पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३०३

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बाजीरावरघुनाथ (श्य) २७ महाराष्ट्र राजसरकारमें होलकर और शिंदेराजका आधि- बाजीरावके सिंहासन पर बैठानेसे महाराष्ट्र राज्यमें पत्य विस्तृत हुआ, तब रघुनाथराव गुजरातको तरफ भागे। अगरेजोंका आधिपत्य बढ़ेगा। अतएव उसे राज्य न दे इस समय वे अपनी गर्भवती पत्नी आनन्दीबाईको धार- माधोरावकी विधवा पत्नी यशोदाबाईको दसकपुत्र ग्रहण दुर्गमें छोड़ गये थे । इसके कुछ दिन बाद अन्तिम महाराष्ट्र करा उसे ही राज्य देना चाहिये। बाजीरावने इस गूढ अगि पेशवा बाजीराव रघुनाथका जन्म हुआ। ज्यों ज्यों वे बढ़ते प्रायको समझ सिदियाको अपने हाथ कर लिया। माना गये, त्यो त्यों उनकी समुज्ज्वल रूपज्योति खिलने फड़नबीस और परशुरामके मोहमंत्रसे मुग्ध हो बाजी- लगी। जिस प्रकार रूपसे उसी प्रकार गुण मण्डलोसे राव निश्चिन्त रहे। इधर शिंदेके मंत्री बल्लभभट्ट और भी वह बालक विभूषित होने लगा। विनयादि सद् शिंदेराज कार्य क्षेत्रमें उपस्थित हो कुछ अप्रतिम और गुणों ने उसके प्रति जनसाधारणको विशेष श्रद्धा उत्पन्न अपमानित हुये। पूनामें आ बाजीराव और सिंदिया- करा दी। जो उसके साथ जरा भी बचनालाप करता. का मिलन होने पर भी महामन्त्री बल्लभने उनके कृत वह उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहता। निविएचित्त दुष्कमके प्रायश्चित्त स्वरूप उनके कनिष्ठ भ्राता चिमनाजी से विद्याभ्यासमें रत रहनेसे अल्प दिनो में ही नाना माधोरावको १७९६ ई०की २६वीं मईको पूनामें खुला कर शास्त्रों में पारदशी हो गये। उनके जमानेमें कोई भी पेशवा पद पर अभिषिक्त किया । इसी समय परशुराम ऐसा ब्राह्मण न था जो शास्त्रविचारमें उनकी बरा बल्लभकी सहायतासे नानाके उच्छेद साधनमें प्रयासी बरी कर सके। राजवंशोचित अस्त्रशस्त्रविद्यामें भी वे हुये। पशुराम और नानाफटुन वीस देखो। बहुत निपुण थे। उनके समान अश्वारोही और तीर ___ नाना दूसरा उपाय न देख पुनः बाजीरावको न्दाज महाराष्ट्र देशमें विरला ही था। अपने दलमें लानेकी चेष्टा करने लगे। अब तक उन्होंने बालककी ऐसी प्रतिभाशक्ति देख उसे भविष्यमें जो बहु परिश्रमसे धन संचित किया था उससे कितना ही आशङ्काका कारण समझ कर महाराष्ट्रसचिव नाना अंश पेशवा और सिंदिया-सैन्यका अपनी तरफ मिलाया। फड़नवीसने उसे तथा उसके भाइयों को १७९३ ईमें पेशवा-सेनापति बाबा राव फड़के परशुरामके विरुद्ध पूववास कोपर गावसे शिवनेरीके पार्वत्य दुर्गमें कैद रखा। अग्रसर हुए। तुकोजी होलकर और सखाराम घाटगेने पश्चात् १७६४ ई०में जूनारके किलेमें नजरबंद किया। उनकी सहायताके लिये बचन दिया। अन्तमें बाजी- रघुपंत घोरपड़े और बलवतराव नागनाथ उनकी अभि रावको हस्तगत कर उन्होंने शिंदेराजको राज्यका लोभ भावकतामें नियुक्त किये गये। इसके पहले नानाने दिखा अपने वशीभूत किया। उसके साथ साथ निजाम- निजप्रभावको अक्षण्ण रखनेके लिये माधोरावको भी बंदी मन्त्री मासीर उलमुल्क और स्वयं निजामको खुर्दा-युद्ध में किया था। बाजीरावके अनुनय-विनयसे संतुष्ट हो बल- अधिकृत निजाम-राज्य छोड़नेको प्रतिक्षावद्ध हुये। वंतराव रक्षकने उनके पत्रको माधोरावके हाथमें सम- बाजीराव और बाबाराव शिंदे-मलो बल्लभके आगमन- पंण किया। एक दूसरेके प्रति आकृष्ट हुए। बाजीरावके से संदेहचित्त हो सैन्यसंग्रह करने लगे । बल्लभ ससैन्य प्रति माधोरावका अत्यन्त स्नेह देख नानाने उन आ बाजीरावको सम्पूर्ण पड़यंत्रका मूल जान उन्हें दोनों को अलग अलग कर दिया। वे बलवंत चारों ओरसे घेर लिया और सखाराम घाटगेके तत्वाव रावको भी शृङ्खलावद्ध करनेमें बाज नहीं आये। धानमें उत्तर-भारतकी तरफ चालान कर दिया। पथमें दिनों दिन माधोरावके प्रति नानाफड़नबीसका अत्या- जाते जाते उन्होंने घाटगेको अर्थलोभसे वशीभूत कर चार बढ़ने लगा। हताश हो माधोरावने आत्महत्या की। लिया। वे कुछ दिन तक निकटमें ही रहे। इधर यह संवाद पा नानाफड़नवीस परशुराम भाऊ, रघुजी | नानाकी कूटमंत्रणासे बल्लभ और परशुराम दोनों ही भोसले, दौलतराव शिंदे और तुकाजी होल्करको पकड़े गये। बाजीराव भी भीमातीरवी कोरेगांव बुला उनसे परामर्श करने लगे। स्थिर हुआ, कि | मगरमें रहने लगे। Vol xv, 75