पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२१७

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बम्मायण-बहिम ख २११ नगर । यह धर्मपुरी नामसे प्रसिद्ध है और इरावती नदीकी वह केतु ( स० पु०) वह केतुश्चिह्न यस्य। नवम मनुके बुधिल शाखाके बाएँ किनारे अवस्थित है। यहां तीन पुत्रभेद । अति प्राचीन मन्दिरोंका भग्नावशेष देखा जाता है। वहण ( स० वि० ) बह ल्यु। पत्र, पत्ता। अभी वह भन्दिर वृक्षोंसे ढक गया है। सबसे बड़े मंदिर- वह णा ( स० वि० ) शत्र हिसक, शत्र का संहार करने. में मणिमहेश नामक शिवमूर्ति, गणेश, दुर्गा आदि मूर्तियां वाला। प्रतिष्ठित हैं। शेषोक्त मन्दिर बालबर्मदेवके प्रपौत्र वहणायत् । स त्रि०) बह णा मतुप, मस्य व । हिसा. मेरुवर्मदेवने बनवाया था। इसके अलावा मेरुवर्म युक्त । द्वारा प्रतिष्ठित एक और गणेशमन्दिर देग्वा जाता है। बहणाश्व ( म पु०) राजा निकुम्भके एक पुत्रका बर्मायण ---गाजीपुर जिलेके बलिया नगरसे तीन कोस नाम । उत्तरमें अवस्थित एक प्राचीन नगर । वरिणजीके बहभार ( म०पू० ) बहसमह, मयरको पुच्छराशि। मन्दिरके लिये यह स्थान बहुत कुछ विख्यात है। एक बहंस ( स० क्ली० ) बह स्तुती असुन् । कुश-आस्त ब्राह्मणरमणी इस मन्दिरकी परिचारिका है। मन्दिरमें रण। एक शिलालिपि भी है। डा० कनिहमने शिलालिपिके . वर्हिस (सं० पु. ) वयति वहि वृद्धौ इमि, नलोपश्च । समयसे हो उसका प्राचीनत्व स्वीकार किया है। इसके प्रथिपर्ण, गठिवनका पेड़। अलावा सैकड़ों बौद्ध-सङ्कारामादिका ध्वंसावशेष देखनेमें वर्हिःपुष्प ( स० क्ली०) बहिदीप्तिस्तद्युत पुष्पमस्य । आता है। प्रथिपर्ण, गठिवनका पेड़। बथुर ( स० क्ली० ) बर्व-उरच । १ उदक, जल। बवू • बहिकुसुम (स क्ली०) बहिवह युक्त कुसुमं यस्ता प्रथि रक वृक्ष, बवूलका पेड़। पणं, गठिवन । वर्स (संपु०) प्रान्तभाग, अगला हिस्सा। बर्हिण ( स०पु० ) बह मस्त्यस्येति वह 'कलवर्हाभ्यामि बर्साना–युक्तप्रदेशके मथुरा जिलान्तर्गत छात तहसील- नच्' इति इनच वा ( बहुलमनालापि । उण २।४६ ) इति का एक शहर । यह अशा० २७३६ उ० तथा देशा० ७७ इनन्। १ मयूर, मोर । ( क्लो० ) २ तगर । २३ पू० मथुरा शहरसे ३१ मील उत्तर पश्चिममें अव- बहिणवाहन ( स पु० ) वहिणो मयूरो वाहनं यस्य । स्थित है। जनसंख्या ३५४२ है । यहांके हिन्दुओंका कार्तिकेय । विश्वास है, कि श्रीकृष्णकी स्त्री राधिकादेवीका यह वहिध्वजा ( स० स्त्री० ) बहों ध्वजो याहन यस्याः। प्रिय वास-भवन था। इसके पास ही ब्रह्मा नामका - चण्डी । एक पहाड़ है जिसकी चार चोटो पर १८वीं और १६वीं । बहिन् ( स० पु० ) बह-अस्त्यर्थ इनि । २ मयूर, मोर। २ शताब्दीके बने हुए चार भवन शोभा दे रहे हैं। उन चारमेंसे प्रधान भवनमें, कहते हैं, कि एक समय: वहिंपुष्प ( स० क्ली० ) वर्हि वहशालि पुष्प यम्य । प्रन्थि भरतपुर, ग्वालियर और इन्दौरराज-पुरोहित एक ब्राह्मण पर्ण, गठिवन। रहते थे। अभी यहां जयपुरके महाराजने एक बहियान (सं० पु० ) वहीं मयूरः यान यम्य । कात्ति सुन्दर मन्दिर बनवा दिया है। यहां बहुत सी पुण्य केय। सलिला पुष्करिणी भी हैं जिनमें स्नान करनेके लिये दूर दूरके लोग आते हैं। वर्हिज्योतिस ( स० ० ) वर्हिषि यज्ञ ज्योतिरस्य । वहि, बर्सात (हि. स्त्री० ) बरसात देखो। आग। बस्व (स.पु० ) दन्तपीठ। बहिर्मुख ( स० पु० ) वहिरग्निमुखं यस्य । देवता । अग्नि वह (स० क्ली० ) बह-अच। १ मयूरपुच्छ, मोरका . देवताओंके मुखस्वरूप हैं, इसीसे अग्निमें होम करनेसे वह पंख। २ पत्त, पत्ता। ३ परिवार, कुटुम्ब । देवताभोंको प्रान होता है। .: प्राधापुत्र।