पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७० बलोल लोदी, सुलतान-बहदिन हुसैनके नामसे बयानामें खुत्बा पाठ और सिक्का कुतुवा खो मर गया है उसी समय वे वहांसे चल दिये चलाया। तीन वर्ष तक किसी प्रकारको लड़ाई न हुई। और उसका दफन किया। पीछे उन्होंने उसको जीमपुर- बादमें हुसेनने बडो सेना ले कर बहोल पर कई बार चढ़ाई के राजसिंहासन पर अपने पुत्र बर्वाकको और कल्पमें कर दो। सराई लस्करके युद्धके बाद दोनों में शान्ति | ख्वाजा बयाजिदके पुत्र आजाम् हुमायूको अधिष्ठित किया। स्थापित हो गई। ८६३ हिजरीमें फिर लड़ाई शुरू हुई। चंदवारके रास्तामें धौलपुर पड़ा और वहांके राजासे हुसेन खाँकी जीत देख कर कुतुब खाने सन्धि करनेका उन्होंने बहुमूल्य पदार्थोकी भेंट ली। यहांसे चल कर के प्रस्ताव किया। इसको शर्तोके अनुसार बहोल गंगाके | इलाहपुर, ग्वालियर, बाड़ी आदि स्थानोंमें गये। वहांके उत्तर और हुसेन गंगाके दक्षिण भागके शासनाधिकारी राजाओं से भी इन्हें प्रचुर धन प्राप्त हुआ। लौटते समय हुए । अब युद्ध बंद हुआ। हुसेन जब अपने राज्यको लौट | इन्होंने इटावाके अधिपति राय दानंदके पुत्र संगतसिंहको रहे थे इसी समय वहोलने पीछेसे उन पर आक्रमण कर राजगद्दीसे उतार कर दिल्लीकी ओर प्रस्थान किया । दिन धनरल छोन, उनके कितने ही प्रधान प्रधान व्यक्तियों को | रात्रिके घोर परिश्रमसे एवं धूप में निरंतर भमणसे मार्गमें कैद कर लिया। हुसेन हार कर भागा। उनके अधिकृत | ही वे बीमार पड़े और ८६४ हिजरी (१४८८ ई० )-में कंपिला, पटियाली, साकित, कोल और जलाली नामक मलावी प्राममें इनका प्राणान्त हुआ। उन्होंने प्रायः ३८ स्थान बहोलके हाथ लगे । हुसेनाने फिरसे सेना इकट्ठो बष ८ मास और आठ दिन बड़ी वोरतासे राज्य कर बहोलसे युद्ध छेड़ा। किंतु इस बार वे विशेष क्षति- किया था। इनके मरने पर उनके पुत्र सिकेन्दर लोदी अस्त हो जान ले कर राप्तीकी ओर भागे। इस समय भी | दिल्लीके सिंहासन पर बैठे। बहोलको मोटी रकम हाथ लगी थी। रात्रिमें सुलतान सुलतान बहोल धार्मिक, वीर, साहसी और हुसेनखाँको हरा कर उन्होंने इटावा पर आक्रमण किया। विद्वान थे। उनमें दया, चतुरता और दानशीलताका इस समय बक्सरके अधिपतिथे राय तिलकचंद । उन्होंने | भी अभाव नहीं था। वे साधुताके रक्षक थे। धार्मिक बहोलका पराक्रम सुन उनकी आधीनता स्वीकार कर कर्मोका करना और उसके नियमादि पालमा उनका ली। सुलतानको खुश करनेकी इच्छासे जमुनाको पार कर प्रधान कर्त्तव्य था। वे अपना अधिकांश समय साधु, राय तिलकचंदने सुलतान हुसेन खाँको पन्नाकी ओर सच्चरित्र और ज्ञानवान् पण्डितों के साथ बीताते, दरिद्र, मार भगाया। इसी अबसर पर बहोलने जोधपुरको दुःखियों को सदा अपनो इष्टमें रखते, आश्रितको कमी जीतनेकी आशासे सेना इकट्ठी की। हुसेन खाँ अबकी नहीं छोड़ते और दिनमें ५ बार नमाज पढ़ते थे। बार अपनी रक्षा किसी प्रकार न कर सका और बराइच- बहक्षर ( स० वि०) बहु अक्षरं यत्र । बहु अक्षरयुक्त पद । को भागा । वहां भी वह निश्चित रूपसे नहीं रह सका। बलग्नि ( स० पु०) वेदोक्त विविध अग्नि । बहालकी सेनाने उस पर वहां भी आक्रमण किया। बहध्याय (सं.लि.) बहु अध्याय-सम्पन्न । रवि मंदी ( कालीनदो )के तट पर दोनों में खूब युद्ध बहन (स.नि.) बहु अन्न द्वारा उपेत। चला । अन्तमें हुसेनकी हार हुई और जौनपुर राज्य बडोल- बहप् (संत्रि०) जलमय प्रदेशादि । के अधिकारमें आ गया। यहां वे मुवारक खाँको शासन- बहपत्य (सं० पु० स्त्री०) बहूनि अपत्यानि यस्य । का बना कर आप बदाऊँ की ओर चल दिये। अवसर शूकर, सूअर। २ मूषक, मूसा। पा हुसेनखनि पुनः जौनपुरका उद्धार कर वहांसे लोदियों-बहभिधान (संक्ली०) बहुवचन । की मार भगाया। पश्चात् बडोलके पुत्र बर्वाक और स्वयं बहश्व (सं० पु०) १ मुद्गलका एक पुत्र । २ अनेक अश्व । सुलतानने उस पर आक्रमण कर दिया। इस बार सुल- (त्रि.)३ बहु अश्वयुक्त। तान हुसेन खाँ हार कर बिहारको भागा। बहुदिन् ( स० वि०) बहु-अति, अद-णिनि । बहुभोजक, बडोलने हलदी नगरमें सुना, कि हमारा चचेरा भाई बहुत समनिवाला। .