पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३६१

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पहाण सास्त वाँसे एक या बहुत सियां प्रहण थे। यबद्वीपमें केदिरि सबसे बड़ा राज्य गिना जाता था करते हैं। वर्णसङ्कर होने पर भी ये ब्राह्मणवर्णमें ही मिनी तथा क्षत्रिय इसमें अधिक नहीं थे। माहिषगण ही (महा- जाती है। किन्तु सम्पसिके अधिकारमें हीनाधिक भाव जन ) राज्य करते थे। जबर रहता है। शूद्राका पुल जो ग्रहण कर सकता है। क्षत्रियों से केवल देवअगुरु और उनका वैमात्रेय उससे अधिक वेश्याका पुन, तथा उससे ज्यादा क्षत्रिया- भाई आर्य डामर तथा अपर छह मनुष्य वालिछोपमें पहिले का, और सबसे ज्यादा साहाणीका पुन दायभागका अधि- आये थे। यवद्वीप देखो। आर्य डामर और अन्य छह कारी है। प्राणों से शूद्राकी सन्तान होना यह निदित लोगोंके वंशधर आचारभष्ट हो वैश्य बन गये थे। केवल है। बदि तीन पीढ़ी ऐसा सबंध होता रहा तो वह शूद्र- देवभगुङ्गको विशुद्ध सदाचारी क्षत्रिय समझ राजा लोग वर्णमें शुमार की जायगी । क्षत्रिय और वैश्यों के अब भी श्रेष्ठसम्मान देते हैं। बदोङ्ग, तबानान, मेंगुइ, लिये भी ऐसा ही नियम है। करङ्ग-असेम आदि स्थानोंके रहनेवाले कितने लोग अपनेको . ब्राह्मणों की सवर्णा खी जैसा सम्मान पाती हैं। अगुङ्गादेवके कुटुम्बी बतलाते हैं, लेकिन पंडित लोग उन शूठा स्त्री उसका शतांश भी नहीं पाती । ऐसा भी देखा को सदाचारी क्षत्रिय नहीं मानते। क्लोङ्ग कोङ्ग, बङ्गली जाता है, कि वे सवर्णा स्त्रोकी मृत्युके बाद भरण-पोषणके और गियान्यरमें अब भी क्षत्रियवंशज राजा करते हैं। लिये जायदाद दे जाते हैं; किन्तु शूद्रको कुछ भी बोलेलेमें पहिले देव अगुङ्गाके वंशका राजा था, नहीं सकते। इस समय इनके कुटुम्बी लोग बदोङ्गमें रहते हैं। ब्राह्मणों के साथ गमन करना ही निम्न जातीय देशक, प्रठेब और पुङ्गकन् नामके कितने ही क्षत्रिय हैं स्त्रियों के लिये गौरव तथा सम्मान है ; किन्तु सवर्णाका जिनका शूद्रस्त्रीके साथ संबंध देखा जाता है। सहगमन एकदम निषिद्ध है । वेभ्य (वैश्य )। सवर्णा स्त्रियोंको वेद, होम, यागयज्ञादिमें पूर्ण अधि. बालिद्वीपमें क्षत्रियोंकी अपेक्षा वैश्यों की संख्या जादा है। होता है। ये स्त्रियांके सती होनेके समय वा दानादि कार्य करङ्ग असेम, बोलेले गुगमेङ्ग इ, तबानान, बदोङ्ग और वेलाका तर्पण आदि कार्य करती हैं या सहायता लम्बक आदि स्थानोमें अब भी वैश्य लोग राजा करते हैं। कर सकती हैं। जैसे ब्राह्मणोंमें पण्डित वा पदण्ड उपाधि तबानान और बदोङ्गके राजगण क्षत्रिय आर्थडामरके वंशज होती है वैसे ही सुशीला ब्राह्मण कन्याओंको 'पदण्ड होनेसे देव अंगुरके प्रभाव द्वारा वैश्य हो गये हैं। उनके स्त्री' या 'पण्डित'की उपाधि मिलती है। ब्राह्मणोंमें तीन ब्राह्मण हैं-शैव बौद्ध, और भुजङ्ग। पूर्वपुरुष धेश्योकी तरह बालोंको बांधते थे, इसलिये शैव शिवके, बौद्ध बुद्धके और भुजङ्ग-ब्राह्मण नागोंके उपा वे वैश्य कहलाये जाते थे। वर्तमानकालमें केशोंके बीच क्षलिय और धैश्यों में कुछ भेद देखनेमें नहीं आता। सक हैं। संख्यामें शैव-ब्रह्मग ज्यादा, भुजङ्ग बहुत ____ दहा और मजपहितके क्षत्रिय वर्त्तमानमें "माहिष" क्षत्रिय। (माहिष्य) वा "कावो", वैश्य "रवङ्ग” “पति” “देमाङ्ग" भारत जैसे विशुद्ध सदाचारी भलियोंका अभाव | और तुमङ्गगुरु नामोंसे प्रसिद्ध हैं। पतिश्रेणीके पूर्व- है वालिद्वीपमें भी वैसे सदाचारी क्षत्रिय नहीं है । जिस पुरुष प्रथमदेव अगुङ्गके मंत्री थे, इसलिये इस वंशके समय भारतसे हिंदुओंने आ कर यवद्वीपमें उपनिवेश की उपनिवेश कोई कोई लोग "मंत्री” कहलाते हैं । आर्यडामर किया था, उस समय बहुत थोड़े क्षलिय मापे थे। "उशन और पति गजमहके वंशधरोंको छोड़ और सभी शूद्र हो माग गये हैं। वष" प्रथसे मालूम होता है, कि कोरिपान, गगलङ्ग, केदिरि और जङ्गला इन चार प्रदेशोंमें क्षत्रियराज्य था। कृषि, पाणिजा और शिल्प वेश्योंकी मुख्य आजीविका "रंगलब' प्रथमें लिखा है, कि यव अथवा केदिर होने पर भी यहांके प्रधान घेश्य इन सब कामोंको की राजसमा क्षलिय और वैश्य जातिके सामन्त रहते घृणित समझते हैं। वे लोग अफीम खाने और कुकर