पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३१४

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३०८ बादुड़िया-बाधक ५ किसीके विरुद्ध अभियोग करनेवाला, मुद्दई। ६ प्रति- इनके अन्धान्त (Coecum) नहीं होता। लिङ्ग लोल- बन्छी, शत्रु । ७ लुहारोंका सिकली करनेका औजार। मान और अस्थिसंयुक्त है । सन्तानोत्पत्तिका समय आने बावु-२४ परगनेके वारासत उपविभागके अन्तर्गत एक पर उनका अंसुकोष बाहिर निकल आता है। गर्भाशय- ब्राह्मण-प्रसिद्ध स्थान । में दो छोटे छोटे सींग रहते हैं। कितनी मादा बादुरके बादुडिया-२४ परगनेके वसीरहाट उपविभागका एक शहर। शावकपालके रहनेके लिये थैली रहती है। शीतकाल- यह अक्षा० २४°४५ उ० तथा देशा० ८८४८ पू०के मध्य में उनके ढक देनेसे बच्चे गरम रहते हैं। बच्चे तरुण अवस्थित है । जनसंख्या प्रायः १२९२१ है । हिन्दूकी संख्या होने पर माताके पीछे पीछे चलते हैं । इनके शरीरमें लोम मुसलमानसे अधिक है। हैं । लोमके बीच Nycterilin नामका कीट पैदा बादुना (हिं० पु०) घेवर नामकी मिठाई बनानेका एक होता है। औजार। यह लोहे या पीतलका बना होता है। इसे पृथिवीके चारों तरफ वादुर देखनेमें आते हैं। भट्ठीके मुंह पर रख कर उसमें घी भरते और पतला वैज्ञानिकोंने इस जातिके पक्षीको IPteropodidae, मैदा डाल देते हैं। मैदा पक जाने पर उसे चीनीकी, Tamjpyridae Noctilionilac और Vesportilionidae चाशनीमें पाग देते हैं। प्रभृति श्रेणी में शामिल किया है। विशेष विवरण चमदर बावुर--स्वनामप्रसिद्ध स्तन्यपायी पक्षिजातिविशेष, | शादमें दरखो। चमगादर (Bat) । पक्षीकी तरह पंख होने पर भी यह पशु बादोसराय--१ अयोध्या प्रदेशके बाराबाँकी जिलान्तर्गत आदिकी तरह स्तन पीता है। यह नाना आकारका और एक परगना। भूपरिमाण ४८ वर्गमील है। इसका कुछ निशाचर होता है। बहुत दूरसे उड़ कर यह अन्य लोगों- अंश प्राचीन धघराखाईकी उच्चभूमि पर और कुछतराई को हानि पहुंचाता है। बादुरके दो भेद हैं। एक जो कीट प्रदेशकी निम्नभूमि पर अवस्थित है। पतङ्गादिसे अपना पेट भरता है और दूसरा जो सुपक्क २ उक्त जिलेका एक नगर। यह बाराधांकी नगरसे फलादिका भक्षण करते हैं। इनकी आँखें छोरी होने पर १२॥. कोस उत्तर पूर्व रामनगरसे दरियाबार जानेके भी दूष्टि तेज होती है। इनको जितने बड़े कान होते रास्ते पर अवस्थित है । वादशाह नामक किसी फकीरने हैं,उतनी ही श्रवणशक्ति तीक्ष्ण होती है। घ्राणके द्वारा ५५० वर्ष पहले इस नगरको वसाया । यहांका मुसलमान- सुपक्क फलकी गंध जान उसका अनुसरण करते हुए वहां साधु मलामतशाहका समाधि-मन्दिर मुसलमानोंके निकट तक पहुंच जाते हैं । रात्रिमें इतस्ततः भोजनकी तलाशमें एक पवित्र तीर्थ समझा जाता है। निकलते हैं तथा ये दिनमें वृक्ष-कोटरमें, वृक्षकी डालमें, बाध (सं० पु० बाधनमिति वाध-भावे घम् । १ प्रतिबन्धक, गुहामें, भग्न अट्टलिकामें और छतके नीचेकी कड़ी में औंधे रुकावट । २ उपद्रव, उत्पात । ३ पीड़ा, कष्ट। ४ कठि- मुँह लटक कर रहते हैं। मादा अंडे नहीं पारती, एक नता, मुश्किल । ५ अर्थकी असंगति, मानीका ठीक न बारमें एक या दो बच्चे जनती है। बच्चे माताको बैठना। ६ वह पक्ष जिसमें साध्यका अभाव सा हो। भाकृतिकी तुलनामें बड़े होते हैं। | ७जकी रस्सी । इनका मुख पतला, शङ्खास्थि ( Temporal hone) | बाधक ( स० पु०) बाधनमिति बाध-भावे प्रतुल। १ और शब्दप्रहणके लिये श्रवणेन्द्रियस्थ शम्बुकाकार छिद्र स्त्रीरोगविशेष । इसमें उन्हें संतति नहीं होती या संतति बड़ा, पञ्जर और युक्कास्थि बड़ी होती है। होनेमें बड़ी पीड़ा या कठिनता होती है। स्त्रियोंके ऋतु- इनके चबाने, काटनेके दांत होते हैं। पैरकी हड्डी कालमें इस रोगका प्रकोप होता है। इस रोगके होनेसे अंगुलि पर्यंत चौड़ी होती है। पंखको हड्डीसे दोनों पांव, सन्तानार्थिगण यदि यथाविधाम षष्ठी आदिकी पूजा करे, सूक्ष्मचर्मसे ढके रहनेके कारण सहजमें उड़ सकते हैं। तो यह रोग अवश्य दूर होता है। वैद्यकके अनुसार पैरके पीछेमें नाखून हैं। उन्हीं नाखून द्वारा ये झूलते हैं। चार प्रकारके दोषोंसे बाधक रोग होता है--रतमाद्री, वक्षस्थलमें दो स्तन होते हैं। | यष्ठी, अंकुर और ज़लकुमार।