पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२१०

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२०४ पराकजई-परागांव बराकजई जातिको संतुष्ट करनेके लिये विशेष पदान्यता बराकर-१ बङ्गालको एक नदो। यह छोटानागपुरके दिखलाने लगा। अतएव उसका दल दिन दिन बढ़ने अधित्यका प्रदेशसे निकल कर हजारीबाग, मानभूमी लगा। महमूद अपने भृत्यको इतना क्षमताशाली देख होती हुई शङ्कतोरिया प्रामके निकट दामोदरमें कर भी कुछ नहीं कर सके । वे फते खाँके अधीन बिल मिलती है। कुल रहना नहीं चाहत थे। पारसराजके हीरट अधिकार २ उक्त नदीका मुहाना भी बराकर कहलाता है। करने पर १८१६ ई०में महमूदने उसे वहां भेजा । इस युद्ध यहां कोयलेको एक खान है। इष्ट इण्डिया रेलवेका एक में भी फते खाने विशेष दक्षतासे पारस्य सैन्यको परास्त स्टेशन रहनेसे कोयलेके वाणिज्यमें बहुत सुभीता हो गया किया। उसका प्रभाव देख महमूद और उसका पुत्र काम-है। यहां राजा हरिश्चन्द्रका प्रतिष्ठित एक मंदिर है। रान जलने लगे। १८१८ ई०में वृद्ध वजीरको छलसे वंदी इसके अलावा विष्णुके नाना अवतारोंकी मूर्तियोंसे कर उसकी आखोंमें अग्निशलाका घुसेड़ दी । इस निष्ठुर शोभित और भी कितने मंदिर हैं। इसके ३ कोस उत्तर भाचरणसे बराकई जातिके सर्दारोंने विद्रोही हो, कल्याणेश्वरीका मन्दिर वा देवी स्थान है । उस मन्दिर में महमूद और कामरानका हीरट तक पोछा किया और कल्याणेश्वरी देवीमूर्ति प्रतिष्ठित है । यहांकी एक शिला- वहीं मार डाला। गजनीके पास दोस्त महम्मदके साथ | लिपिमें पञ्चकोटके एक राजाका नाम पाया जाता है। महमूदकी मुठभेड़ हुई थी। फते खाँने हत्याका प्रति कल्याणेश्वरी मदिरके सामनेवाले शिलालेखमें "श्रीश्री- शोध ले कर वराकजई सार दोस्त महम्मदके साथ मिल कल्याणेश्वरीचरणपरायण श्रीयुक्त देवनाथ देवशर्मा" ऐसा १८२३ ई०में काबुल नगर पर अधिकार जमाया और उनके लिखा है। मूल मदिरके पाश्वदेशमें और भी कितने ही भाई शेर दिल वहांके राजा हुए। इस प्रकार दुरानी वंश मदिर देखे जाते हैं। की सिदोजाई शाखाके अवसान होने पर वराकूजई जातिने इस देवीमूर्ति के स्थापनके विषयमें अनेक प्रवाद प्रच- अफगान राज्य पर प्रतिष्ठा प्राप्त को । १८३४ ईमें पारस लित हैं । एक समय किसी रोहिणीवासी ब्राह्मणने सम्मुख सेनापति अब्बास मिर्जाके हीरट पर आक्रमणसे राज्यमें नालेमें एक रत्नालङ्कारविभूषित हाथ ऊपर उठा हुआ गड़वड़ी मची। यह सुयोग देख सुजाने काबुल पर आक्र देखा । उसने पंचकोटके राजा कल्याणसिंहके पास जा कर मण कर दिया; किंतु दोस्त महम्मद और उनके भाई कुन् इसकी खबर दी। देवोके स्वप्नादेशके अनुसार राजाने दिलसे पराजित हो उसने खेलात माशिर खाँका आश्रय उस प्रस्तरको जलसे निकाल देवीमूर्ति स्थापन कर दी। लिया । कांधार युद्ध में विजयी होनेसे बराकजई जातिका | और भी सुना जाता है, कि वङ्गराज-कन्या कल्याणदेवी प्रभाव और भी बढ़ गया। सर्दार दोस्त मुहम्मदने लार्ड अपने मैकेसे पितृकुल देवीको ले कर ससुराल आ रही आकलैण्डक सुशासनसे भीत हो १८३१ ई०में रूसराजसे: थी। देवीने स्वप्नमें बालिकासे कह दिया था, 'यदि तुम मित्रता कर ली। इसी समय अलेकजेंडर वार्नेश दूतके मुझे कहीं एक बार जमीन पर रखोगी, तो मैं वहांसे रूपसे काबुल राजसभामें उपस्थित हुये। दोस्त महम्मद कभी नहीं उठ सकती।' राहमें इसी नदीके किनारे बह की इच्छा रहने पर भी रूसदूत भिटकोभिककी प्ररोचनासे बालिका आई और देवीमूर्तिको जमीन पर रख कर हाथ अगरेजोंके साथ मिलता न कर सके। इस पर अंग्रेजोंने पांव धोने लगी। पीछे जब वह उठाने आई, तब मूर्ति अपनेको अपमानित समझ इस पर सुजा उल-मुल्कको टससे मस न हुई। यह देख कर कल्याणदेवीने उसी अफगान-राज्यका यथायथ उत्तराधिकारी बना युद्ध के लिये जगह एक मन्दिर बनवा दिया। घोषणा कर दी। इसी अवसर पर सुजाने भी रणजित्- बरानति-रगपुर जिलेके अन्तर्गत एक नगर । सिंहको भूमिदानसे संतुष्ट कर १८३६ ईमें अंगरेजी बरागाई-छोटानागपुरके अन्तर्गत एक गएडशैल । यह सेनादल लेकर काबुल के सिंहासन पर अधिकार जमाया। समुद्रपृष्ठसे ३४४५ फुट ऊँचा है। दोस्त मुहम्मद अंगरेजोंके यहाँ वेतनमोगी नजरबन्दी हुए। वरागाँव---युक्तप्रदेशके बलिया जिलान्तर्गत एक नगर