पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२८६

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२८. बांसवाड़ा-यांसा उक्त सौभाग्यवती रमणीने मराठोंके हाथसे इस मन्दिरकी मुख्य पैदावार है। मूग, उडद, तिल, सरसों गेंह, चना, रक्षाके लिये इसके चारों ओर परिखा और एक कामान जो भी अच्छी तरह होते हैं। खनिज पदार्थ अभी तक तथा अखसम्मलित दुर्ग बनवा दिया था। बहुत कम पाये गये हैं और जो पाये भी गये हैं वे बहुत पासवाड़ा-१ राजपूतानेके अन्तर्गत एक राज्य । यह अक्षा० थोड़ी-सी मात्रामें। यहांको गाय भैंस अधिक दूध देने- २३ ३ से २३ ५५ उ० तथा देशा० ७३ ५८ से ७४४७ वाली नहीं होती। इनके सींग और प्रान्तोंकी गाय भैंस- पू०के मध्य अवस्थित है। जनसंख्या १६४६ है । इसके | से कुछ अधिक लम्बे होते हैं। यहांका जलवायु अप्रिल- उत्तरमें प्रतापगढ़ और मेवाड़, पश्चिममें डूंगरपुर और से जन तक गर्म और खुश्क तथा बरसातमें तर और नम मुन्ध, दक्षिणमें झालोद, झबुका और पूर्व में सैलान, रत- रहता है। शीतकाल सबसे अच्छा समझा जाता है। लाम और प्रतापगढ़ है। इस राज्यकी पर्वतमय वन्य- पर कहीं कहीं इस देशमें ऐसी ठंढ भी पड़ती है, कि भूमिमें भीलजातिका वास है। सरदार यहांके सिशो. जिससे उसके विषयमें यह कहावत प्रसिद्ध हो गई है- दिया राजपूत हैं । हूंगरपुरमें जो राजपूतवंश राज्य करते बांसवाड़ाको वायरो, आंतरीकी टाड़। हैं इनकी एक शाखा हैं। १६वीं शताब्दी में बांसवाड़ा इनसे भी जो ना मरे, तो छापो बारे काड़ ॥ और डूंगरपुर एक राजाके अधीन था । १५२८ ई०में सर यहांको राजप्रणाली राजतन्त्र शासन है। दरबार- पार उदयसिंहको मृत्यु होने पर उनके दो पुत्रोंने पिता- को अपने राज्यके आन्तरिक प्रवन्धमें पूर्ण शासना- के आदेशानुसार उक्त दोनों सम्पत्ति आपसमें बांट लो। धिकार है। इसो समय दोनों सामन्तों के वंशधर परस्पर स्वाधीन हो २ उक्त सामन्त राज्यको राजधानी। यह अक्षा० कर राज्य करने लगे। माही नदी ही उनको राज्य | २३३३ उ० और देशा० ७४२७ पू०के मध्य अवस्थित सीमा निर्देश करती है। १८वीं शताब्दीके शेषमें बांस- है। जनसंख्या प्रायः ७०३८ है जिनमेंसे सैकड़े पीछे वाड़ाराज मरहठों की अधीनता स्वीकार कर धारके अधि- ६० हिन्दू और शेष मुसलमान हैं । १६वीं शताब्दीमें पतिको कर देने लगे। १८१२ ई में अंगरेजोंने महा बांसवाड़ाके प्रथम सरदार जगमलने इसे बसाया। कहते राष्ट्रीय बन्धन काट कर उन्हें अपना मित्र बना लिया। हैं, कि पहले यह स्थान भील सरदार बासनाके दालमें १८१८ ई०को सन्धिके अनुसार राजा अंगरेजोंकी सहा था। उसोके नाम पर इसका नामकरण हुआ है। पोछे बता करने में प्रतिश्रत हुए। भूतपूर्व सामन्त महारावल जगमालने उसे मार कर बांसवाड़ा पर अधिकार जमाया। लक्ष्मणसिंहका १६०५ ई०में देहान्त हुआ । पीछे उनके । इस नगरके चारों ओर प्राचीर है। दक्षिणस्थ उचभूमिके बड़े लड़के शम्भूजी गद्दी पर बैठे । उनका जन्म १८६८ ऊपर राजप्रासाद अवस्थित है। शाहीविलास नामक १०में हुआ था। अभी पिरथीसिंह बांसवाड़ा-राजसिंहा- प्रासादमें वर्तमान सरदार रहते हैं। इसके पूर्वमें वाई- सनको सुशोभित कर रहे हैं । इनका पूरा नाम है, --- ताल नामकी दिग्गी है। उस दिग्गीमें संलग्न जो उद्यान एच एच राय राया महारावल साहिब श्री पिरथीसिंहजी है उससे आध कोस दूर बांसवाड़ा राजकी छतरी अब- बहादुर । इन्हें १५ तोपोंकी सलामो मिलती हैं । राजस्व स्थित है। वर्तमान नगरसे २ मील दक्षिण पर्वतके नौ लाखके करीब है। राजाको गोद लेनेका अधिकार है। ऊपर दुर्गवासादिका खंडहर नयमगोचर होता है। यहां सभी इनके पास ५०० पदाति, ६० अश्वारोहो और ३ प्रतिवर्ष भाश्विन मासमें १५ दिन तक मेला लगता है। कमान हैं। पहले यहां सलीमसाही सिक्का चलाता था जो | शहरमें एक डाकघर, टेलिग्राफ भाफिस, एक कारागार, अंगरेजी सिक्केसे तिहाई कम होता था, पर १९०४ ई.- एक पङ्गलो वर्नाक्युलर स्कूल और एक अस्पताल है। से अंगरेजी सिका ही चलने लगा है। बांसा-अयोध्या प्रदेशके हरदोई जिलान्तर्गत एक नगर। राज्यमें १ शहर और १२८७ ग्राम लगते हैं। जनसंख्या बांसा (हिं० पु.) १ बांसका बना हुआ चोंगेके आकारका पौने दो लाखके करीब है। भनाजमें मकई और चावल , वह छोटानल जोहली सार्थ बंधा रहता है। सीमें बोनके