पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३६६

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३६० वालिद्वीप मनुप्रणीत मानवधर्मशालके नहीं होने पर भी ये लोग | संक्षेप, २ भुवनकोष, ३ वृहस्पतितत्त्व, ४ सारसमुचय, ५ मेनुको हो ( मनु ) धर्मशास्त्र के प्रणेता मानते हैं। पूर्वाः। तत्त्वज्ञान, ६ कन्दम्पत्, ७ सजोत्क्रांति, ८ तुतुर कामोक्ष धिगम अथवा शिवशासन नामक अन्य भी मनुके बनाये। (कामाख्यातंत्र ?), राजनीति, १० मीतिप्राय वा हैं। इनकी भाषा कविता और श्लोकोंसे शून्य है। नोतिशास्त्र, कामदकनीति, १२ नरनीतीय, १३ रणयह __ साधारण कविसाहित्यके बीच बारत युद्द नामके और १४ तिथिदशगुणित पे कितने प्रथ मुख्य हैं। प्रथका उल्लेख किया जा सक्ता है। किमी समयमें यही पहिले ही धर्मशास्त्र के विषयका उल्लेख किया जा चुका महाभारतका अनुवाद कह कर प्रसिद्ध था; किन्तु महा- है। यहां पर १ भागम, २ अधिगम, ३ देवागम, ४ सार- भारतकी पोथी मिल जानेसे जो भ्रम लोगोंके बीच फैल समुच्चय, ५ दुष्टकालभय, ६ स्वयंभू वा स्वजम्बू, ७ देवपंड रहा था वह मिट गया। भीष्म, द्रोण, कर्ण और शल्य और ८ यासंघ आदि कितने प्रथ मिलते हैं। मेनव-शास्त्र पयको ले कर बारतयुद्द तैयार किया गया है। केदिरि नामका एक स्मृतिथ हैं जिसमें भारतीय धर्म शास्त्रके राज श्रीपादुकावतार जयवयको आज्ञासे हे पुसदने इस अनुसार एक स्मृतिग्रन्थ है। लेकिन इसका प्रचार अधिक प्रथका निर्माण किया था । नहीं है। पूर्वाधिगम नामके स्मृतिशास्त्रको उपक- विवाह म' पुकण्व-प्रणीत कविताका एक अपूर्व | मणिकामें जो कुछ लिखा है यह समस्त उद्धत ज्योंका प्रथ। ५ स्मरदहन- रामायण-प्रणेता कवि राजा कुसुमके त्यों किया गया है ; केवल संस्कृत शब्दका बालि रूपा- पुत्र मपुधर्मज द्वारा रचित ।६ सुमनाशान्तक - रघुवंश न्तर नहीं हुआ है। इस नमूनेसे सब कोई जान सकते विषयक प्रथ। ७ बोम (भौम ) काव्य -जिसमें विष्णुके हैं, कि वहांकी शास्त्रीयभाषामें कितने संस्कृत शब्दोंका औरस और पृथ्वीके गर्भसे भौम दानवकी उत्पत्ति और | मिलाव है:- कृष्णजीके हाथ उसका मरण विषय उल्लिखित हैं। मपु | "अभिज्ञान मंत्र । लिहन् पूर्वाधिगमशासन शास्त्रसारो प्रद्ध बोध नामक बौद्धरचित एक शास्त्र है। ८ अर्जुन चूत पूरिंभ सङ्ग, तलस वृद्धाचार्य राजपुरोहित सर्व विजय-- रावणकार्तवीर्य और अजुनके युद्धका वर्णन गुणज्ञभानुरश्मि-सदश-साजन-हृदय-तमिनहरण-सकला. इसमें है। यह म'पु तन्तुलर बोध नामके बौद्ध द्वारा प्रचूड़ामणि-शिरसि प्रतिष्ठित तकप् सहन पराचार्य शिव- प्रणीत है। कधेः, कनिष्ठ मध्योत्तम न' दन शिव परमादि गुरु महा ___सुतसोम -इसमें केतकपर्व का उपाख्यान लिखा भगवानतङ्ग गेणीर शिर पंगुदारणभस्माङ्गारनीरसकरि गया है। १० हरिवंश महाभारतका परिशिष्ट खंड । अवनङ्ग नीर पणदहन भस्म तकप निङ्ग, सन्तान प्रति- मपुपेनुल बोध नामके एक बौधने इसको कविभाषामें सन्तान सङ्ग भस्मङ्गकुर शिर अतः प्रमाणकेन पगेः लिखा है। पूर्वोक्त कितने प्रथ उल्लेखनीय हैं। निङ्ग रक्षनिङ्ग, शासनाधिगम शास्त्रसारोद्धत रि पर बवद अथवा ऐतिहासिक बीरपंथमें १ केन्हन् प्रोक पङ्ग कु मकवेहन शहन शङ्ग, गुम् गे शिवागम, किमुत सहन केदिरि, मजपहित और बालिराज-वंशके आदि पुरुष सङ्ग. वुह्यङ्ग शिव पिणाक स्थविर रिह नगर शङ्ग, ब्रह्मपुत्र केन्हन्प्रोकसे लेकर अरव्यायिकाका आरंभ किया ( सम्पन्न ? ) कृत्य अंगुनि धेः सङ्ग महारेप रिङ्ग है। २रगलथे-जिसमें केदिरिराज-मंत्री रगगलये नगर लाषण रिङ्ग, प्रदेशतलस करहण सङ्ग, वतिक द्वारा शिवबुद्धकी पराजय और केदिरिराज-वंशका चरित। प्रजीवक वावहारविच्छेद सा, अब नङ्ग, मम गतकेन वर्णित है। ३ उशनयव और ४ उशनवालि -इनमें उक्त विवादनिङ्ग सर्वजनरिङ्ग सभामध्य मुभङ्ग रिङ्ग, प्रदेश न दो द्वीपके राजानोंके वरितका उल्लेख है। ५ पेमेदङ्गः तलु इरनीर, यक्षन सङ्ग, बङ्गा अधिगमशाखसारोक्त इसमें बालिराज्यका वर्तमान इतिहास है। युग पमकिङ्ग. शासनकमनीरटीकाकः।" तुतुर अथवा धर्मविषयक और तान्त्रिक प्रथ असंख्य तस्य वा तुतुरकामोक्ष नामके प्रथमें जन्मसे मृत्यु हैं। वे अधिकांश श्लोकोंमें लिखे गये हैं। उनमें १ भुवन- पर्यन्त करणीय धर्मक्रियामोंका वर्णन है। पदण्डलोग