पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२५६ बहादुर खां नाहर-बहादुर निजामशाह हाथ लगा और बेलगाम आदि अन्य सम्पत्तियां जैन-उल- बहादुरगञ्ज-युक्तप्रदेशके गाजीपुर जिलेके अन्तर्गत एक मुल्कको दे दी गई। नगर। बहादुर नाहर -राजपूतानेके अन्तर्गत मेवाड़ प्रदेशके बहादुरखेल-पावप्रदेशके कोहट जिलान्तर्गत एक गएड लांजादा राजवंशके प्रतिष्ठाता । तैमूरके दिल्ली आक्रमण प्राम। यह अक्षा० ३०.१० ३०” तथा देशा० ७०५६ के पहले और बादमें इन्होंने दिल्लीराज-दरबारमै विशेष | १५ पू०के मध्य विस्तृत है। इसके दक्षिणमें जो पर्वत प्रतिष्ठा पाई थी। सम्राट फिरोजशाहने इनकी वीरता | श्रेणी है उस पर सेंधा नमक पाया जाता है। उसी देखा कर इन्हें नाहर'की उपाधि दी थी। फिरोजाबादसे| नमककी खानके लिये यह स्थान बहुत कुछ मशहूर है। ३० कोस दक्षिणके पर्वतके नीचे बसे हुए कोटिला नगरमें | काबुल, बलूचिस्तान, देराजात, सिन्धु और भारतवर्ष के हलकी राजधानी थी। इस नगरकी रक्षाके लिए उन्होंने | प्रायः प्रत्येक नगरमें इस नमककी रफ्तनी होती है। पर्वतके ऊपर तीन दुर्ग बनवाये थे। १३८६ ईमें बहादुरगढ़-पजाबप्रदेशके रोहतक जिलेके अन्तर्गत एक (हिजरी ७६१ ) इन्होंने फिरोजाबाद पर अपना कब्जा | मगर । यह अक्षा० २८ ४१ उ० तथा देशा० ७६५६ पू०-. किया। पीछे राजपुत्र आब बकरकी सहायतासे इन्होंने के मध्य विस्तृत है। पहले यह नगर सरफाबाद नामसे दिल्लीश्वर महम्मदशाहको सिंहासनसे उतार कर आबूको प्रसिद्ध था। १७५४ ई० में मुगल-सम्राट श्य आलमगीर- राना बनाया था। परन्तु महम्मदने जब फिर दिल्ली- | ने २५ प्रामोंके साथ यह नगर बहादुर खाँ नामक किसी सिंहासन अधिकार किया, तब आबू बकरने पराजित हो बलूच सरदारको दान कर दिया। उक्त सेनापतिने एक कर मेवाड़में जा बहादुरकी शरण ली। ७२ हिमें दुर्ग बना कर इस स्थानको अपने नामसे बसाया। १७६३ महमदशाहने मेवाड़ पर चढ़ाई कर बहादुरको परास्त ई०में सिन्दियाके राजाने इस पर अपना कब्जा किया। पौर आबू बक रको कैद कर लिया था। बहादुर खाँके १८०३ ई०में झज्जरके नवाब-भ्राता इस्माइल खाने लार्स- क्षमा याचना करने पर सुलतानने राज-भूषा दे कर उनकी लेकके अनुग्रहसे इस स्थानका शासन-भार ग्रहण किया। सम्मान-रक्षा को थी। ७९५ हि० (१३६३ ई० )में बहा- उक्त नवाबवंश १८५७ ई० तक यहांका शासन करते दुरने पुनः दिल्ली-द्वार तक लूट लिया। इससे महम्मदने रहे। शेष नवाब बहादुरजङ्ग खाँ गदर के समय अङ्गारेजों- क्रोधमें आ कर मेवाड़ पर चढ़ाई कर दो और कोटिला के विरुद्ध खड़े हुए थे। इस कारण उनका राज्य अधिकार कर लिया। (यह युद्ध-संवाद कोटिलाकी छीन कर ब्रिटिश साम्राज्यमें मिला दिया गया। पूर्वतन जुम्मा मसजिदके शिलालेख में वर्णित है ) बहादुर खाँ राजप्रासाद आज भा विद्यमान है। भारका फिरोजपुर भाग गये। सुलतान महम्मूद अला- बहादुर निजामशाह--दाक्षिणात्यके अहमद नगरस्थ उहीन राज्यके समय ये दिल्लीके किलेकी रक्षामें निजाम शाही राजवंश (१०म-के अन्तिम राजा । इन्होंने नियुक्त थे। तबसे ले कर मृत्यु पर्यन्त ये राज्य सम्बन्धी निजाम उल-मुल्ककी, उपाधि धारण की थी। १५६५ अनेक विषयों में लिप्त रहे । यही कारण है, कि सर्व- ई०में इनके पिता इब्राहिम शाहकी मृत्यु होने पर भहमद- साधारणमें इनकी विशेष प्रतिष्ठा हो गई थी। मगरके सिंहासन-सम्बन्धमें झगड़ा खड़ा हुआ। प्रवाद है, कि वहादुर खाँ नाहर अपने हिन्दू-धर्मा- बहादुरने अकबरके पुत्र मुरादको अपनी सहायताके लिये बलम्वी श्वशुर राणा जम्बूवास द्वारा मारे गये। उनके बुला भेजा। मुरादके पहुंचने पर इन्होंने नगर-रक्षाका पुत्र अलाउद्दीन खांजादाने अपने मानाको मार कर पितृ भार चांदबीबी और नाशिर खां पर सौंप गोलकुण्डा और स्थाका प्रतिशोध लिया था। कोटिलाको जुम्मा मस बीजापुरके राजासे सहायता मांगी। घर सम्रा धुन निदमें अब भी बहादुर खाँकी कब्र मौजूद है । इन्होंने | मुरादने अहमदनगर भवरोध कर बैठे। इस अवसर पर गलबारसे ७ कोस उत्तर-पूर्व में बहादुरपुर नामका नगर वीरोचित साहस दिखा कर चांदबीबीने रमणी-कुलका स्थापित किया था। मुलोज्ज्वल किया था। किसी तरह अवगुल्ठगपती