पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३६२

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३५६ वासिद्वीप युद्धके खर्च चलानेके लिपे कुछ वाणिजा करते हैं। बालिद्वीपके चारों वण ही प्रायः विश्वासी, नम्रप्रकृति, अपर जातिके लोग भी वाणिजा करने लगे हैं। साहसी और कर्मठ हैं। भाषा और साहित्य। शूद्रोको धर्म कर्म करनेमें अधिकार नहीं है। द्विजाति- यवद्वीपसे यहांकी भाषामें बहुत अंतर है। यवद्वोपकी की सेवा करना ही शूद्रका मुख्य धर्म है । अपनी वस्तु पर वर्णमालामें २० अक्षर है, किन बालि आदि पलिनेशिय शूद्रोंका कुछ भी अधिकार नहीं रहता। मुखिया या दीपजकी वर्णमालामें १८ अक्षर देखे जाते हैं। भाषाके राजा जब चाहे तब शूद्रके घरसे प्रत्येक वस्तु ले सक्ता है | पंडितोंने बालिद्वीपके साथ सुन्द, मलय प्रभृति पलिनेशिय उससे शूद्र किसी तरहका निषेध नहीं कर सक्ता। राजा द्वीपपुञ्जकी भाषागत एकता स्थिर की है। सुन्द और किसी देशमें चला जावे तो उस देशके शूद्रोंको राजाके | बालिद्वीपके त, द और ध में विशेष भेद नहीं है। संस्कृत लिये हस, वक कुक्कुटादि खाद्य सामग्री इकट्ठी करनी तालव्यके उच्चारणके अनुकूल इनका व्यवहार होता है। पड़ती है। इस समय राजकर्मचारी अपनी इच्छाके सुन्द और वालिद्वीपकी भाषामें आकारका स्पष्ट उच्चारण अनुकूल शूद्रके घरसे जो चाहे ले सकता है, शूद्र किसी किया जाता है, किंतु यबद्वीपमें 'भ' के स्थानमें 'उ' का सरहकी आपत्ति नहीं कर सक्ता। राजकर्मचारी इच्छानु प्रयोग होता है। इ, और एका विशेष भेद रहने पर भी सार पदों के ऊपर अत्याचार करते थे पर घृद्ध काशीमन्ने इनका उच्चारण कभी कभी अनुनासिक योगसे होता है। यह प्रथा नष्ट कर दी । शूद्रोंकी सभी दशाये बड़ी शोचनीय "भ"के स्थानमें ब तथा कभी कभी अके स्थान का ह। पराकन्, राजभृत्यगण और मुखिया राजकुमारको व्यवहार भी देखा जाता है। इनके अन्त्यस्थ "ब" नहीं तरह आलस्यसे और शूद्रों के धन आदिकी लूटपाटसे होते। अपना जीवन बिताते हैं तथा अफीम खाने और मुर्गे। ___यबद्वीपकी तरह यहांकी भाषा दो प्रकारकी है। उच्च- लड़ानेमें सदा व्यस्त रहते हैं। श्रेणीके लोग परिमार्जित भाषा बोलते हैं। परिमार्जित मण्डिश (मण्डलेश्वर), प्रबकेन और अन्यान्य राजकीय- भाषा ही यहांकी सभ्य भाषा है। अन्य जनधारण जो पद पर शद्र नियुक्त होते हैं। मण्डलेश्वर एक देश भाषा बोलते हैं वह निम्न श्रेणीकी भाषा मानी जाती है। अथवा तहसीलका मालिक होता है। इनके पूर्व पुरुष वर्तमान यवद्वीपके रहनेवाले जिस परिमार्जित और श्रेष्ठ- देव अगुरु के द्वारा शूद्र बनाये गये थे। मजपहितसे जो तर भाषा बोलते हैं, उससे बालिद्वीपके उच्चश्रेणीके लोगोंक समस्त वैश्य बालिद्वीपमें आये थे वे सब भी शूद्रों में भाषा बहुत भिन्न है। यवद्वीपकी निम्नश्रेणीकी भाषाकी शामिल किये जाते हैं। बहुत कथायें बालिद्वीपकी उत्तम भाषासे मिलती जुलती यहांके पतित ब्राह्मण भी बहुत कुछ शूद्राचारी हैं। हैं। किंतु यवदीपको भाषामें मार्जित शब्दोंका प्रयोग सङ्गल नामकी एक श्रेणीके शूद्र हैं, जो स्मृतिपुराण नहीं देखा जाता । यवद्वीपके रहनेवाले सहजमें बालिखोप- को पढ़ते हैं और मन्त्रोंका पाठ करते हैं । इनके पूर्व वंशज की भाषाका अर्थ संग्रह कर सकते हैं, किंतु साफ शुद्ध ब्राह्मण थे। “दले ममुर" वा कालपूजा कर ये लोग वचन नहीं बोल सकते। इन लोगों की निम्न श्रेणीकी ब्राह्मण धर्मसे पतित हो गये हैं। इनके बीच एक भाषामें मलय और सुन्दर द्वोपवासियों की भाषाका मेल प्रवाद यो प्रालित है,- एक प्रसिद्ध पदण्डाको पराक | बहुत रहता है। अथवा परिचारक था । वह गुप्तरूपसे अपने प्रभुका पूजाकर्म ___ यह भाषा यवद्वीप निवासियों के लिये सरल हो गई देखता और वेदपाठ सुनता था। इसी तरह उसने है। यवद्वीपके रहनेवाले और बालि उपनिवेशके स्था. वेद सीख लिया। लेकिन वह शीघ्र ही पकड़ा गया। कोई उपाय न देख उसे पदण्डने शूदपनेसे छडा दिया। पनके पहिले यहांके अधिवासी यही भाषा बोलते थे। तथा उसे और उसके वंशजोंको वैदिककर्म करनेका निम्नश्रेणीकी भाषा यद्यपि रूपान्तरित और परिमार्जित अधिकार दिया। | हो गई है तो भी पलिनेशिय भाषाकी स्मृति जाज-