पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२४७

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बबालरोन २४१ अधिकारकालमें यह पर्वत दूरविस्तृत दुर्गमालासे सुशो- लक्ष्मणसेन और उनके पुत्र विश्वरूपके तान- मित था। शासन तथा बल्लालके स्वरचित प्रथ और ताम्रशासनमें बल्लालसेन-गौड़देशके सेनवंशीय एक राजा। गौड़में बल्लालसेन "निःशंक शंकर गौड़ेश्वर" और महावीर कह जितने राजा हो चुके हैं उन सबमें सेनवंशीय बल्लाल कर वर्णित हुये हैं। बल्लालचरित लेखक आमन्दभट्ट- का नाम बङ्गालमें किसीसे छिपा नहीं है। बल्लाल ने लिग्ता है, 'बल्लालसेन राढ़, वरेन्द्र, वगडी, वङ्ग और सेनके जन्म और जातिको ले कर अनेक लोग अनेक मिथिला इन पांच गौड़के अधीश्वर थे। उनके समय प्रकारको बातें कहते हैं। आधुनिक वैद्य कुलजीके ! भी मगधर्म बौद्धआधिात्य विलुप्त नहीं हुआ था। इस मतमें- समय सुवर्णवणिको में बलभानंद प्रधान थे; वे मगधा- "आदिशरका वंश ध्वंस सेनावंश ताजा। धिपतिके श्वशुर होते थे । वल्लालसेनने इनसे युद्ध. विष्वकसेनका क्षेत्रज पुत्र बल्लालसेन राजा ॥" के लिये कुछ रुपये कर्ज मांगे थे, पर वल्लभानंदने नहीं फिर विक्रमपुरमें यह प्रवाद इनके विषयमें सुना जाता दिये। इस कारण सुवर्णवणिको के ऊपर सेनवंशका है-बल्लालसेन बैद्य थे, ब्रह्मपुत्र नदके पुत्र थे, सेकशुभो अत्यन्त प्रकोप रहा। दया नामक ग्रन्थमें भी इसो किंवदन्तीका उल्लेख मिलता है। आईन-इ-अकबरीके मतमें ये कायस्थ बतलाये बल्लालसेनने गौड़राजधानी में एक बड़ा भारी यह गये हैं। किन्तु बल्लालसेनके स्वरचित दानमागर और किया। उस समय यशसभामें विक्रमपुरसे ध्र वसेन, अद्भुत सागर, सेनराजाओंकी शिलालिपि, हरिमिश्रको सुखसेन, भीमसेन आदि इनके आत्मीय लोग उपस्थित कारिका और आनंदभट्टरचित बल्लालचरितमें (२ हुए। भीमसेनके ऊपर आहारके बन्दोवस्त करनेका बल्लालसेनको चन्द्रवंशीय ब्रह्मक्षत्रिय (३), विजयसेनके | भार था। भोजन स्थानमें ब्राह्मण, क्षत्रिय और शूट इन पुल, हेमन्तसेनके पौत्र और सामन्तसेनके प्रपौत्र बत- । तीन बर्गोका आसन निर्दिष्ट था। सभी जाति अपने अपने आसन पर बैठी। शद्रों के साथ सोनारोंका आसन लाया है। दिया गया था। किन्तु कोई भी सोनार निर्दिष्ट आसन पर न बैठे और चले गये। भीमसेनने बल्लालसे कहा, (१) बल्लालके कायस्थ होने में लोग यह कारण बत- लाते हैं, कि इस वंशने कायस्थको कन्या दी थी। "सोनारों का नेता बड़ा अभिमानी हो गया है, वह मग- चद्वीप देखो। धेश्वर पालराजका श्वसुर बन कर धराको मिट्टीके बर्तन (२) पहिले 'कुलीन' शब्दमें मुद्रित बल्लालचरित पर समान समझने लगा है। वह दुवृत्त वृषल स्वजनवर्ग के निर्भर करके लिखा गया था, कि १३०० शकमें बल्लाल - साथ आपको अवज्ञाकर चला गया है।" इस पर बल्लाल- नामके एक स्वतंत्र वैद्यवंशीय राजा विक्रमपुर अंचलमें सेनने अत्यन्त क्र द्ध हो तमाम ढिढोरा पिटवा दिया, राज्य करते थे किन्तु इस समयकी हस्तलिखित बल्लाल कि आजसे सभी सोनारों की शूद में गिनती हुई। चरितकी पोथीसे मालूम होता है, कि बल्लाल ब्रह्मक्षत्रिय थे और अङ्गाधिप कर्णके वंशमें इनका जन्म हुआ था। जो ब्राह्मण इनका याजन, अध्यापन और प्रतिग्रह करेंगे, (३) ब्रह्मक्षत्रियको उत्पत्ति ले कर बल्लालचरितकी। धे निश्चय पतित होंगे। यह राजादेश सुन सुवर्णकार पोथीमें लिखा है- बड़ बिगड़े और उन्होंने दासव्यवसायियों से दूना, "ब्रह्मक्षत्रस्य यो योनिवंशः क्षत्रियपूर्वजः। तिगुना मूल्य दे कर सभी दास खरीद लिये। दासा सेनवंशस्ततो जातो यस्मिन् जातोऽसि पाण्डव ॥" भावसे प्रजाको महा कष्ट होने लगा। इस समय कैवत- दाक्षिणात्य और सिन्धुप्रदेशमें आज भी क्षत्रिय लोग राजादेशसे दास्यकर्ममें नियुक्त हुए और वे जला- रहते हैं। उनकी अवस्था कायस्थों के समान है और चरणीय भी समझे जाने लगे। कैवतीका प्रधान महेश किसी स्थानमें ये कायस्थ कहे जाते हैं। कुलीन देखो। पहले महत्तर था, अभी वह महामाएडलिक हो दक्षिणघाटमें . Vol. xv, 61