पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पापुजी नायक-बाप्पा बाजीराव द्वारा प्रतिनिधिके परास्त होने पर सेनापति ने लिखा है-गुहसे नोचे ८वीं पीढ़ीमें राजा नागा- पापुगोखलेने उन सब देशो से इतना कर संग्रह कर लिया दित्यको भीलोने मार कर ईर राज्य पर अधिकार था, कि थोडे.ही दिनों के मध्य घे एक मान्यगण्य और जमाया था। उस समय बाप्पा तीन वर्षके बालक थे। महाराष्ट्र-सरदारो के मध्य अच्छे धनी हो गये थे। । पुरोहित लोग राजवंश-लोपको भयसे उसे ले कर भाण्डिर १८०० ई०में वे अपने चाचा धुन्धुपन्तके साथ दुर्गमें भागे। किंतु इस स्थानमें बालकको निरापद न जान धुन्धियाका दमन करनेके लिये गये। इस समय शतके वे लोग उसे त्रिकूटपाद मूलस्थ नागोद नगरोमें ले आये। अस्त्राघातसे उनकी एक आँख बरबाद हो गई। १८०३ यहां धर्मप्राण ब्राह्मणमंडलीके बीच में रह बाप्पा बनराजि- ई०में वे जनरल वेलसलीके साथ नाना स्थानों में युद्ध समाच्छन्न उपत्यका भूमिमें स्वच्छ इसे विचरण करने करने गये थे। इस समय अप्पा देसाई मेपांकुरको लगे।। छोड़ कर उनके मुकाबलेका कोई सेनापति न था। वेल ___ एक दिन शारदीय झूलन पर्वोलक्षमें नागोदकी शोला- सिलीके साथ रह कर उन्होंने युद्धविद्यामें विशेष पार ङ्किराज दुहिता सहचरियों के साथ उसी बनमें कोड़ा दर्शिता लाभ की थी। उसीके फलसे उनके चाचाने १८०५ करने आई । दैववशात् बाप्पा पर उन लोगोंकी दूष्टि पड़ी। ई०में अपनी सेनाका परिचालन-भार उन पर सौंपा। चञ्चलप्रकृति वाप्पाने हंसी खेलके बहाने उनसे पाणिग्रहण ___ अंगरेजों के साथ रहने पर भी उनके हृदयसे अंग करनेका अभिप्राय प्रकट किया। हिताहितविवेकविहीना रेजविद्वेष दूर नहीं हुआ। उन्होंने मन ही मन महा- | बालिकाओंको सम्मतिसे शीघ्र ही राजकुमारीके साथ राष्ट्रजगत्से अंगरेजोंको मार भगानेका संकल्प किया। खेलमें बाप्पाका विवाह हो गया। १८१७ ईमें उन्हींकी बातमें पड़ कर पेशवा अंगरेजोंके | पीछे राजकुमारी जब ध्याहने योग्य हुई तब परिणय विरुद्ध खड़े हो गये। इस समय गोखले सेनाविभागके संबंध स्थिर किया गया। बरपक्षीय एक ब्राह्मणने सामु- सरदार थे। पेशवाने उन्हें मिः एलफिन्सटनको आमन्त्रण द्रिक-परीक्षा कर कहा, "यह बालिका पहिले ब्याही जा करके मार डालनेकी सलाह दो, पर गोखले उस क्षद्र चुकी हैं" इस विस्मयकर वाक्यको सुनने पर राजपरिवार हृदयहीनताका परिचय देनेको राजी न हुए। जो कुछ के बीच बड़ी उथल पुथल मची। हो, बहुत तर्कवितर्क के बाद उन्होंने युद्धक्षेत्रमें उतरना ही | प्रकृत पात्र निर्णयमें समर्थ न हो राजपरिवार के लोग बडे अच्छा समझा। बापुगोखलेने महाराष्ट्रसेनाके नेता हो उद्विग्न हुए। राजकोषसे भयभीत हो बाप्पाने उस देश- कर किकी के रणक्षेत्रमें अंगरेजोंका सामना किया। का परित्याग किया। पलायन करते समय उनके पीछे १८१८ ई०को पहली जनवरोको कोरीगांवमें तुमुल संग्राम बालियो और देव नामक दो भील युवक चल दिये। छिड़ गया। अन्तमें बाजीराव दलबल समेत कर्णाटक भागनेसे ही वाप्पाका अदष्टाकाश परिष्कृत हुआ । भट्टः की ओर भाग चले। उसी सालकी १६ वीं फरवरी- कवियोंके वर्णनमें लिखा है, कि बाप्पा नागोद नगरकी को बाजीराधके शोलापुरसे लौटते समय अगरेज-सेना- | उपत्यका देशमें ब्राह्मणोंकी गायें चराते थे। एक गायका पति स्मिथने महाराष्ट्रवल पर चढ़ाई कर दी। इस युद्धमें गोखलेकी सहृदयताको परिचय उस समयके दित्यको पलो पुष्पवतीने ससत्त्वावस्था में स्वामीकी सह- अंगरेज कर्मचारियों ने मुक्तकण्ठसे किया है। मृता न हो, गर्भस्थ शिशुकी मंगलकामनासे मलिया गिरि- बापुजी नायक-बारामतीवासी एक महाराष्ट्र ब्राह्मण। गह्वरमें जा आश्रय लिया। प्रवाद है, कि यहां ही उसके रघुजी भोसलेने इन्हें बालाजी बाजीरावके बदले में पेशवा एक पुत्र पैदा हुआ। गुहामें जन्म होनेके कारण बालक- पद पर अधिष्ठित करनेकी चेष्टा की थी। का गुहिल नाम रखा गया। किन्तु उसका विशुद्ध नाम बाप्पा-मेवाडके गुहिल(१) वंशीय एक राजा। टाड गुहादित्य था। यही कारण है, कि उनके वंशधर गह- (१) बल्लभीपुरके विध्वस्त होने पर राजा शिला- I लोत कहलाये। Vol xv. .