और नीलोत्पल इन्हें दूधके साथ पीस बन्धूलि (स.पु.) बन्धुक वृक्ष, दुपहरिया फूलका कर पान करनेसे वंध्यादोष जाता रहता है । गजपिप्पली, पौधा। जीरा, श्वेतपुष्प और शरयुवा इनके समान भागको पोस बन्ध्य ( स० वि० । बन्ध-यक । १ ऋतुप्राप्तावधि फल- कर पान करनेसे स्त्री गर्भवती होती है। एक पलाशपत्र रहित वृक्षादि, वह पेड़ जिसमें उपयुक्त समयमें भी फल को धमें पीस कर पान करनेसे वीर्यवान् पुत्र जन्म लेता नहीं लगते । पयायः --अफल, अबकेशी, विफल, निष्फल। है। शकशिम्बोमूल, कपित्थको मजा और लिङ्गिनी- २ ऐसा पुल जिसके नीचेसे पानी बहता हो, बाँध बीज, इन्हें दूधके साथ पान करनेसे नारी पुत्रप्रनवणी बन्ध्या (स. स्त्री० ) १ वह स्त्री जो सन्तान न पैदा कर होती है। पुलञ्जीव वृक्षका मूल, विष्णुकान्सा और सके, बांझ । मनु में लिखा है, कि बन्ध्या स्त्री अटम वर्ष में लिङ्गिनी इनके समान भागको पीस कर आठ दिन सेवन अधिवेदनीय होती है। (मनु ८१) करनेसे स्त्री पुत्र प्रसव करती है । (भाषप्र. योनिरोगाधि०) वृषली स्त्रीको भी बन्ध्या कहते हैं। जिनके संतान बध्या स्त्री यदि पूर्वोक्त औषधादिका यथाविधि मेवन नहीं होती या हो कर मर मर जाती है उसका नाम करे, तो उनका बध्या दूर होता है और वे पुत्रप्रस्रवणी वृषली है। २ योनिरोगभेद। भावप्रकाशमें उदावर्त्ता, होती हैं, इसमें सन्दह नहीं। फिर ऐसी भी ओषधि हैं विप्लुता और बल्यादिभेदसे योनिरोग नाना प्रकारका जिनका सेवन यदि पुत्रप्रसविणी स्त्री करे, तो उन्हें गर्भ बतलाया गया है। जिन सब स्त्रियोंका आर्तव विनष्ट : नहीं रहता। वैद्यक चक्रपाणिसंग्रहमें लिखा है- होता है उन्हें बन्ध्या कहते हैं। स्त्रियोंके यह रोग हानेसे "विपल्यः शृङ्गवेरञ्च मरिच केशरन्तथा । यथाविधान चिकित्सा करना आवश्यक है। घृतेन सह पातव्यबध्यापि लभते सुतम्।" इसकी चिकित्सा ।-बन्ध्यानारी प्रतिदिन मछली, पिप्पली, शृङ्गवेर, मिर्च और नागकेशर, इन्हें घृतके । कांजी, तिल, उडद, अर्द्धक जलयुक्त मट्टा और दाधका साथ पान करनेसे बध्या पुत्रप्रसव करती है। बला, सेवन करे। इससे उनका आर्तव निकल सकता है। अतिबला, यष्टि और शर्कराका मधुके साथ पान करनेसे तितलौकीका बीज, दम्ती, गुड़, मैनफल, सुराबीज और बध्यादोष दूर होता है। । भैषज्यरला० )