पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३३५

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३२६ पार्लम-पाल । .१२२० ई० में भारतवर्षमें सृष्टान धमका प्रचार करनेके बाहस्पत्य (स० पु०) बार्हस्पत्यं बृहस्पतिमोक्तशाल लिये भाये थे। भधीयमानत्वेनास्त्यस्येति, अर्श आदित्यादछ । १ बार्लम-खुष्टानधर्मशास्त्र बाइबिलके सेण्ट-जान विभाग- नास्तिक । (क्ली०) २ नोतिशाल। (लि०) ३ वृहस्पति • वर्णित एक साधु। पारस्य सीमान्तवासी भारतवासी सम्बन्धीय । तथा साधु जोसेफत नामसे उल्लिखित हुए हैं। पाश्चात्य बाहिण (सं० वि० ) बहिणो विकारः तालादित्वात् भण् । • पण्डितगण भारतराजपुत जोसेफत्को 'बोधिसत्व' । बर्हिविकार । मानते हैं। बाहिषद ( स० पु० : बर्हिषदका गोलापत्य । बार्लो सर जार्ज-मन्द्राजके अंगरेज शासनकर्ता। इष्ट- बाल (सं० पु० क्ली ) बलतीति बल ण। १ गन्धद्रव्य- इण्डिया कम्पनीके परिदर्शकरूपमें इन्होंने भारतवर्ष पर विशेष, सुगन्धवाला नामक गन्धद्रव्य । पर्याय-होवेर पदार्पण किया। इनके शासनकालमें १८०६ ई०को बर्हिष्ठ, उदीच्य, केशनामक, अम्बुनामक, हिवेर, बर्हिष्ठ, बेल्लूर में सिपाही-विद्रोह उपस्थित हुआ। इस विद्रोहसे बालक, वारिद, वर, होवेरक, केश्य, वन, पिङ्ग, ललनाप्रिय, अंगरेजवणिकगण बहुत डर गये थे। कुन्तलोशीर। गुण---शीतल, तिक्त, पित्त, वमन, तृषा, बार्घटीर ( सपु०) १ नपु, रांगा। २ अंकुर, संखुआ।३ | ज्वर, कुष्ठ, अतिसार, श्वास, और अणनाशक तथा केश- गणिका सुत, जारज। हितकर। २ अर्भक, बालक, लड़का । पर्याय-माणवक, बाह (स.नि.) बहसम्बन्धीय । बालक, माणव, किशोर, बटु, मुष्टिम्धय, वटुक, किशोरक, बार्हत (स क्लो०) वृहत्याः फलं प्लक्षादित्वादण। १ पाक, गर्भ, हितक, पृथुक, शिशु, शाव, अभ, डिम्भक, बृहतीफल। उत्सादित्वात् अन् । (नि०) २ वृहति डिम्ब । भव। मनुष्य जन्मकालसे ले कर प्रायः १६ वर्षकी अवस्था बाह तानुष्टुभ ( स० वि०) वृहती अनुष्टुभ छन्द तक बाल या बालक कहा जाता है। लो भी १६ वर्ष सम्बन्धीय । तक बाला कहलाती है। बाहदग्न ( स० पु० ) वृहदग्नेरपत्यं कण्यादित्वादण । बृह- "आषोडशाद्भवेद्वालस्तरुणस्तत उच्यते। दग्नि ऋषिका गोलापत्य। वृद्धः स्यात् सप्ततेरुद्ध वर्षीयान् नवतेः परम् ।।" बाह दीषव( संपु०) बृहदिषुवंशीय । (भरत) बाह दुक्थ ( स० वि०) बृहदुक्थसम्बन्धीय। गृहदुक्थ भावप्रकाशमें बालपरिचर्याविधि इस प्रकार का गोलापत्य। लिखी है- बार्हदिर (सं० वि०) वृहद् गिरिसम्बन्धीय । बालकके भूमिष्ठ होनेसे यथाविधि कुलाचार और बाह दैवत (सक्ली०) शौनक-रचित बृहदेवता सम्ब स्त्री-चार जो पूर्वापर प्रचलित है, उसका अनुष्ठान न्धीय। करना आवश्यक है। बाहं छल (सक्लो०) १ गृहछल-सम्बन्धीय । २ वृतबलका ___ वयक्रममेदसे यह बालक तीन प्रकारका है, दुग्धपायी, गोलापत्य। दुग्धानभोजी और अन्नभोजी। इनमेंसे एक वष तकके बाहद्रथ (सपु० स्त्री०) बृहदयस्यापत्यं शैषिकोऽण् । बालकको दुग्धपायी, दो वष तकको दुग्धान्मभोजी और १ बृहदथ राजसुत । (लि०) २ बृहदय सम्बन्धी । तीन वर्षसे ले कर सोलह वर्ष तकके बालकको मन्न- बाहं दथि (स. पु०) वृहदथका गोलापत्य । मोजी कहते हैं। बाहवत (सं० वि०) बहधत शब्दयुक्त। बालकको उमर छः अथवा आठ मास होनेसे यथोक्त बार्हस्पत (सं० पु०) बृहस्पतेरिदं स वा देवताऽस्य भण। १ हल्पति सम्बन्धी। २ वत्सरविशेष । ३ वृहस्पतिके a विधिके अनुसार उसे थोड़ा थोड़ा करके अम्न खिलाये। शसे चरप्रभृति। पीछे बयोव बिके अनुसार उसकी मात्रा बढ़ातो जाय। Vol xv, 83