पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२६७

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बहुज-बहुदुग्धिका याला आदिमें कई काम ले सकते हैं। शायद इसीसे | बहुतायत (हिं० स्त्री० ) अधिकता, ज्यादती । इसको बहुगुना कहते हैं। बहुतिता (स. स्त्री० ) बहुस्तिक्तो रसो यस्याः। काक- बहुक (सं० वि०) बहु जानाति शा-क । १ बहुदशी, माची । बहुत बातें जाननेवाला । २ बहुविद्, जानकार । बहुतिथ ( से० त्रि०) बहु (बहुपूतगणपश्यस्य तिथुक्पा बहुप्रन्थि (सं० पु०) बहवो प्रन्थयो यस्य। भावक, | ५।२'५२) बहुतका पूरण। भाऊका पेड़। बहुतृण ( स० क्लो०) तृण-'तृणाद्वहुः' इति बहुप्रत्ययः । बहुचारिन् ( स० वि०) बहु स्थानमें भ्रमणकारी। मुखातृण, मूज नामकी घास। बहुचिन स० वि०) विभिन्न प्रकार, अनेक तरहका। बहुतेरा (हिं० वि० ) १ अधिक, बहुत-सा । ( क्रि० वि०) बहुच्छद (संपु०) सप्तपर्ण वृक्ष । २ बहुत परिमाणमें, बहुत प्रकारसे। बहुच्छिन्ना (स. स्त्री०) बहु यथा स्यात्तथा छिद्यते स्मेति बहुतेरे ( हिं० वि० ) संख्या अधिक, बहुतसे । बहु-छिद-क्त। कन्दगुड़ ची। बहुत्र ( स० अव्य० ) बहु-( सप्तम्यास्त्रल । पा ५।३।१ । बहुजल्प ( स० वि०) बहुभाषी, बहुत बोलनेवाला। इति तल । बहुतोंमें, अनेक विषयों में । बहुजात (सं० वि०) द्र तगामी, तेजीसे चलनेवाला। बहुत्व ( स० पु० ) आधिक्य, अधिकता। बहुटनी ( हिं० स्त्री० ) एक प्रकारका गहना जो बांह पर बहुत्वक् ( स० पु०) सप्तपर्णवृक्ष । पहना जाता है। बहुत्वक (सं० पु०) बहुत्वगेव बहत्वच स्वार्थे कन् । बहुत (हिं० वि०) १ अनेक, गिनतीमें ज्यादा । २ आवश्य- भूर्जवृक्ष, भोजपत्र । कता भर या उससे अधिक। ३ जो मात्रा अधिक हो, बहुत्वच् ( स० पु०) बहबस्त्वचो यस्य । भ्रूज वृक्ष, भोजपत्र । परिमाणमें ज्यादा। बहुथा ( स० अव्य० ) बहु प्रकारसे, नाना प्रकारसे । बहुतन्त्रि (स० वि०) बहुतन्त्रविशिष्ट । बहुतन्ली (सं० लि. ) बहबस्तन्यो यस्मिन् । बहुतन्त्र- बहुदण्डिक ( स० वि० ) बहवो दण्डाः सन्त्स्य बहुदण्ड- ठन्। बहुदण्डविशिष्ट । विशिष्ट। बहुतन्त्रीक (सं० त्रि०) बहुतन्त्री स्वार्थे कन् । बहुतन्त्र- | बहुदर्शिता (सं० स्त्री० ) बहुलता, बहुतसी बातोंकी समझ। विशिष्ट । जैसे-बहुतन्त्रिका वीणा, बहुतन्त्रीकपट, बहु- बहुदी ( स० पु० ) जिसने बहुत कुछ देखा हो, आन- तन्त्रीकवस्त्र, इत्यादि। कार। बहुतर (सं० लि.) अनेक, प्रभूत । बहुदल (सपु०) १ तृणधान्यविशेष, चेना मामका अन्न । बहुतरकणिश (सं० पु०) बहतराणि कणिशानि धान्यशी- २ चिञ्चोटक क्ष प, चेच साग। र्षाणि यस्य । तृणधान्यविशेष, चेना नामका अन्न । बहुदला (स. स्त्री० ) चञ्चु, चेंच नामका साग । बहुतलवशा (संस्त्री०) लताभेद। बहुदाम ( स० पु० स्त्री० ) परदश्व दे। बहुता (हिं० वि०)१बहुत । (स्त्री०) २ बनियोंकी बोली- बहुदामन (स. स्त्री०) स्कन्दानुचर मातृभेद । में तीसरी तौलका नाम । तीनकी संख्या अशुभ समझी बहुदायिन् (सं० लि. ) प्रभूतदानशील । जाती है। इससे तौलकी गिनतीमें जब बनिये तीन पर बहदग्ध ( स० ) बहनि दग्धानि अपवावमा भाते हैं, तब यह शब्द करते हैं। . यस्य । १ गोधूम, गेहूं। स्त्रियां टाप्। २ बहुक्षीरा पाता (सं.स्त्री०) अधिकता, बहुत्व । गाभि, बहुत दूध देनेवाली गाय। ३ स्नुही वृक्ष, थूहर- बताइत (हिं० स्त्री०) बहुतायत देखो। का पेड़। बहुताई (हिंस्त्री.) अधिकता, ज्यादती। बहुदुग्धिका ( स० स्त्री०) बहुदुग्धा-स्वार्थे कन्-टाए बहतात (हिंस्त्री०) बहुतायत देखो। अत इत्वं । स्नुही वक्ष, थूहरका पेड़। Vol. xv. 66