पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८ बाजीरावरघुनाथ (श्य) नानाने बाजीरावके समीप उपस्थित हो उनसे एक १७६८ ई० में घाटगेके हायसे अमृतराव पराजित प्रतिज्ञापन पर हस्ताक्षर करा लिये, कि ये पेशवा पद पर हुये। महादजीकी तीन पत्रियोंने कोल्हापुर-राज्यमें जा अधिष्ठित हो नाना-फड़नवीस पर किसी प्रकारका आश्रय लिया, बल्लभभट्ट प्रभृति ब्राह्मणोंने उनका पक्ष अत्याचार न करेंगे। ११९६ ई०की २५वी नवम्बर अवलम्बन किया । पेशवाने फिर शिंदेके साथ मिल कर को सब लोगों की सम्मतिसे ये पेशवा पद पर अधिष्ठित १८००ई०में कोल्हापुर पतिका दमन किया था। किन्तु हुये। पूनामें विभ्राटके उपस्थित हो जानेसे वे कोल्हापुर राज्यको बाजीरावके सिंहासन पर बैठने के बाद १७६७ ई०में जय न कर सके। इसी समय नाना फड़नवीसकी मृत्यु फिरसे राज्यविप्लवके चिह्न दिखाई देने लगे। उसी साल हुई। बाजीराव सिंदियाके हाथमें कठपुतलीकी तरह पूना नगरमें पेशवाकी अरबो और देशी सिपाहियोंके रहने लगे। यशवंतराव होलकर मालयाके विजयसे उत्सा वीच एक खंडयुद्ध छिड गया। उत्तरोत्तर अंतर्विप्लवसे हित हो क्रमशः अग्रसर होने लगे। उसका दमन करनेके राज्यमें घोर विशृङलता उपस्थित हुई। बाजीरावके परा लिये शिंदे पूनासे रवाना हुए । अवसर पाबाजीराव पूना- मशीनुसार घाटगेने नानाके घर और अनुचरवर्गाको लूटा। वासियों पर यथेच्छा व्यवहार करने लगे । घाटगेको प्रति- नाना अपने परिवार सहित कैद कर लिये गये। बाजी- शोध देनेमें अपनेको असमर्थ जान उन्होने जशोवंतके रावने अपने सौतेले भाई अमृतरावको सचिव पद तथा साथ मेल कर लिया। उनके हाथसे शिंदेसैन्य विध्वस्त वालाजीपंत पटवर्धनको सेनापति पद दे शिदेराजको होती जाती थी। उन्होंने जो पेशवाराज्यको लूटा था, मंत्रिपदसे हटानेका विचार किया किन्तु शिदेराजने उनके । उससे बाजीराव असंतुष्ट हो उनका दमन करने अग्रसर कहे मुताबिक दो करोड़ रुपये मांगे। राज्यकोषके खाली हुये। किन्तु १८०२ ई० मे शिंदे और पेशवाकी मिलित पड जानेसे वे यथासमय रुपये न दे सके। अतः उन्होने सेना यशवंतसे अच्छी तरह परास्त हुई। पूनामें विजय- घाटगेको पूना नगर लूट कर अर्थसंग्रह करनेका आदेश घोषणा कर यशोवंतने पेशवा परिवार के प्रति सदय व्यव- दिया। पहले राजगृहमे बंदी कर पनाके आत्मोयवर्ग हार किया। विशेष चेष्टा करने पर भी वे फिर बाजीरावको को निर्यातन क्लेश उठाना पडा। फिर महाजन. लौटा न सके। आखिर वे अमृतरावको पेशवा पद देने धनी व्यक्तिमात्रको कठोर अत्याचार और दारुण यंत्रणा राजी हुये। बाजीरावके अङ्गरेजोंके साथ मिलने पर भोगनी पड़ी थी। इस कार्यके लिये बाजीरावने प्रकाश्य विशेष इच्छा नहीं रहते हुए भी अमृतराव पेशवा-पद पर रूपसे शिठेका तिरस्कार किया। १७६८ ई०में महादजी बैठे। १८०२ ई०में बसईको संधिके अनुसार अंगरेजी शिदेकी विधवा पत्नीको अमृतरावने आश्रय दिया । सेनापति वेलेस्लीने होलकर दस्युगणको परास्त कर ऐसे ही समयमें आ कर घाटगेने अमृतरावकी छावनी १८०३ ई० को १३वीं मईको पेशवा पद पर अधिष्ठित पर आक्रमण कर दिया । क्रमशः दोनों पक्षमें घोर युद्ध किया। होनेको आशङ्का होने लगी। शिंदे, होलकर और पिंडारियों के पुनः पुनः लुण्ठन और शिंदेने वाजीरावको भय दिखानेके लिये नानाको अक्षय १८०३ ई०को अनावृष्टिसे दक्षिणमे दारुण अकाल पड़ा। नगरके दुर्गसे मुक्त कर दिया। बाजीराव पहले हीसे साथ साथ महामारी भी उपस्थित हुई। इसी समय नानाके पड़यम्बसे डरते थे। अब कारागारसे छुटकारा बाजीराव शिंदे और रघुजी भोसलेके साथ मिल अङ्ग- मिलने पर वे और दंग रह गये। अतः उन्होने सिधियाके रेजों का प्रभाव रोकने के लिये कटिवद्ध हुये। १८०३ ई० में माथ मित्रता कर और जिससे नाना पक्षीय अंगरेजोंकी अहमदनगर दुर्ग और औस-युद्ध में विजय हो अंग्रेज सेना फिर प्रवेश न कर सके उसके प्रतिविधानको वे दाक्षिणात्यके कर्ताधर्ता हो गये थे। इस समयसे ले कर चेष्टा करने लगे। इधर पे गुप्तचर भेज नानाको स्वयं बाजीरावके पुनः अभ्युत्थान पर्यत महाराष्ट्र-राज्यमें और बुला उन्हें मित्र-पद पर अभिषिक कर निश्चिन्त हुये। कोई नवीन घटना नहीं घटी, सिर्फ दस्यु-उपद्रव और