पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३००

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२६ बाघेश्वर-पास ८६५८ पू०के मध्य अवस्थित है। भूपरिमाण ६७६ वर्ग- अधिकांश ब्राह्मण, राजपूत और वनिये ह। ये सबके मील और जनसंख्या प्रायः ३६३०४१ है। इसमें १०४५, सब विष्णुके उपासक हैं। यहांके लोग हाथमें कुठार प्राम लगते हैं, शहर एक भी नहीं है। ले कर इधर उधर भमण करते हैं। २ उक्त उपविभागका सदर । यह अक्षा० २२.४० उ० बाचण्ड-बुन्देलखण्डके अन्तर्गत एक प्रसिद्ध प्राम। यह तथा देशा० ८६४७ पू० भैरव नदीके किनारे अवस्थित किचान् मदोके वाएं किनारे पर्वत-तट पर अवस्थित है। है। जनसंख्या हजारसे ऊपर है । नगरके पश्चिम खाँ- एक समय यह स्थान महासमृद्धिशालो था। ध्वंसाव- जहानका भग्न अट्टालिका स्तूप दृष्टिगोचर होता है । खाँ- शेषसे उसका यथेष्ट प्रमाण मिलता है। वासन-अव- जहान्की सातगुम्बज नामक मसजिद् और समाधि-मन्दिर तार, हरगौरी, विष्णु, लिङ्गमूर्ति, बहुसंख्यक प्रस्तरस्तम्भ देखने लायक है। समाधि मन्दिरका ऊपरवाला गुम्बज और शिलालिपि आदि उसके निदर्शन हैं। शिलालिपि- ४७ फुट ऊंचा है। खां जहान् सुन्दरवनको आबाद करने में यह नगर बनिस्थान नामसे लिखा गया है। यहां के लिये यहां आये थे। उनकी उक्त समाधि देखनेके एक समय चन्देलराज भिल्लमदेव राज्य करते थे। लिये दूर दूरके लोग आते हैं । यहांके अधिवासिगण प्राय वाचा (हिं० स्त्री०) १ बोलनेकी शकि। २ बातचीत, मुसलमान हैं जो बड़े उपद्रवी मालूम पड़ते हैं । नगरकीः वाक्य । वाणिज्योन्नति दिनों दिन होती जा रही है। बाछ (हिं पु०) गांवमें मालगुजारी, चंदे, कर आदिका बाघेश्वर --कुमायुन जिलेका हिमालयपर्वतस्थ एक शैब- प्रत्येक हिस्सेदारके हिस्से के अनुसार परता, बेहरी। . तीर्थ। यह गोमती और सरयूसङ्गमके समीप सोरकोट बाछड़ा (हि पु० ) बछडा देखो। नामक स्थानमें अवस्थित है। स्कन्दपुराणके मानस- बाछल-राजपूत जातिकी एक शाखा। इस शाखाके खण्डमें यह तीर्थमाहात्म्य कोर्तित हुआ है। इसी लोग अपनेको बिराटके पिता बेनराजके वशधर कहलाते देवोपदेशसे वर्ष में यहां दो बार मेला लगता है। इस हैं। ११७१ ई०के पहले बाछल राजगण रोहिलखण्ड समय देवदर्शनकी कामनासे अनेक लोग समागम (पूर्व ) देवल और देवहा (पिलिभीत नदी ) नदीके होते हैं। अन्तर्वत्तों प्रदेशका शासन करते थे। कठेरियामों के बाघेश्वर-गोंडोके उपदेवताविशेष । गोंड़ लोग इसकी पूजा अभ्युदय पर वे लोग देवहाके पूर्व भाग गये। मुखल- किया करते हैं। मानोंके उपर्युपरि आक्रमणसे तंग आ कर के अङ्गलाओं मधेश-राजपूतानेके अन्तर्गत एक प्राचीन नगर। यह जा छिपे और मढ़गाजन तथा गढ़मेरा आदि स्थानों थोच नगरसे ६ कोस पश्चिम वराहनगरके दक्षिण कूल पर दुर्गस्थापन करके राज्य करने लगे। निगोही माती अवस्थित है। यहां विष्णुको बराहमूर्ति, प्राचीन-बराह- उनकी राजधानी थी । दिल्लीश्वरने इस नगरमें मेरा बाल मन्दिर और सागर नामक पुष्करिणी, श्रीमत् आदि बराह'! कर राजा उद्धरनके १२ पुत्रों को यमपुर भेज दिया था। माम तथा वराहमूर्ति अङ्कित मुद्रा देखनेसे अनुमान होता | आज भी निगोहीमें उनके १२ समाधिस्तम्म नियमा है, कि एक समय यहां बराहमूर्तिपूजाका विशेष आदर | उनके वंशधर तर्पण सिंह भाज भी इस स्थानका मामी था। भाज भी यहां शूकर पवित्र समझे जाते हैं। रूपमें भोग करते हैं। बार-बासी बाद किसी शूकरकी हत्या करे, तो उसकी बाछल-राजपूतों को गोत्राचार्य शाखा अपने बार- भवश्य मृत्यु होगी, ऐसा उन लोगोंका विश्वास है। । वंशीय बतलाती है। चौहान, राठोर और कच्छवाहोकोसे बाधेराका प्राचीन नाम बसन्तपुर है। पहले यह | लोग अपनी कन्या देते हैं। मथुरा, बदाउन, शाहजन- चम्बावती नगराधिप गन्धर्वसेनके राज्याभुक्त था। पुर, रोहिलखण्ड और अलीगढ़के निकट माज भी बसस प्राचीन मन्दिरादिके ध्वंसावशेष होने पर भी अभी इस जमींदारोंका अस्तित्व है। अबुल-फजल गुजन्य नगरमें ३ हजार मनुष्योंका वास है। अधिवासियों से प्रदेशमें इस जातिके माधिपत्यकी कथा लिख गये हैं।