पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२०८

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२०२ वृटिश-सरकारसे सुरक्षित है। इसमें ३ शहर और १८८१ जिससे राज्यमें शान्ति स्थापन हुई। पारितोषिक सरूप प्राम लगते हैं। जनसंख्या १० लाखसे ऊपर है। सम्राट्ने इस प्रदेशका शासनभार उस पर अर्पण किया। स्थानीय प्रवाद है, कि जगत्सृष्टा ब्रह्माने पवित्रचेता इकौना नगरमें उसके वंशधरगण जमींदारके तौर पर ऋषियोंके ब्रह्माराधनाके लिये इसी स्थानको पसन्द किया गोगडा और बराइचकी कुछ सम्पत्तिका भोग कर रहे हैं। था।(१) अयोध्यापति श्रीरामचन्द्र के शासनकालमें यह सूर्यवंशीय दो राजपूत भाइयोंने यहां आ कर वाम- स्थान उत्तरकोशलके अन्तर्भुक्त था। श्रीरामचन्द्र के पुत्र नौतीके भरसरदारके अधीन मौकरी पकड़ी। काश्मीर लव राप्ता नदीके तीरवत्तों श्रावस्ती नगरीका शासन करते प्रदेशके राइक (रैक ) नामक स्थानसे आनेके कारण वे थे। शाक्यबद्धके अभ्यदय पर उत्तरकोशलराज्य बौद्धधर्म तथा उनके वंशधरगण राइकवाड कहलाने लगे। उनके की क्रीडाभूमि हो गया था। स्वयं बुद्धदेवने इस जिलेके सुशासनसे भर राज्य उन्नतिकी चरम सीमा तक पहुंच अतर्गत कपिलवस्तुमें जन्मग्रहण किया। वे श्रावस्तिमें . गया। पीछे भर-राजा बृटिश-सरकारसे कुछ सम्बन्ध १८वीं शताब्दीमें ठहरे थे। उनके नवधर्मके प्रभावसे . तोड़ देनेके लिये तैयार हो गये। उन्होंने यह सुख- यहां उस समय ब्रह्माण्यधर्मका लोप हो गया था। भोग बहुत दिन करने भी न पाया था, कि भर लोगों ने बुद्धदेव देखो। चीनपरिव्राजक फा-हियन यहांके बौद्ध उनकी हत्या कर अपना आधिपत्य फैलाया। यह घटना सङ्कारामादिका ध्वंसावशेष देख गये थे। ताण्डव नामक १४०६ ई०में घटी थी। प्राममें भी बहुत सी बौद्धकीर्तियोंका निदर्शन पाया जाता १५वीं शताब्दीके शेष भागमें इसका पूर्वभाग जन- है। यहां बुद्धको माता महामायाकी मूर्ति सीता-माई के वारके (बरियाशाहके वंश), दक्षिण अनसारीके, पश्चिम- रूपमें पूजी जाती है। राइकवाड़ और उत्तरांश स्वाधीन पार्वतीय सरदारों के राजपूत जातिके अत्याचारसे विताड़ित हो भरगण | अधिकारमें था। बहोल लोदीके भांजे कालापहाइके इस जिलेमें भा कर बस गये। धीरे धीरे उन्होंने अपना शासनकालमें यह स्थान दिल्लीकी अधीनता स्वीकार आधिपत्य फैला कर इस पर अपना दखल जमाया। । करनेको बाध्य हुआ। अकबरशाहके राजत्वकालमें १०३३ ई० में सैयद सलार मसाउदने बराइच पर (१५५६-१६०५) यह स्थान सरकार पराइच कहलाता आक्रमण किया। युद्ध में घे राजपूतोंसे पराजित और था। परवत्तींकालमें राहकवाड़ और जनवारों ने युद्ध- निहत हुए ; इनकी का भी यहीं पर हुई। उनका विप्रहादि द्वारा अपनी सम्पत्ति बढ़ानेकी कोशिश की। समाधि-मन्दिर मुसलमानोंके निकर तीर्थक्षेत्र समझा सम्राट शाहजहान् अपने कर्मचारीको उत्तरका ननपार जाता है। सुलतान समसुद्दीन अलतमसके पुत्र नासि- राज्य प्रदान किया। यह स्थान सारे अयोध्यामदेशमें रुद्दीनने १२४६ ई० में सम्राट होने के पहले इस जिलेका श्रेष्ठ गिना जाता है। शासन करते थे। पोछे अनसारी मुसलमानोंने इसके १७२४ ई०में अयोध्याके नवाब वजीरगण दिल्लीका कुछ अंश अधिकृत किये । सम्राट गयासुद्दीमके अधिकार अधीनता-गृङ्खल तोड़ कर स्वाधीन भावसे राज्य करने कालमें यहां सैयदवंशकी प्रतिष्ठा हुई और भरराजगण लगे। ६ नवाब सयावत् पौने अर्थ द्वारा राजल संग्रह निकाल भगाये गये। सम्राट फिरोजशाहके राजत्व करके अपने राजकोषको बढ़ाया। १८०७-१८१६ १०में कालमें यहां डकैतोंने भारी उपद्रव मचाया था। बरियाशाह बलाकीदास और उनके लड़के राय अमरसिंहके शासन नामक किसी मुसलमान सेनापतिने उनका दमन किया कालमें बराइच राज्यकी बड़ी उन्नति हुई। पीछे हाली अली खाँके कुशासनसे राज्य भरमें अशान्ति फैल गई। (१) प्रवाद है, कि ब्रह्माकी इकासे यह स्थान यागया के लिये १८४६-४७ ई०में रघुवर दयालने राजस्व संग्रहका भार निर्दिष्ट हुआ, इस कारण ब्रह्मान समाप्टिसे इसका ग्रहण किया। उनके शासनसे बराइच में घोर अत्याचार बराइब नाम पड़ा है। शुरू हो गया। १८५६ हमें अयोध्या मंगरेजी शामलों