पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२८५

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बांसफोड़-बांसवाड़िया दोनों ही पितृसम्पत्तिके अधिकारी होते हैं । विधवा तरह भूत पुरुषों को भूमि पर अल दान करते हैं। नर्वे देवरके साथ भी व्याह कर सकती है। उसका प्रथम दिन घे पूरी, खीर, शूकर मांस उनको देते हैं । १५र्षे जातपुत पिताको सम्पतिसे वंचित नहीं होता । दिन और भी समारोहसे पितृ पुरुषों को भोग देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने भाई, बहन और नातीको गोद ले विन्ध्याचलकी विन्ध्यावासिनीदेवी ही इनकी प्रधान सकता है। देवता हैं। प्रति चैत्रमासकी स्वीं तारीखको ये देवीके पुत्र होने पर १२ दिन तक वे अशुद्ध रहते हैं । सूतिका नाम पर शकर वलि देते हैं। गोरखपुरवासी कालिका- गृहमें वासोरा जातिको स्त्रियां इनकी सेवा करती देवीकी तथा श्रावणसुदी ५को नागोंकी पूजा करते हैं। हैं। बारह दिन तक मृत व्यक्तिके उद्देश्यसे सूअरकी | इसके सिवाय दीह नामके प्राम्यदेवता और पीपल के पेड़ बलि दी जाती है। उसके मांसको सभी मिल कर आदिको भी वे पूजते देखे जाते हैं। हरदोईवासी काल- खाते हैं। स्त्रियां इस दिन कुएं की पूजा करती हैं। ये देव तथा देवीको पूजा करते हैं। होली, रामनवमी, जातवालकके कर्णवेध उपलक्षमें ब्राह्मण पंडितों से मितो करवाचौथ, गरुड़पूजा आदि उत्सवोंमे भो ये लोग खूब सुदवाते हैं। कर्णवेधके बाद प्रत्येक बालक ही समाजमें आमोद-प्रमोद करते हैं। शामिल गिना जाता है और तभीसे जातीय प्रथा स्त्रियां आभूषण पहनती हैं। बालक और बालिकाओं- नुसार चलता है। के दो नाम रखे जाते हैं। जातबालकोंके शरीरको सबल ___ विवाहकी शुभलग्न सुदवानेके लिये ये ब्राह्मण और पुष्ट बनानेके लिये वे बोझा दुलवाते हैं और उप- पण्डितोंके पास जाते हैं । विवाहबंधनके हृढ़ करनेके देवताको कुदृष्टिसे बचानेकी चेष्टा करते रहते हैं। ये लिये बालकका पिता कन्याके पिताके साथ मदिरा-पात्रको गोमांस नहीं खाते । सोम धोबो, छोटे भाईकी स्त्री, बड़े बदलता है और कन्याका भाई अपने पिताके मस्तक पर सालेकी स्त्री और भाजेकी स्त्रीका स्पर्श नहीं करते। उन- पगड़ी पहनाता है। इनकी विवाह-प्रक्रिया धरकार जाति- का स्पर्श करना वे लोग पाप समझते हैं। पंखा, टोकनो के समान है। किन्तु विवाहके कुछ पहले वरपक्षकी तरफ और बांसका वकस बनाना ही इनका दैनिक व्यवसाय होम होता है। मण्डपमें ये सीमर और गूलरकी डाल ! हैं। कोई कोई मजूरी, झाड़ बरदार और मेहतरका गाड़ते है। विवाहमें नख काटते और दोनों पैर लाल काम करके भो अपना गुजारा चलाते हैं। रंगसे रंगते हैं । विवाह शेष होने पर हिंदुओं के अनुसार बासलो ( हि० स्त्री०) १ मुरली, बासुरी। २ रुपया पैसा ये गौरी और गणेशजीकी पूजा करते हैं। तत्पश्चात् रखनेकी एक प्रकारको जालीदार लंबी पतली थैली। कन्यादान, गथबन्धन, सिन्दूरदान, आदि कार्य समाप्त इस प्रकारको थैली जा कमरमें बांधी जाती है। ३घंशीके करके वर कन्याको आमोद प्रमोदसे सारो रात कोहवर आकारका एक प्रकारका वाजा जो पीतल या लोहेका में बितानी पड़ती है। बना होता है। ये लोग मृतव्यक्तिका दाह करते हैं। किन्तु अल्प- | बासलोई-भागीरथी नदोको एक शाखा । यह संथाल वयस्क बच्चोंको अथवा संक्रामक रोगग्रस्त व्यक्तिको मिट्टो- परगनेसे निकल कर बोरभूम और मुर्शिदाबाद जिलेके में गा: या नदीमें फेक देते हैं। दाहके बाद ये लोग भी | मध्य होती हुई जङ्गोपुरके निकट गङ्गानदी में मिली है। नीमकी पत्तियां चबाते हैं। केवल दश दिन तक अशीच बासवाड़िया--हुगली जिलेके अन्तर्गत एक नगर। यह रहता है। दश दिन मृतका पुत्र, कन्या वा स्त्रो अथवा अक्षा० २२५८ उ० तथा देशा० ८८२४ पू० हुगली नदी- छोटा भाई दूध तथा अन्नसे पांच पिण्ड देता है। के किनारे अवस्थित है। जनसंख्या साढ़े छः हजारके फिर घर आ कर ये शकरका मांस रांधते और आत्मीय | करीब है । यहां हंसेश्वरोदेवीके १३ चुडामन्दिर हैं। जनोंको भोजन कराते हैं। इन कार्योंमें ब्राह्मणको आव-! लाखसे अधिक रुपये व्यय करके स्थानीय जमींदारपती श्यकता नहीं पड़ती। पितृ पक्षमें वे १५ दिन तर्पणकी शङ्करी दासोकी अनुमतिसे यह मन्दिर बनाया गया है।