पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३४५

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बालरोगान्तकरस-पालसन्ध्याम • पर बच्चेको मूत्रका रोध, क्षुधा और पिपासा आदि लक्षण वालवत्स्य (स.पु.) कपोत, कबूतर । होने लगते हैं। उनका पेट गुड़ गुड़ शब्द करने लगता बालवायज ( स० क्ली० ) बालयाचे वैदुर्यप्रभधे देशविशेषे है। इन रोगों के होने पर बालकों को बालरोगाधिकारोक्त जायते जन-उ । वैदूर्य । औषधियोंका सेवन कराना चाहिये। वालवासस् ( स० क्ली०) बालानां लोम्नां बालैनिर्मित (भावप्रकाश बालरोगाधि०) वा वासः। १ केशनिर्मित वस्त्र । २ बालकका वस्त्र। भैषज्यरसावलीके बालरोगाधिकारमें ऐसा लिखा | बालवा ( स०प०) बालाः शिशयो वाया यस्य. एते खलु कस्मिंश्चित् उपस्थिते भये शिशून पृष्ठे निधाय शिशुकी पीड़ा शांत होने तक धात्रीको लङ्घन कराना | पलायन्ते इति प्रसिद्ध तथात्वं । १ वनछाग, जंगली उचित है। बच्चे को उपवासादि नहीं करावे । अचिरजात बकरा। (त्रि.)२ बालकबहनीय, लड़कोंको ढोने शिशु यदि स्तनका पान न करे तो आमलकी, हरीतकी-| लायक । के चूर्णको घी और मधुमें मिला बालकको जिह्वा पर बालविधु ( स० पु० ) अमावस्याके पीछेका नया चन्द्रमा, घर्षण करे। कुट, बच, हरीतकी, ब्राह्मीशाक, धतूरामूल | शुक्लपक्षको द्वितीयाका चन्द्रमा। अत्यन्त अल्प परिमाणमें एकत्र चूर्ण कर घृत और मधुके बालष्यजन ( स० क्ली० ) वालस्य चमरीपुन्छस्य बालेन साथ बालकको चटावे। उसके चटानेसे बालकोंके वर्ण वा निर्मितं ध्यजनं । चामर, च वर । पर्याय-रोमगुच्छ, और कान्तिकी वृद्धि होती है। स्तन्यके अभावमें बच्चों - प्रकीर्णक। २ बालकका ध्यजन, लड़केका पंखा। को गौ या बकरीका दूध देना चाहिये। वह भी स्तन्यके बालव्रत (स० पु०) मञ्जुश्री वा मञ्जुघोषका नामान्तर । समान गुणकारी है। कर्कट, बालचतुर्भद्रिका, धात- बालशास्त्री कागलकर --प्रायश्चित्तप्रयोगके प्रणेता । क्यादि, अश्वग धाघृत, लाक्षादि रस आदि औषधियां बालशास्त्री-बालबोधिनी और वालरञ्जिनी नामक ध्याक- बच्चों के लिये कही गयी हैं। रणके प्रणेता। बालरोगान्तकरस ( स० पु०) बालरोगाधिकारमें औषध- बालशृङ्ग (सत्रि०) नवशृङ्गयुक्त, जिस पशुके सींग विशेष। इसकी प्रस्तुत प्रणाली-पारा और गन्धक निकल रहे हों। प्रत्येक आध तोला, स्वर्णमाक्षिक २ माशा, इनकी अच्छी | बालसखि ( स० पु०) बाल्यबन्धु । कजली बना कर केसरी, भृङ्गराज, निसोथ, मकोय, हुर- बालसन्तोषो-बम्बई प्रदेशके शोलापुर जिलावासी जाति- हुर, शालिञ्च, इनके रसमें भावना दे। पीछे उसमें श्वेत | विशेष । बालक-बालिकाओंको सन्तोष देना और उनकी अपराजिताका मूल २ माशा और मिर्च २ तोला डाल मङ्गलकांक्षा करके दर दर घूमना ही इनकी उपजीविका कर अच्छी तरह घोटे । अनन्तर धूपमें सुस्खा कर सरसों- है। इनका सामाजिक आचार व्यवहार कुणवियों सरोखा के समान गोली बनावे । इसका सेवन करनेसे बालकका | है। किसी गृहस्थके घरमें प्रवेश कर ये लोग बालक- ज्वर और खांसी आदि रोग जाते रहते हैं। बालिकाओं को भविष्यत् शुभाशुभ फल बतला देते हैं। (भैषज्यरत्नाकर) साधारण मराठोंके जैसा ये लोग धर्मकर्म करते हैं। बाललीला (स. स्त्री०) बालकों की क्रीड़ा, लड़कोंके प्रामयाजी ब्राह्मण इनके पुरोहित होते हैं। बालव (सं० पु.) फलित ज्योतिषके अनुसार दूसरा बालसमन्द-पञ्जाबप्रदेशके हिसार जिलान्तर्गत एक समृद्धिशाली प्राम । यहां पहले शाम्भर लवणका विस्तृत करण। इसमें शुभकम करना वर्जित नहीं है। कहते वाणिज्य होता था। राजपूताना-रेलपथके खुलनेसे उस है, कि इस करणमें जिसका जन्म होता है वह बहुत वाणिज्यकी बहुत अवनति हो गई है। कार्यकुशल, अपने परिवारके लोगोंका पालन करनेवाला, कुलशील-सम्पन्न, उदार तथा बलवान होता है। बालसन्ध्याभ (स.पु०) बालसन्ध्या इव आभा यस्य। करण देखो। अरुणवर्ण, लाल रंग। खेल।