पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बल-बलद बादल। १७ दैत्यविशेष ! देवीपुराणमें इसके विषय- ३ टेढ़ापन, कज । ४ अन्तर, फर्क। ५ अधपके जौकी में ऐसा लिखा है बाल । ६ फेरा, लपेट । ७ लहरदार घुमाव, पेच । ८ पूर्व कालमें वल नामका एक महावलिष्ठ पराक्रमी सिकुड़न, गुलझट । दैत्य था । इन्द चन्द प्रभृति अमरगण और यक्ष बलकना (हिं० कि०) १ उवलना, उफान खाना, खौलना। गंधर्व गण उससे डरते थे। उम दैत्यने देवताओं को २ उमड़ना, जोशमें आना। युद्ध में परास्त कर स्वर्गमें इन्द के मिहामन पर अधि.. वलकन्द ( स० पु. ) मालाकन्द । कार जमाया। पोछे उमने महाविषधर नागेन्द्रोंको बल बलकर ( सं० त्रि०) करोतीति करः, वलस्य करः। १ पूर्वक अपने काबूमें किया और गगड़को अपना भृत्य बलजनक, जिससे बलकी गृद्धि हो । ( क्ली० ) २ अस्थि, बना कर ब्रह्मा सहित समस्त स्वर्गवासी देवोंको स्वर्गसे हही । पाताल मार भगाया। देवगण सौ वर्ष तक उसके भयसे । बलकल ( संपु० ) बस्कल देखो। पातालमें रहे। पीछे उन्होंने वृहस्पतिकी शरण ली । बह- बलकाना ( हि क्रि० ) १ उबालना, खौलना २ उत्ते- स्पतिके परामर्शसे वे विष्णुके पास पहुंचे । विष्णुने उनसे जित करना। उभारना । कहा, "हे देवगण ! महाबलिष्ठ वल अतिशय नीति-परायण, बलकुआ (हिं० पु० ) पूर्वीय भारतमें मिलनेवाला एक धार्मिक और युद्धमें अजेय है उसे युद्ध में पराजय करना सहज प्रकारका बाँस । यह चालीस पचास हाथ लंबा और नहीं” अनन्तर वे सबके सब महामायाको शरणमें गये। दश बारह अंगुल मोटा होता है। गांठे इसकी लंबी महामायाको मोहनीविद्यासे विष्णु वृद्धब्राह्मणका रूप धारण होती हैं जिन पर गोल छल्ला पड़ा रहता है। यह कर वेदपाठ करते करते बलासुरके द्वार पर उपस्थित हुये। बहुत गुढ़ होता है और पाइट बांधनेके कामके लिये बहुत विष्णुमोहिनी मंत्रको जप वे बलासुरसे बोले, "मैं कश्यप- अच्छा होता है। इसका दूसरा नाम भलुआ, बड़ा पुत्र है, मुझे देवोंने भेजा है, ऋषियों ने देवों के साथ यज्ञ बांस, सिलबरुआ भी है। आरम्भ किया है, मैं उसी यज्ञको निष्पादनके लिये बलकृत (स.नि.) बलं करोति कृ-किप, तुक च । बल- आपके पास आया है। आप दान दीजिये जिससे यह कारक। यज्ञ सम्पन्न हो। बलासुरने यह सुन प्रतिज्ञा की, 'जो वलक्ष ( स० पु० ) बलतेः किप बलं अक्षत्यस्मिन् घ, वस्तु तुम्हें यज्ञ करनेके लिये आवश्यक होगी वह मैं वलक्ष इति । १ श्वेतवर्ण। (त्रि०) २ बलयुक्त। दूंगा, यहां तक कि मैं अपना जीवन भी दे सकूगा।' बलखिन् ( स० त्रि०) वाह लोक-देशागत । विष्णुरूपी वह द्विज उपयुक्त समय देख बोले, 'वह, बलगुप्ता (सं० स्त्री०) बौद्ध रमणीभेद । यज्ञ तुम्हारे शरीरसे ही सम्पन्न होगा। अतएव मैं तुम्हारे बलचक्र ( स० क्ली० ) १ सैन्यव्यूह। २ राजदण्ड । शरीरको मांगता हूँ। ऐसा कह उन्होंने उसका मस्तक । बलचक्रवर्तिन (संपु०) सम्राट, राजराजेश्वर । सुदर्शनचकसे काट डाला। अब उस दानवने भौतिक : बलज ( स० क्ली०) बलकृतसाहसयुद्धादिकात् जायते देहका परित्याग कर दिव्य देह प्राप्त की बलासुर-: बल-जन-ड। १क्षत्र, खेत । २५ । २ पुरद्वार, नगरका के अङ्ग प्रत्ङ्गो मे हीरा मोती माणिक पन्ना बन गये द्वार। ३ शस्य, फसल। ४ धान्यराशि, धानका ढेर । और उसका शरीर सत्पात्रके दान करनेसे रत्नाकर हुआ। ५ युद्ध, लड़ाई । ६ द्वार, दरवाजा। (लि०) ७ ( देवीपुराण ५० अ०) बलजन्य । १८ भार उठानेकी शक्ति, सह । १६ माश्रय, सहारा। बलजा (सं० स्त्री० ) बलज-टाप । १ पृथ्वी । २ यथिका, २० आसरा, भरोसा। २१ पाश्व, पहलू । (त्रि०) २२ / एक प्रकारको जुही। ३ रज्जु, रस्सी। बलयुद्ध, ताकतवर। बलद ( सं० पु०) बल ददातोति दा-क । १ जीवक नामका वल (हि पु० ) १ लपेट, फेरा। २ ऐंठन, मरोड़। वृक्ष। २होमाग्नि। होम करनेके समय कार्य विशेषमें