पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३६५

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हिंदूधर्मका कितना विस्तार था यह स्पष्ट रूपसे जाना। भगवान्, केकयीके गर्म में भरत और सुमिलाके गर्भ में जाता है। किन्तु किस समय भारतीय विद्वान् पुण्य- लक्ष्मणके जम्मका वर्णन है। मुनि पशिष्टमे रामचंद्रजीको मय धर्मशालों को अपने साथ ले कर यव अथवा बालि धमुवेद और शास्त्रोंकी शिक्षा दी थी। राजर्षि विश्वामिन द्वीपमें भाये थे, यह निश्चित नहीं होता । "सूर्यसेवन" राक्षसके उपद्रवसे अपने आश्रमकी रक्षा करनेके लिये नामका एकप्रय है, जिसमें सूर्योपासनाके उपयोगी वेद भगवान रामचंद्रजीको साथ ले गये, उसके बादमें मेल लिखे हुये हैं। सूर्योपासमा हो पुरोहितों का धर्म राक्षस बध, परशुरामका धनुभंग, सीताका विषाह, भरतकी है। पहिले वैदिक भार्य हिंदू सूर्योपासक प्रसिद्ध थे, | राजगही, केकयीकी घर-प्रार्थना; राम, लक्ष्मण और यहां पुरोहित भी उमका अनुकरण करते हैं। वेदको सीताका दंडकवनमें जाना, लक्ष्मण द्वारा सूपर्णखाकी छोड़ ब्रह्माण्ड नामक एक पुराण प्रथ पाया जाता है। नाकका छेदमा, वानरों का क्रोध, सीताहरण, सुप्रीवको इसकी भाषा संस्कृत है तथा श्लोकाकारमै लिखी हुई है। मिलता, हनुमानका लंकामे जाना, सीताका देखना, यह भारतीय १८ पुराणों के अन्तर्गत है। बालिबासो श्रीरामचंदजी द्वारा भेजी गई वानरों की सेमा, उसके शेषनामसे यहां ब्रह्माण्डपुराणका भादर करते हैं । इसको द्वारा लंका पर चढ़ाई, रामचंद्र और सुप्रीवादिका सीता- व्याख्या बालिभाषामें लिखी हुई है। यहांके ब्रह्माण्ड- को लानेके लिये विचार करना, विभीषणका सम्मिलन, पुराणमें सष्टि प्रकरण, विभिन्न मनुओं से प्रजाष्टि, रावणवध, सोताकी अग्निपरीक्षा, पातालमें प्रवेश, राम- जगहणेन, पौराणिक उपाख्यान और प्राचीन राजाआ का , चंद्रका अयोध्याके गजसिंहासन पर सुशोभित होना इतिहास लिखा हुआ है। भगवान् ध्यास इसके रच-। और वृद्ध अवस्था वानप्रस्थ प्रहण करना आदि विषयों- यिता हैं। पुराण शब्दमें ब्रह्माण्डपुराणका विवरण देखो।का वर्णन है। घेदादि धर्मशास्त्रोंमें जिस प्रकार यहाँक पुरोहितों को अपर १७ पुराणों को स्मृति भी ब्राह्मणों का अधिकार है, रामायण औ. पर्वग्रन्थ आदि- नहीं हैं। लोग केवल वासको पुराण और में उसी प्रकार राजाओं को अधिकार है। राजा लोग घेदका तथा पाल्मीकिको रामायणका कर्ता मानते हैं। । काव्य ग्रन्थवर्णित राजचरित्रकी शिक्षा द्वारा अपना पौराणिक काव्य। चरित्र संगठन करते हैं। केवल राजचरित्न नहीं, इन्द्र, यहाँकी रामायण भी बाल्मीकिप्रणीत है। कवि यम, मूर्य, चन्द्र, अनिल, कुवेर, वरुण और अनिके भाषामें लिखी जाने पर भी इसमें संस्कृतके शब्दों का चरित्रसे शामलाभ करते हैं । उत्तरकाण्डमें लव-कुशके अधिकतर प्रयोग देखा जाता है। इसमें भारतीय रामायण वंशके वर्णनके अलावा अन्य भाइयों के वंशका उल्लेख के प्रथम छह कांड २५ स!में लिखे गये हैं। सातवां उत्तरकांड यद्यपि वाल्मीकिका बनाया हुआ है तोभी रामायणके जिस तरह कांड विभाग हैं उसी तरह वह अन्य प्रथ समझा जाता है। इससे अनुमान महाभारत भी अठारह पदोंमें विभक्त हैं। बालिवासी होता है, कि उत्तरकाश छह काण्डके बाद किसी समयमें इस महामथको पर्ष कहते हैं, इसके महाभारत नामको भारतसे लाया गया था। इस उत्तरकाण्डमें विशेषता वे लोग नहीं जानते १८ पर्वके नाम पर जानते हैं। इसमें यही है, कि रामचंद्रको मृत्यु के बाद उनके वंशजोंका | १ लाल श्लोक हैं जिनमेंसे २० हजार श्लोकोंमें कुरुपांडवों- चरित इसमें लिखा गया है। इसको छोड़ यहांकी रामा- के युद्धका वर्णन है। भगवान् व्यास इसके पनानेवाले यणके बालकाण्डमें रामजन्म और पशिष्टस'बाद आदि हैं। इसकी भाषा भी कवितामय है। पर्वो के नाम विषय नहीं है, किन्तु मन्यान्य विषयकी सुपर रचना है। भारतके उपाख्यानसे भिन्न है-१ कपिपर्छ-सुप्रीव, हनु. __उक्त २५ सर्ग रामायणके प्रथम सर्गमें जहां पर मान आदि कपिवंशका इतिहास है। २ केतक अथवा अयोध्या राजा दशरथके घरमें विष्णुको अवतारकथाका सडक नामके पर्वमें कविदासीरचित अभिधान है। प्रसंग माया है वहां पर कौशल्याके गर्भ में रामचंद्रके आपमें | ३ नगस्ति पर्व मनास्ति) प्रकृति स्वतन्न अंध भी है।