पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२७३

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बहुसंख्यक-पहेगवा बहुसंख्यक (संपु०) गिनतीमें बहुत । संन्यासिमेद । संसाराश्रमका परित्याग कर ये लोग बहुसदाचार (स० वि०) बहु सदाचारसम्पन्न, अच्छा संन्यास अवलम्बन करते हैं। सात घरों में जितनी भिक्षा आचरणवाला। मिलती है वही उनका आहार है। केवल एक गृहस्थके यहां पहुसन्तति (स० लि.) वही सन्ततिविस्तारोऽन्वयो भिक्षा नहीं मांगते, सात गृहस्थके घर जाना ही पड़ता थी यस्य। १ अनेक सन्तानयुक्त, जिसके बहुत बाल है। यदि एक ही गृहस्थ उन्हें प्रचुर भिक्षा दे दे, तो घे बच ही। (पु.)२ ब्रह्मयष्टि, एक प्रकारका बांस।। उसे ग्रहण नहीं करते। बहुसम्यूट (सं० पु० ) बहुः सम्पूटौ यस्य । विष्णुकन्द । ये सब संन्यासी गो-पुच्छ लोमके द्वारा बद्ध त्रिदण्ड, बहुसार (स पु० ) बहुः सारः स्थिरांशो यस्य । खदिर, शिष्य, जलपूतपात्र, कौपीन, कमण्डलु, गानाच्छादन, कन्था, पादुका, छत्र, पवित्र, चर्म, सूची, पक्षिणी, रुद्राक्ष- बहुसिकथ ( स० वि० ! बहुसरविशिष्ट । माला, योगपट्ट, बहिर्वास, खनित्र और कृपाण अपने बहुसुत (सं.वि.) बहवः सुता यस्य । अनेक पुत्र साथ लिये फिरते हैं। सर्वाङ्गमें भस्मलेपन, त्रिपुण्ड, युक्त, जिसके बहुत सन्तान हों। शिखा और यज्ञोपवीत धारण इनका अवश्य कर्तव्य है। बहुसुता (सं० स्त्री०) शतमूली। इन्हें वेदाध्ययन और देवताराधनामें रत तथा वृथा बहुसुवर्णक (सं० वि० : १ बहुसुवर्णयुक्त । ( पु० ) २ वाक्यका परित्याग कर सर्वदा इष्ट देवताक चिन्तनम रामपुलमेद । ३ गङ्गातीरस्थ अग्रहारभेद। तत्पर रहना पड़ता है। शामको गायत्रीजप और स्वधर्मों बहुसू (सं० स्त्री० ) वहून सूते या बहु सू-विप । १ चित क्रियानुष्ठान करना होता है। करी, मादा सूअर। (त्रि.) २ अतिशय प्रसवयुक्त। अतिभोजन और रिपुपरतन्त्र होनेसे योगाभ्यासमें बहुसूति (सं० स्त्री.) बहुः सूतिः प्रसवो यस्याः । १ मन दृढ़ नहीं रहता, इस कारण इन्हें परिमित आहार और बहु अपत्ययुक्ता गाभो, वह गाय जिसके अनेक बछड़े काम, क्रोध, शोक, मोह, हर्ष, विषाद आदिका परित्याग हों। २ बहुसन्तान प्रसविणी स्त्री। करना चाहिये। इनके शास्त्रमें चातुर्मास्य व्रतानष्ठान पहुसूवन् ( स० वि० ) बहु-सू-क्वनिप । १ बहुप्रजाप्रसव बतलाया गया है। ये लोग मोक्षाभिलापी हैं। मोक्ष कारक। स्त्रियां कोष 'धनोरः' इति नस्य । २ बहु लाभके लिये गायत्रीजप ही प्रधान कर्तव्य है। इन सूवरी, वह प्रजा प्रसवित्री। सव सन्यासियोंको मृत्यु होनेसे मृतदेह जलाई नहीं सब (सलि.) बहु यथा तथा सवति स्त्र अच । जाती, जलमें बहा दी जाती है। इन्हें मृत शौचादि अनिका क्षरणशील, अनेक क्षरणशील । भी नहीं होता। बहुलवा (सं० स्त्री०) शल्लकी-वृक्ष. सलई । बहूदक --कुमारिकाको महानदीके निकटवत्ती नदीभेद । बहुसन (सं० पु० ) बहुः प्रचण्डः स्वनः शब्दो यस्य । (कुमारिका १५॥१॥६) १पेचक, उल । २शख । (नि.) ३ अनेक शब्दयुक्त। बहूदन ( स० क्ली० ) प्रचुर अन्न। गखामिक ( लि०) जिसके अनेक प्रभु हों, जिस बहूपमा (सं० स्त्री० ) एक प्रकारका अर्थालङ्कार। इसमें चीमबहुतसे मालिक हों। एक उपमेयके एक ही धर्म से अनेक उपमान कहे जाते हैं। पहिरण्य (सं.लि.) १ बहु सुवर्णयुक्त। (पु.)२, बहेंगवा ( हिं० पु०) १ एक पक्षी जिसे भुजगा वा कर- पहुसुवर्ण । ३ वेदोक्त एकाहभेद । चोटिया भी कहते हैं। बटर (हिं पु०) बांह पर पहननेका एक गहना। बहेंत (हिं० स्त्री० ) वह काली मट्टो जो तालों या गढ़ों में बहू (हिं० स्त्री०) १ पुत्रबधू, पतोहू। २ पत्नी, स्त्री। २ बह कर जमा हो जाती है। इसी मट्टीके खपरे बनते हैं। कोमवविवाहिता स्त्री, दुलहिन । बहेगवा (हि. पु०) चौपायोंकी गुदाके पास पूछके नीचेकी (*. पु.) बहूनि उदकानि शौचाङ्गतया यस्य ।। मांसप्रन्थि ।