पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३३८

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बालखिल्य-पासाह बालखिल्य ( स० पु० ) मुनिविशेष । ब्रह्माके रोमकूपले इन जो शौचाचाररहित, कुत्सित व्यवहारमें निरत रहता है लोगोंको उत्पत्ति हुई है। ये सभी डोलडौलमें अंगूठेके और जिसके घरमें फूटा कांसेका बरतन रहता है उस वंशमें बरावर हैं। इनकी संख्या साठ हजार है। (भारत विष्णुपु०)। ग्रहोंका उपद्रव होता है। ग्रह कर्तृक बालकोंकी अनिष्टा- सबके सब बडे. भारी तपस्वी हैं। मार्कण्डेयपुराणमें शङ्का होने पर प्रहोंकी पूजा करनी पड़ती है । पूजासे ग्रह- लिखा है, कि कतुकी भार्या सन्ततिसे साठ हजार बाल-| गण संतुष्ट होते हैं। जैसे बालकोंका प्रतिपालन करता खिल्यगण उत्पन्न हुए जो सबके सब ऊद्ध रेता हैं। चाहिये वैसा न कर अहिताचार वा अशौचाचार करने बालगङ्गाधरतिलक-तिलक रेखो। तथा मङ्गलाचार न करनेसे बालक भीत या पीड़ित होते बालगञ्ज-आसाम प्रदेशके श्रीहट्ट जिलान्तर्गत एक गण्ड हैं, तब ग्रहगण उसके शरीमें प्रविष्ट हो जाते हैं। बालककी प्राम । यह अक्षा० २४.३० १५ उ० तथा देशा० ९२५२ देहमें ग्रहोंके लक्षण विकाश होने पर सांत्वना वाक्यका १५“पू०के मध्य कुशियारा नदीके किनारे अवस्थित है। प्रयोग करना चाहिये। इस नदी द्वारा यहांके चावल, पटसन तेलहन बीज आदि- बालग्रहसे पीड़ितके सामान्य लक्षण-प्रहपीड़ित को बङ्गालके भिन्न भिन्न स्थानों में रफ्तनी होती है। बालक कभी उद्विग्न और कभी त्रासयुक्त हो रोता है। बालगर्भिणी ( स० स्त्री०) प्रथमगर्भवती, वह स्त्री जिसने नख, दन्तद्वारा निज तथा धात्रीको विदारण करता है। पहले पहल गर्भधारण किया हो। सर्वदा ऊपर और नीचे दृष्टि, दन्तघर्षण, आर्तनाद और बालगोपाल ( स० पु० ) बालः शिशुमूर्ति धरो गोपालः । ओष्ठव शन, आहारमें अनिच्छा, जम्मा, बलहास, देहकी १ श्रीकृष्णको वाल्यमूर्ति। मलिनता, शामावरोध, हृदयकम्पन, पुनः पुनः उल्टी, नोंद 'तीरपयोनिधिवृक्षनिवासं हास्यकटाक्षजयंशिनिनादं। न आना, शोथ, स्वरभंग, अतोसार और शरीरमें मत्स्य श्यामलसुन्दरमृत्यषिलापं तं प्रणमामि च और रक्तके समान गंध आती है। बालगोपालम् ॥" बालप्रहपीडितके विशेष लक्षण-दोनों नेत्र स्फीत, २ परिवारके लड़के लकड़ियां आदि, बाल देहमें शोणितगध, स्तनों में दुष, मुख वक्र, नेत्रोंका एक बच्चे। पलक स्थिर, उद्विग्नता, चक्षुवयमें भारोपन, थोड़ा थोड़ा बालगोसाई-कूचविहारके एक राजा, राजा नरनारायणके | रोना, हाथोकी मुष्टि बांधना, मलमें गाढ़ापन आदि पुन। इन्होंने ६८६ हिजरीमें राज्य किया। उनके लड़के लक्षण स्कन्दग्रहास होने पर होते हैं। लक्ष्मीनारायणने राजा मानसिंहकी अभ्यर्थना की थी। ___ स्कन्दापस्मारके द्वारा पीड़ित होने पर कभी अचे- बालग्रह (सं० पु०) बालानां वालकानां प्रहः । बालकहत | चन, कभी सचेतन, हस्तपद कम्पन, मलमूल निःसरण, प्रहविशेष । शब्दके साथ जंभाई आना, मुखमें फेनोद्वार आदि लक्षण "बालपहा अनाचारात् पीडयन्ति शिशु यतः। तस्मात्तदुपसर्गेभ्यो रक्षेद्वाल प्रयत्नतः॥ (भावप्र.) शकुनिप्रहसे पीड़ित होने पर अङ्गों में शिथिलता, अनाचार करने पर बालग्रह बालकोंको सताता है इस | भयसे चमकना, शरीरमें पक्षीकी तरह दुर्गन्धि, नाव- लिये उनको 'इनसे रक्षा करनी चाहिये। विशिष्ट व्रण और दाह पाकविशिष्ट स्फोटकके द्वारा बालग्रह नौ हैं यथा-स्कद, स्कंदापस्मार, शकुनी, सर्वाडमें पीड़ा, आदि लक्षण होते हैं। रेवती, पूतना, अधपूतना, शीतपूतना, मुखमुण्डिका और रेवतीप्रहसे पीड़ित होने पर मल हरिद्वर्ण, देह अतिशय मैगमेय । इन नौ ग्रहों में कितनी स्त्रियां और पुरुष हैं। पाण्डु वा श्यामवर्ण, ज्वर, मुखपाक, सर्वाङ्ग घेदना (इनकी पतिका विवरण नवग्रह शब्दमें देखो) और सर्वदा नाक और कानों में खुजलाहट आना मावि बालप्रहके आक्रमणका कारण-जिस वंशमें दैवयोग, लक्षण होते हैं। पितृयोग देवता ब्राह्मण व अतिथि सत्कार नहीं होता तथा | पूतनाग्रह पीड़ित के सर्वाङ्ग शिथिल, दिन और रानि-