पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/१९९

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बम्मारि-नयामिद सुलतान बम्मारि (स.पु.) विश्वपोषक, वह जो संसार भरका । कर दी थी। इस कारण जनसाधारण इन्हें पीर-रोशन' पालन पोषण करता हो। कहा करते थे। उनके धमोन्मादसे मुग्ध हो पर्वतवासी बम्हनपियाव (हिं पु०) ऊखको पहले पहल पेरनेके समय असख्य अफगान लोग उनके दलमें शामिल हुए। इस • उसका कुछ रस ब्राह्मणों आदिको पिलाना जो आवश्यक उन्मत्त सेनादलको ले कर उन्होंने तथा उनके घंशधरीने और शुभ माना जाता है। मुगल-सम्राट अकबरशाहके अप्रतिहत शासनको विच- बम्हनरसियाव (हिं० पु० ) बम्हनपियाष देखो। लित कर डाला था। बम्हनी स्त्री०) १ छिपकिलीकी तरहका एक पतला क्याजिद सुलतान-खुरासानका अधिपति एक मुसलमान । कीड़ा। यह आकारमें छिपकिलीसे प्रायः आधा होता पुस्ताम नगरमें इसका जन्म हुआ था। चट्टग्राम नगरमें है। इसकी पीठ काली, दुम और मुंह लाल चमकीले इसका समाधिस्तम्भ है जो सुलतान वयाजिदका रौजा रंगका होता है। पीठ पर चमकीली धारियां होती हैं। नामसे प्रसिद्ध है । प्रवाद है, उसने राजकार्यसे विरक्त हो २ ऊखका एक रोग। ३ लाल रंगकी भूमि। ४ हाथो राजपद त्यागा था और शान्तिलाभके लिये संन्यासधर्म का एक रोग। इसमें उसकी दुम सड. कर गिर जाती धारण करने के बाद अनुचरोंको साथ ले वह चट्टप्राममें है। ५ वह गाय जिसकी आँखकी बिरनी झड गई हों। आया। वहांके राजाने मुसलमानोंको नगरप्रवेश करनेसे ६ आँखका एक रोग। इसमें पलक पर एक छोटी | निषेध किया। सुलतान वयाजिदने विनम्र पचनों फुसी निकल आती है। द्वारा राजाको संतुष्ट कर रात्रिवासके लिये सामान्य वयंड (हिं० पु. ) हाथी। भूमि मांगी और कहा, 'इस प्रदीपको जलाने पर जहां तक बय (हिं० स्त्रो०) वय देखो। प्रकाश जायगा वहां तकका स्थान मुझे मिलना चाहिये।' बयना (हिं० क्रि०) १ वर्णन करना, कहना। (पु० )२ राजाने अनुमति दे दी । कहते हैं, कि जब उसने योगप्रभाव बैना देखो। से प्रदीप जलाया, तब ६० कोस दूरवत्ती तिषनुक नामक बयल (हिं० पु.) सूर्य। स्थान तक आलोकित हुआ था। बयस (हिं. स्त्री०) वय देखो। मुसलमानोंकी धोखेबाजीसे क्रुद्ध हो राजपुरुषोंने बयसर ( हिं० स्त्रो०) कमखाब खुननेवालोंकी वह लकड़ी. उससे युद्ध ठान दिया। बार बार आक्रान्त होने पर भी जो उनके करमें गुल्लेके ऊपर और नीचे लगती है। सुलतानने समरक्षेत्रसे राजकर्मचारियोंको मार भगाया। बया (हि पु० ) गौरैयाके आकार और रंगका एक घोरतर युद्धके समय जहां उसकी अंगूठी गिरी थी वहां प्रसिद्ध पक्षी । इसका माथा बहुत चमकदार पीला होता रौजा बनाया गया जो आज भी मौजूद है। जिस है। यह पोस मानता है और सिखानेसे सकेत करने नदीमें उसका कर्णफूल और शंख गिरा था वह भी कणे- पर, हलकी हलकी चीजें किसी स्थानसे ले आता है। फूलो तथा शंखवती कहलाने लगी। सुलतान बयाजिदने यह अपना घोंसला सूखे तृणोंसे बहुत ही कारीगरीके 'गोरचेला' बन (योगमें समाधि ग्रहण कर) १२ वर्ष तक साथ और इस प्रकारका बनाता है कि उसके तृण धुने कठिन तप किया। पीछे रौजा समाधिमंदिरके वनवाने, हुए मालूम होते हैं। २ वह जो अनाज तौलनेका काम तीर्थयात्री और अनुचरोंके व्ययके लिये भूमिदान दे बया- करता हो, अनाज तौलनेवाला। जिद सुलतान मकनपुर चल गया। इसका शिष्य शाह पयाई (हिं श्री० ) अन्न आदि तौलनेको मजदूरो, भी मोक्षलाभकी आशासे १२ वर्ष तक एक पैरसे दंडाय- तौलाई। मान हो आखिर पञ्चत्वको प्राप्त हुआ। पीछे वह समाधि- बयाजिद मनसारी--अफगान-देशवासी एक मुसलमान, मंदिर बयाजिदके अन्यतम शिष्य पोरके अधीन हो रोशानिया नामक सुफीधर्म-सम्प्रदायके प्रवर्तयिता। गया। इन्होंने अपनेको ईश्वरप्रति इसके बाद मुसलमान-समाजमें इस स्थानका बात अपनका इश्वरप्ररित दूत बतला कर तमाम घोषणा Vo. xy. 49