पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२६१

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बहादुर खा-बहादुर गिलानी इनका असली नाम महम्मद सैयद था। हुमायूं फारससे | बहादुर खां-बिहारके एक शासनकर्ता। इन्होंने अपने लौटते समय इन्हें दावरका शासन-भार सौंप गये पिताकी मृत्युके बाद अपनेको स्वाधीन राजा घोषित थे। कुछ ही दिन बाद बहादुरने विद्रोही हो कर कान्धार किया था। दिल्लीके बादशाह इब्राहिम लोदीके राज- पर दहाल करना चाहा । खिलातके शाह महम्मद त्वकालमें ( १५२५ ई० में ) इन्होंने दिल्लीको सेनाके साथ गां उस समय कान्धारके सेनापति थे। उन्होंने फारस बड़ी तैयारीके साथ कई युद्ध किये थे, जिसमें पे विजयी के बादशाहसे सहायता मांगी। कुछ काजलबासोने हुए थे और शम्भलप्रदेश पर्यन्त स्थान अधिकार किया बहादुर खां पर हमला किया था, उस समय उन्होंने था । भाग कर अपनी रक्षा की थी। बहादुर खां सिस्तानी --मालव-राज अबदुल्ला खां उजबेग- बहादुर सांके आचरणसे दिल्लीके बादशाह उनसे बहुत का एक सहकारी सरदार । १५६६ ई०में सम्राट अक- ही नाराज थे। अकबरने अपने राजत्वके ३२ वर्षमें बरने उजबेगके विरुद्ध युद्ध किया था, जिसमें मालवराज- मानकोट अधिकार किया। इस समय बैरामसांके अनु- के सहकारी सरदारोंने अन्य कोई उपाय न देखा मुगल- रोधसे उन्होंने बहादुरको क्षमा कर दिया । बहादुर खां- बादशाहकी शरण ली थी। परन्तु बहादुर खांने अपनी को मूलतानकी जागीर मिली थी। दूसरे वर्ष मालव-जयके फौजके साथ जमुना पार कर अन्तर्वेदीके बीम मुगल- समय इन्होंने बादशाहकी सेनाकी काफी सहायता की सेनापति मीर मैज-उलमुल्क पर धावा मारा। उसमें थो । बैरामगांके पतन होने पर माहुम-अनगाको कोशिश- मुगलोंकी सेना परास्त हो कर कनौजकी तरफ भाग से बहादुरणां 'वकील' और इटावा सरकारके शासन- गई। उसके बाद खां जमानके विद्रोह-दमनके लिए कर्ता हुए थे। गान् जमानके विद्रोहके समय ये भी अकबरशाह जब गाजीपुरको तरफ बढ़े, तो वहादुर णांने भाईके साथ जा मिले थे। इसी अपराध पर ये अकबर- मौका समझ जौनपुर दखल कर लिया। अकबर बहादुर के आदेशसे कैद कर लिये गये और शाहबाज खां कम्बूके खांकी क्षमताको खर्च करनेके अभिप्रायसे जौनपुर लौटे। हाथसे मारे गये । भाईकी तरह ये भी एक विद्वान् पुरुष सम्राटके आगमनसे भयभीत हो कर बहादुर गां | बनारस भाग गये। वहांसे बहादुरने सम्राटकी अधीनता बहादर खो-खानदेशके एक अधिपति, फरुखीवंशके राजा। स्वीकार कर मा-प्रार्थना की थी। अली खकि पुत्र। राजा अली खान अकबरका तरफस बहादर गिलानी. दाक्षिणात्यके बाह्मनी राजवंशके अधः- दाक्षिणात्यके राजाओंसे घोरतर युद्ध किया था। उसोमें। पतनके समय ( १४७३-१४८६ ई में ) जब बीजापुर जुन्नर वे शत्रओंके हाथ मारे गये। इस समय बहादुर खां आदि स्थानोंके शासनकर्त्ताओंने अपना अपना प्रभाव जमा असीरगढ़में कैद थे। ऊंचे खानदानमें उत्पन्न होने पर भी कर स्वाधीनता प्राप्त और स्वतंत्र राजवंशको प्रतिष्ठा की दोरमें सुख शान्ति न लिखी थी। यही कारण थी. उस समय कोण प्र.शके शासनकर्ता बहादुर है, कि उन्होंने १० वष तक कारावासका कष्ट सहा था। गिलानीने भी स्वाधीन होनेकी चेष्टा को थी। पहोंने पिताकी मृत्युके बाद १५६६ ई०में ये राजा तो हुए, पर विटोही हो कर बेलगाम और गोआ अधिकार किया था। सुशिक्षाके अभावसे और निबुर्द्धिताके कारण ये दिल्ली- । शङ्कश्वरमें अपना राजपाट स्थापन कर इन्होंने १४८६ श्वरकी अधीनता स्वीकार न कर सके। आखिर दिल्ली-

ई में मिराज और जामण्डी जय किया था। उसके

से बादशाहकी फौज चली आई और हमला कर असोर- ! बाद कोकण उपकूलमें नौ-सेना रणनेकी चेष्टा करने पर गढ़ पर कब्जा कर लिए। इस तरह बहादुर खांने अपना १४६३ ई०में सुलतान महमूदखेगके उद्योगसे और बीजा- राज्य खो दिया। बहादुर खां-औरङ्गजेबका एक प्रिय सेनापति । इन्होंने पुरके राजा युसुफ आदिल खां महमूदशाहकी सहायता दाराशिकोहको पुन-सहित बन्दी करके औरङ्गजेबके सामने रोमाने से बहादुर गां गिलानी मिराजमें पराजित हुए और मार हाजिर किया। डाले गये। जामण्डी और शङ्कश्वर महमूदशाहके