पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२२

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१६ मम मेंसे जो निरन्तर आराध्य बुद्धिसे सेवन करते हैं, उन्हें चित्त हो अवसन्न हो पड़ा था। इस गोकुलस्थ सखाके ऐश्वर्यशानकी प्रधानता है और जो लाल्य हैं उन्हें सर्वतो. भी फिर चार भेद देखे जाते हैं। यथा --सुहत्, सखा, भावमें श्रीकृष्णके साथ स्वीय सम्बन्धस्फूर्ति होती है। प्रियसखा और प्रियनर्मसखा। घजस्थ इन दो दासभक्तोंके ऐश्वर्यज्ञान नहीं रहने पर भी सुहृत् सखागण श्रीकृष्णसे उमरमें कुछ बड़े और गोपराज नन्दन होनेके कारण वह ऐश्वर्यशान है। वात्सल्यगन्धयुक्त थे। ये अस्त्रादि धारणपूर्वक श्रीकृष्ण- सख्य-प्रम। की सर्वदा रक्षा करते थे। सुभद्र, मण्डलीभद्र, भद्रवद्धन, इस सख्यरसमें द्विभुजधारी श्रीकृष्ण विषयालम्बन गोभट, यक्ष, इन्द्रभट, भद्राङ्ग, वीरभद्र, महागुण, विजय और उनके वयस्यगण आश्रयालम्बन हैं। व्रजस्थ द्विभुज और बलभद्र आदि सुहृत् हैं। इनमेसे मण्डलीभद्र और और अन्य स्थानस्थ द्विभुज कृष्णभेदसे आलम्बन दो बलभद्र श्रेष्ठ हैं। प्रकारका है। फिर वयस्यगणके भी पुरसम्बन्धी और __बलभद्रका प्रेम, यथा- प्रजसम्वन्धाके भेदसे दो भेद हैं। अर्जुन, भीम, द्रौपदी, "जनितिधिरिति पुत्रप्रेमसम्वीतयाह श्रीदामविप्र आदि पुरसम्बन्धि सखा है। इन सखाओंमें स्नपयितुमिह मद्मनाम्वया स्तम्भितोऽस्मि । अर्जुन दी सर्वश्रेष्ठ हैं। इति सुवल ! गिरामें संदिशत्वं मुकुन्द ___व्रजसम्बन्धि सखा -जो मवेदा कृष्णके साथ विहार फणिपतिहदकच्छे नाद्यगच्छेः कदापि ॥" करते हैं, जिनका जीवन कृष्णगत है और क्षणमात्र भी बलरामने कहा, -सुवल ! कृष्णसे जा कहो, कि 'आज बिना कृष्णके नहीं रह सकते, ये ही व्रजस्थ सखा हैं। ये उनकी जन्मतिथि है, इस कारण उनकी जननीके साथ मैं ही सभी सखाओंसे श्रेष्ठ हैं। उन्हें स्नान कराने के लिये घरमें ठहरा हूं, वे कभी भी व्रजवयस्यगणका प्रेम, . आज कालियह्रदको ओर न जाय ।' "इत्थं सतां ब्रह्मसुखानुभूत्या दास्यं गतानां परदैवतेन। जो उमरमें कुछ कम, दास्यगन्धियुक्त, सख्य और मायाश्रितानां नरदारकेण साद्धं विजहम्ः कृतपुण्यपुञ्जाः॥" प्रेमशाली हैं, वे ही सखा कहलाते हैं। . ( भागवत १०म स्कन्ध ) : विशाल, वृषभ, ओजस्वी, देवप्रस्थ, वरूथप, मकरन्द, शुकदेवने कहा,---भगवान् हरि विद्वज्जनके लिये कुसुमापीड़, मणिबन्ध और करन्धम आदि श्रीकृष्णके स्वप्रकाश परम सुखस्वरूप, भक्तजनके लिये आत्मप्रद सखा थे । इन सखाओंमें देवप्रस्थ ही श्रेष्ठ थे। देवप्रस्थ- परम देवता और मायाश्रित जनके लिये नरवालकरूपमें का सख्य-प्रेम, यथा--- प्रतीयमान होते हैं। उन भगवान के साथ गोपबालक- किसी सन्देश द्वारिकादूतीने श्रीराधासे कहा, गण जब इस प्रकार बिहार करने लगे, तब यह अघश्य' 'सुन्दरि ! श्रीकृष्ण पर्वतगुहामें श्रीदामकी लम्बीभुजा पर मालूम होता है, कि उन सब बालकोंके पुण्यपुञ्ज था। मस्तक और दाम नामक सखाकी वाई भुजाको अपनी वयस्योंके प्रति श्रीकृष्णका प्रेम, .. छाती पर रख कर सो रहे हैं तथा देवप्रस्थ नामक सखा "सहचरनिकुरम्बभ्रातरार्य ! प्रविष्ट प्रेमके साथ उनका पैर दबा कर उस प्रियतमको सुख द्र तमघजठरान्त कोटरे प्रेक्षामाणः ॥ पहुंचा रहे हैं। स्खलदशिशिरवाप्प-क्षालितक्षामगण्डः तुल्यवयस और केवल सख्याश्रयी सखाओंको प्रिय- क्षणमहमवसीदन् शूनाचित्तस्तदासं ॥" सखा कहते हैं । श्रीदाम, सुदाम, दाम, वसुदाम, किङ्किणी, श्रीकृष्णने बलरामसे कहा, हे आर्य ! हे भ्रातः ! स्तोककृष्ण, अंशु, भद्रसेन, विलासी, पुण्डरीक, विटङ्क महबरोंको अघासुरके जठरकोटरमें प्रविष्ट होते देख : और कलविङ्क आदि गोप-बालकगण श्रीकृष्णके प्रिय- नयनस्खलित उष्ण अश्र ने मेरे गण्डदेश क्षालन करके : सखा थे। इनमेंसे श्रीदाम हो श्रेष्ठ थे। श्रीदामका प्रेम, क्षीण कर डाला था। इस कारण मैं क्षणकाल शून्य- पथा ---