पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२०३

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पई-बरकती १९७ विवाहमें कुशण्डिका होती है और किसी किसीमें नहीं इन लोगोंमें प्रायः १४७ थाक हैं। वे सभी स्थान- भी होती। विवाहके अङ्गाधीन समस्त कार्योंके बाद वाचक हैं। जैसे-अहरवाड़, अयोध्यावासी, वृन्दावन- अग्निको साक्ष्य करके विवाहकार्य शेष किया' बासी, सरयूपुरी, चौरासिया, श्रीवास्तव, उत्तराह, पर्वत- जाता है। गढ़ी, जैसवार, जौनपुरी इत्यादि । ये लोग कन्याका ८ वा धर्म कर्म में ये लोग ब्राह्मणादि उच्चश्रेणीके हिन्दुओं स्वर्ष में और बालकका १२ वा १३ वर्ष में विवाह देते हैं। का अनुकरण करते हैं। इनमेंसे अधिकांश शाक्त हैं। दूसरा विवाह करते समय जातीय सभामें उसका कारण वैष्णवकी संख्या बहुत थोड़ो है। ब्राह्मण इनके पुरो दिखलाना पड़ता है। किन्तु दोके अलावा तीसरा हित होते हैं। विवाह करनेका नियम नहीं है। इन लोगोंमें तीन पानकी खेती करना ही इनका जातीय व्यवसाय है। प्रकारका विवाह प्रचलित है, धनीके लिये चारहोबा वायु और सूर्य के प्रकोपसे पर्णलताको बचानेके लिये गरीबके लिये दोला और विधवा रमणीके लिये सगाई । बखारी आदि द्वारा वरेजा तैयार करते हैं। पानकी उपरोक्त दो कुमारीविवाहमें सिन्दूरदान बतलाया गया है। लताके नीचे पक और खाद दी जाती है। लताकी ये लोग साधारणतः किसी धर्मसम्प्रदायके नहीं हैं। डाल जितनी ही बार काटी जाय, उतनी ही उसकी वृद्धि महावीर, पांचपोर, भवानी, हरदिह देव, शोखबावा और है। फाल्गुन और आषाढ़ मासमें नये पसे निकलते नागबेली इनके प्रधान उपास्य देवता हैं। प्रधान प्रधान देवपूजामें तिवारी ब्राह्मण इनकी पुरोहिताई करते हैं, ये लोग स्नान करके शुचि हो लेते, तब बरेजेमें घुसते किन्तु प्राम्यदेवताको पूजा स्वय गृहस्थ करते हैं। ये हैं। जो कृषक पर्ण क्षेत्रमें काम करते, वे भी बिना लोग मुर्देको जलाते हैं। कोई कोई गयामें जा कर स्नान किये वरेजेमें घुस नहीं सकते। पिण्डदान और श्राद्धादि भी करते हैं। ब्राह्मण क्षत्रिय बिहार और बाराणसीवासी बरईके साथ वहांके और वश्यके हाथका अन्न ग्रहण करते हैं। घाटिया तमोलीका कोई विशेष प्रभेद नहीं देखा जाता। यहां ब्राह्मण और राजपूतगण इनके हाथको पक्की रसोई खा इस जातिको उत्पत्तिके सम्बन्धमें अभिनव प्रवाद प्रच- सकते हैं। ये लोग शराब पीते और मांस मछली भी खाते हैं। लित हैं। एक दिन दो धार्मिक ब्राह्मण भाता वनमें प्याससे व्याकुल हो इधर उधर जलकी तलाश कर रहे बरकंदाज (फा० पु.) १ वह सिपाही या चौकीदार जिसके पास बड़ी लाठी रहती हो। २ रक्षक, चौकीदार। ३ थे। बड़ेक कहनेसे छोटा भाई एक महुएके पेड़ पर चढ़ा तोड़ेदार बंदूक रखनेवाला सिपाही। और कोटरमें थोड़ा जल पाया। भाईसे चुरा कर वह बरकत ( अ० स्त्री० ) १ किसी पदार्थ की अधिकता, कुल अल पी गया और तब वृक्ष परसे उतरा। उसने जो बढ़ती । इस शब्दका प्रयोग साधारणतः यह दिखलानेके परेके पास जा कर कहा, कि पानी नहीं मिला, इस लिये होता है, कि वस्तु आवश्यकतानुसार पूरी है और कूडी बात के लिये परमेश्वरके भादेशसे छोटेके उपबीतसे पाप-लता की सष्टिहा। तभीसे उस छोटेकी सम्ताम उसमें सहसा कमी नहीं हो सकती। २ लाभ, फायदा । ३ समाप्ति, अत । ४ एककी सण्या । साधारणतः लोग पागका व्यवसाय करती भा रही है। कोई कोई कहते गिनतीके आरम्भमें एकके स्थानमें शुभ या वृद्धि भादिकी है, किमाने ब्राह्मणों को पानकी खेतीसे विरत करने के कामनासे इस शब्दका व्यवहार करते हैं ! ५ वह बचा लिये इस जातिकी सृष्टि की है। फिर किसीका कहना है, कि वैश्य और शवाणीके संयोगसे तमोलीको पाना हुआ पदार्थ या धन आदि जो इस विचारसे पीले सोर दिया जाता है, कि इसमें और वृद्धि हो । ६ प्रसाद, कृपा। हुई है। गोरखपुर के बर्राका कहना है, कि पर्णविक्रय- ७धन, दौलत । त्तिसे ही उनका यह नाम पड़ा है। आजमगढ़के अन्त-वरकती (अवि०) १ बरकतवाला, जिसमें बरकत हो। गत बीरभानपुर उनका पैलुक वासस्थान है। । २बरकत संबंधी, बरकतका। Vol. xv 50