पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२२६

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२२० बलवनसिंह-बलविन्यास उन्हींकी कृपासे बलवन्ने उमरावका पद प्राप्त कर उनकी १८२५ ई० में इनके भाई विख्यात जाट-सरदार दुर्जन- कन्यासे विवाह किया । अलतमसके लड़के नाशिर-उद्दीन शालने इन्हें राज्यच्युत करके सिंहासन पर अधिकार जब दिल्लीके सिंहासन पर बैठे, तब वलवन् वजीर (प्रधान जमाया। १८२५ ई०में भरतपुर-दुर्गके अवरोध और जयके पद पर अभिषिक्त हुए। १२६६ ईमें ये दिल्ली- बाद वृटिश सरकारने बलवन्तको फिरसे सिंहासन पर श्वरको राज्यच्यत और निहत करके सिंहासन पर अधिष्ठित किया। १८५३ ई०को ३४ वर्षकी अवस्थामें अधिकार कर बैठे। १२७६ ईमें बङ्गालके शासनकर्ता इनको मृत्यु हुई। पीछे उनके पुत्र यशोवन्त राजसिंहा- अमीन खाँके नायब तुगरल खाँको जब मालूम हुआ सन पर बैठे। सम्राट् बलवन् रुग्नावस्थामें पड़े हैं, तब उन्होंने विद्रोही बलवद्ध न ( स० पु० ) १ सैन्यवृद्धि । २ धृतराष्ट्रके पुल- हो कर पहले सुलतान अमीन खाँको कैद कर लिया और । का नाम। पोछे सुलतान मगिस उद्दीन नाम धारण कर अपनेको | बलवर्जिन ( स० वि० ) बलं बर्द्ध यति वृध णिनि । बल- स्वाधीन राजा बतलाते हुए तमाम घोषणा कर दी। वृद्धिकारक, बल बढ़ानेवाला। सम्राट्ने यह संवाद पाते ही दो दल सेना उसके विरुद्ध | बलवर्मदेव-एक हिन्दू राजा। भुजङ्गिका नामक स्थानमें भेजी। किन्तु बङ्गश्वरको परास्त करना उनके लिये इनको राजधानी थी। समुद गुप्तकी लिपिसे मालूम होता टेढ़ी खीर था । आखिर सम्राट्ने उसका दमन करनेके लिये है, कि इनकी माता तथा स्त्री दोनोंका माम दस- सय बगाल पर चढ़ाई कर दी। तुगरल खो त्रिपुराको देवी था। भागा, पर रास्ते हीमें पकड़ा और मार डाला गया। यह बलवमन (सं० पु०) एक प्राचीन हिन्दू राजा । इन्हें समुद्र- घटना १२८२ ईमें घटी थी। इस अभियानकालमें सम्राटः गुप्तने परास्त किया था। को सुवर्णग्रामके हिन्द-राजाओंसे सहायता मिली थी। बलवला (सं. स्त्रो०) गन्धक । लौटते समय वे अपना द्वितीय पुत्र नाशिर उद्दीनको बलवा ( फा० पु० ) १ विप्लव, दगा । २ विद्रोह, बगा- बङ्गालके शासनक पद पर नियुक्त कर गये । बीस वर्ष वत। राज्य करनेके बाद ये १२८६ ई० में परलोकको चल बसे। बलवाई (फा० पु०) विद्राही, वागी । २ उपदवी, फसादी । पीछे उनके नाती मोइज-उद्दीन कैकोबादने बङ्गालसे जा बलवान् ( सत्रि .) १ बलिष्ठ, ताकतवर। २ढ, कर दिल्लीके सिंहासन पर अधिकार जमाया। मजबूत। ३ सामर्थ्यावान, शक्तिमान् । (पु०) ४ आहार । बलवनसिंह काशीपति महाराज चैतसिंहके पुत्र। ५कफाशणवीज। ग्वालियरमें इनका जन्म हुआ था। पिताकी मृत्युके बाद बलविकर्णिका ( स० स्त्री०) दुर्गाका एक नाम । ये सपरिवार आगरेमें आ कर बस गये थे। उस समय बलविन्यास ( स० पु०) बलानां सैन्यानां विशेषेण इस राज-परिवारके भरणपोषणके लिये मासिक २ हजार दुर्भद्यत्वेन न्यासःस्थापन। युद्धके लिये सैन्य व्यूह रुपपेकी वृत्ति मिलती थी। ये उदूभाषामें एक दीवानकी रचना । सेना इस प्रकार सजानी चाहिये जिससे शत्रुगण रचना कर गये हैं। उसे भेद कर न आ सके। यह बलविन्यास मकर. बलवन्त (स.नि.) बलवान् , बली। पद्मादिके भेदसे नाना प्रकारका है। मनुमें लिखा है.... बलवन्तसिंह - १ काशीके अधिपति, राजा मानसरामके यात्राकालमें यदि चारों ओरसे भयकी आशङ्का रहे, पुत्र और ख्यातनामा चैतसिंहके पिता । १७४३ ईमें यह तो राजा दण्डव्यूह, पीछेकी ओर भय होनेसे शकर- राजपद पर अधिष्ठित हुए। ३० बर्ष राज्य करने के बाद व्यूह, दो ओरसे आशङ्का होनेसे बराह और मकरव्यूह, इनका देहान्त हुआ। __ आगे पीछेको ओर भय होनेसे गरुडव्यह तथा केवल २ भरतपुरके जाटवंशीय एक राजा! ये १८२४ ई० सामनेकी ओर भय होनेसे सूचीव्यूहकी रचना करके में पिता बलदेवसिंहके सिंहासन पर अधिष्ठित हुए। यात्रा कर दे। राजा अब जिस ओर विपदकी अधिक