पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बलिभुक-लूचिस्तान २३५ (मिलि बट डण । पापा२।१३६) इति भ । १ बलिन, कारी, बलि लानेवाला । २ करप्रद, कर देनेवाला । (पु०) जरा द्वारा श्लथचर्मयुक्त, बुढ़ापा आने पर जिसका ३राजा। चमड़ा ढीला हो गया है। (पु.)२वद्ध पुरुष, बूढा बलो ( स० स्त्री०) वलि-पक्षे ङीष । १ बलि, चमड़े परकी आदमी । | मुरी । कुष्ठौषधिको अच्छी तरह चूर कर घृत और माक्षिक- बलिभुक (सं० पु०) कौवा । के साथ रातको सेवन करनेसे बलीपलित विनए होता बलिभुज ( स० पु०) बलिं भुज किए । १ काक, कौवा । है। २ वह रेखा जो चमड़े के मुड़ने या सुकड़नेसे पड़ती २ चटक, गौरैया । ३ बक, बगला। है। (त्रि०) ३ बलवान्, पराक्रमी। बलिभृत् (स० वि०) १ करदाता, कर देनेवाला। २ बलोक ( स० क्ली० ) पटलप्रान्त, ओलती। अधीन, मातहत। बलोन ( स० पु० ) १ वृश्चिक, बिच्छ । २ असुरभेद । बलिभोजन (सपु०) काक, कौवा । बलीजा (हि० स्त्रो०) एक प्रकारकी हेल मछली। बलिभोजी (सपु० ) काक, कौवा । बलिबैठक ( हिं० स्त्री०) एक प्रकारको बैठक। इसमें बलिमत् (सं० वि०) १ वृद्ध, बूढ़ा। २ उपहारविशिष्ट । ज'घे पर भार दे कर उठना वैठना पडता है। इससे जांघ बलिमन्दिर (सं० क्ली० ) अधोलोक, पाताल । शीघ्र भरती है। बलिया-युक्तप्रदेशके अन्तर्गत एक जिला। बलीमुख (स० पु०) बलीयुक्त मुखं यस्य । बानर, बदर । विशेष विवरण मलिया शब्दमें देखो। बलीयस् ( सं० वि० ) अतिशय बलयुक्त, बलिष्ठ । बलिवद (सं० पु०) वृष, सांढ़। बलीयान् ( स० पु० ) गदभ, गदहा । बलिवेश्मन् ( स० क्ली० ) बलिका आलय, पाताल। बलीवर्द ( स० पु० ) बलो च ईवर्दश्च इति। वृष, बैल । बलिवैश्यदेव (सपु०) भूतयक्ष नामक पांच महायज्ञोंमें बैल पर चढ़ कर यात्रा नहीं करनी चाहिये, जो अशान- चौथा महायज्ञ। इसमें गृहस्थ पाकशालामें पके अन्नसे वशतः ऐसा करते हैं उन्हें नरक होता है और उनके एक एक प्रास ले कर मन्त्रपूर्वक घरके भिन्न भिन्न पितृगण उनके हाथका जलग्रहण नहीं करते। बैल- स्थानों में मूसल आदि पर तथा काकादि प्राणियोंके लिये : गाड़ी पर चढ़ कर यात्रा करना भी निषिद्ध बतलाया भूमि पर रखता है। गया है। बलिश ( स०पु० ) वंशी, कटिया। बलीवर्दिनेय ( संपु०) बलीवर्दका अपत्य । बलिष्ट । स० पु० ) अतिशयेन बलवान् इष्ठन् मतुपो लुक, । बलीशक (सं० पु०) आम्रातक वृक्ष, अमड़े का पेड़। प्रशस्तभारवाहकत्वादस्य तथात्वं । १ उष्ट्र, ऊंट । २ धर्म बलीह ( स० पु०) वहीक, उस देशके लोग। सावर्णिक मन्वन्तर्गत ऋषिभेद । (माकपडेगपु० ६४।१६) बलुआ ( हिं: वि० ) १ रेनिला, जिसमें बालू अधिक मिला (त्रि०) ३ अतिशय बलवान् । ये सब बलवान् हैं वायु, । हो। (पु० ) २ वह मट्टी या जमीन जिसमें बालूका विष्ण, गरुड, हनमान, यम.महावराह, शरभ. सत्पतिशा. अश आधक हो। गज, पृथुराज, बलराम, बली, बलि, भीम, सती, शेष और बलूध-एक जाति जिसके नाम पर देशका नाम पड़ा। पुराकृत। (कपिलता) वलूच। देखो। बलिष्णु ( स० त्रि०) बल्यते बध्यते इति बल-इष्णुच। बलूचिस्तान-भारतवर्ष के उत्तर पश्चिम दिगवती एक अपमानित । राज्य। अक्षा० २४५४ से ३२४ उ० और देशा० ६० बलिसमन् (सक्ली०) रसातल। ५६ से ७०१५ पू०के मध्य अवस्थित है। इसके उत्तरमें बलिहन (स.पु.) विष्णु, वामनदेव । अफगान राज्य, पूर्व में भारतीय सिंधुप्रदेश, दक्षिण- बलिहारी (हिं० स्त्री०) प्रेम, भक्ति, श्रद्धा आदिके कारण में आरव्योपसागर और पश्चिममें पारसराज्य है। सिंधु- अपर्णको उत्सर्ग कर देना, निछावर। प्रदेशके दक्षिण पश्चिम कोणस्थ मोक्ष नामक अन्तरीप- बलिहत (स.लि०) बलिं हरतीति किम् । १ बलिहरण- से ले कर पश्चिमाभिमुखमें दस्तनदीतीरवतो जूनि