पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/२९७

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पानोपासी २६१ जैसा मलादिका पाठ नहीं किया जाता । एक भासन पर सम्पादित होती हैं। ये लोग लाठी चलाने विशेष पटु कोबको बिठा दोनोंके कपालमें बटी हल्दीका लेप होता है। है। नोंके मस्तक एक चादरसे ढक दिये जाते हैं। शुभ बम्बई प्रदेशके बेलगाम जिले में एक श्रेणीके वाग्दी देखे दृष्टि होने पर वर कन्याके हाथमें लोहेका कड़ा पहनाता है। जाते हैं। इन लोगों में भी सगोत्र विवाह निषिद्ध विधवा अपने देवरके साथ भी विवाह कर सकती है। है। पुरुष माथे पर शिखा रखते तथा मद्य और मांसके जिन सब वाग्दिोंने हिंदू-धम का आश्रय प्रहण किया है, प्रिय होते हैं. स्त्रियां मांगमें मिदूर देती हैं, मङ्गल- उनका भाजार व्यवहार उच्च श्रेणीके हिन्दुओं-सा है। सूत्र और बलय पहनती हैं। परिष्कार परिच्छन्न नहीं होने किन्तु स्त्रीके बन्ध्या, परपुरुषगामी अथवा अवाध्य होने पर पर भी पे लोग निरीह और शान्त हैं। देवता और जातीय सभाके मतानुसार उसका त्याग किया जा सकता ब्राह्मणमें इनकी विशेष भक्ति है। पुरोहितके न होने है। उस स्त्रीको छः मासकी खुराक देनी पड़ती है। छः पर भी विवाह श्राद्ध आदिमें ब्राह्मण लोग इनकी मास बाद वह रमणी फिर सगाई कर सकती है। याजकता करते है। बारहवें दिन जातबालकका नाम- तेलिया छोड़ कर अपर बाग्दी बाबरियोंके जैसा बिबाह । करण और जाति भोजन होता है। विवाहके प्रथम करनेके लिये किसी उच्च जातिको अपनेमें शामिल होने दिन घर कन्याकं शरीरमें हल्दी और तेल लगाया जाता । है; दूसरे दिन यथाविहित मंत्रपाठके बाद विवाह समाप्त ब्रह्मा, विष्णु, धर्मराज और दुर्गा आदि सभी शक्ति होने पर वर और कन्याके शरीर पर चावल छोंटते हैं। मूर्तिकी ये लोग उपासना करते हैं। पतित ब्राह्मण इन बहु विवाह और विधवा-विवाह इनमें प्रचलित है। ये सब देवताओंकी पूजामें इनके यहाँ पुरोहिताई | लोग मृतदेहको मिट्टीमें गाड़ देते हैं। तेरहवे दिन करते हैं। मनसादेवी ही इनकी कुलदेवता है । आषाढ़, पातक मिट जाने पर स्वजातिवालोंका भोज होता है। श्रावण, भाद्र और आश्विन मासमें ५वी या २०वीं सामाजिक विभ्राटका विचारमण्डल सम्पन्न करते हैं। को देवीके सामने महासमारोहसे ये लोग बकरे | बाग्नी -बम्बई के सतारा जिलेका एक ग्राम। यह अक्षा. की बलि देते हैं। नागपंचमीके दिन देवीकी चतुर्भुजा । १६५५ उ० तथा देशा० ७४. २६ पूः अशतसे ४ मोल मूर्ति गढ़ कर उसकी पूजा करते हैं। पूजाके बाद वह । दक्षिण पश्चिममें अवस्थित है। जनसंख्या ५६४१ है। पुष्करिणी आदि जलाशयों में विसर्जित हो जाती है। प्रामके पश्चिम पुराने समयकी एक मसजिद् है। बांकुड़ा और मानभूम अञ्चलमें भाद्र-संकान्तिके दिन ये बागरू राजपूतानेके जयपुर राज्यान्तर्गत एक नगर । यह लोग भादुदेवीकी प्रतिमूर्ति गढ़ कर महासमारोहसे नगर- अक्षा० २६ ४८ उ० तथा देशा० ७५ ३३ पू० आप्रा-अज- में भ्रमण करते फिरते हैं। इस उत्सवमें खूब नृत्य- मेरके रास्ते पर अवस्थित है। यहां राज्यके प्रधान मोत होता है। सामन्त ठाकुरका बास है। ये जयपुर दरवारको प्रयोजन वे लोग शवको जलाते हैं। किन्तु वसन्त ( माता) पाने पर चौवह अश्वारोहीसे मदद पहुचाते हैं । ये किसी विसूचिका रोगमे किसीकी मृत्यु होने पर उसे मिहीमें | प्रकारका कर नही देते। यहां सूती कपड़े की छींट गाड़ देते हैं। तीन वर्षके बालक और बालिका भी मिकी | और रङ्गका विस्तृत कारवार है। में गाडी जाती है। अशौचके बाद ये लोग मृतके उद्देश- बाग्लो-१ मध्यभारतके इन्दोर एजेन्सोका एक छोटा से श्राद्ध करते है। अपरापर हिन्दुओं की तरह इन सामन्त राज्य । भूपरिमाण ३०० वर्गमील है। यहांके सर- लोगोंके भी संपत्ति विभाग होता है। ज्येष्ठ पुत्र ही अधिक दार चम्पावत्-वंशीय राजपूत हैं। ठाकुर इनकी उपाधि मंश पाता है, क्योंकि परिवारकी समस्त पक्ष है। घर्शमान ठाकुरराज सिन्दियाके अधोन हैं। त्रियों का पालन उसीको करना पड़ता है। सिन्दिया-राजको इन्हें कर देना पड़ता है। घय्वाली, चौकीदारी आदि दासबसि इनके द्वारा २ उक्त राज्यका प्रधान नगर। यह अक्षा० २२३८