पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३६९

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बासिद्वीप पश्चाबलिकम नामके उत्सबमें शैव पंडित बौद्ध पुरोहितको देहमें पवित्रताके लिये लगाते हैं। गृहस्थियोंकी पूजा बुला कर उत्सर्ग क्रिया करते हैं । राजा अथवा राजपुत्रों अथवा श्राद्धाविक अत्येष्टि क्रियाओं में ये लोग उप- को अन्त्येष्टि क्रियाके समय शैव पुरोहित शिवपूजाके स्थित हो कर सम्पूर्ण क्रियाओंको विधिवत् कर- भौर बौद्ध पुरोहित बुद्ध पूजाके जलका मृतदेहके मस्तक | वाते हैं। पर सिंचन करते हैं । इसको अलाबा कविप्रथम बौद्ध ___अपने गृहोंमें ये वेद, ब्रह्माण्डपुराण और कविप्रथोंकी और शैवके परस्पर सुहृद्भावों को ले कर अनेक कथायें। आलोचना करते रहते हैं। अपने पुत्रों तथा क्षत्रिय- लिखी गई हैं। | बालकोंको उच्चशिक्षा देते हैं। जो लोग शुभाशुभ उनसे प्राचीन ब्राह्मण धर्म में इन लोगोंको प्रगाढ भक्ति थी, पूछने आते हैं उनको शुभाशुभ ज्योतिषगणनाके अनु तो भी ये लोग शिवोपासक कहे जाते थे। इन लोगों सार बतलाते हैं । ये बालिद्वीपको पञ्जिका या पंचाङ्गको का धर्मशास्त्र दो भागों में विभक्त है, पुरोहितोंको स्वगृह बनाते हैं। यदि कोई नवीन अस्त्रको तैयार करे, तो बिना में गुप्तपूजा और जनसाधारणकी पूजा । मंत्रों के पवित्र किए हुये वह अस्त्र ठीक तरहसे नहीं पैविकयुगके ब्राह्मणोंके सूर्य और अग्नि उपासना- चलता। को तरह ये लोग अपने गृहमें सूर्यकी पूजा करते हैं। जनताको मङ्गल कामनाके लिये ये मन्दिरोंमें पूजा किया इसी सूर्यको ये लोग शिव मानते हैं, क्योंकि शिवके तीन , करते हैं। उस पूजामें सव श्रेणीके लोग आते हैं । गुनुङ्ग नेत्र ही सूर्य के रूपान्तर हैं। अनुङ्ग पर्वतके पादमूलमें बासुकीका मंदिर ही सर्वश्रेष्ठ है। ___ हर एक पंडित प्रति पूर्णिमा और अमावस्याके दिन यहांकी देवमूर्तिका नाम 'सङ्गपूर्णजय' है। इसके सिवाय प्रातःकालमें ६ से ले कर १० घड़ी तक अभुक्त रह घरमें : तवान नके बतुकहु मंदिर में, 'सह जयनिङ्गान्' वदोङ्ग के उलु- सूर्य की उपासना करते हैं। बतु मंदिर में 'देवीदनुर', प्रहमें 'मुङ्ग माणिक कुमारङ्ग,' गिया पंडित लोग तीन दिनके अतिरिक्त कालिवनमें (पलि न्यरके जरुक मंदिरमें 'सङ्गपुत्र जय', क्लोङ्गको गाके गिवलव- नेशिय सप्ताहके ५वें दिन ) देवको भक्तिसे उत्सर्ग मदिरमें 'सङ्गीङ्गजय' और तबानानके पकेन दुङ्गन मंदिर करते हैं। अलिङ्ग, कलिङ्ग आदि उच्च श्रेणीके याजकलोग में 'सङ्ग माणिक कलेव' नामक देव मूर्तियाँ है । महादेवकी प्रतिदिन देव-सेवा करते हैं : किन्तु अमावस्या और पूर्णिमा- समस्त मूर्तियोंके हाथमें तलवार, धनुष और बर्छा आदि को छोड़ अन्य किसी दिन देवपूजाका विशेष उत्सव : अच्छी तरह सजे हैं। इन प्रधान प्रधान मदिरों में राजा नहीं होता । घरके सामने पूर्व दिशामें मुख कर सूर्यको लोग प्रजाको मङ्गल कामनाके लिये पूजा करवाते हैं। पूजाके लिये ये लोग बैठते हैं। नैवेद्य, अक्षत आदि उप- उलुवतुके मदिरमें बालि वर्षके इक्कीसवें दिन और करण, फूल, जल घंटा आदि सभी पूजाको सामिग्री सजित वासुकीके मदिरमें कार्तिककी पूर्णिमाको बड़ा भारी रहती है। विधिपूर्वक वेद मंत्रका उच्चारण करके पूजा साङ्ग महोत्सव होता है। इनके सिवाय और भी बहुतसे करनेसे देवावेश होता है। इस समय भक्तिपूर्वक । प्रधान मदिर हैं जिन्हें सभी मनुष्य भक्तिको निगाहसे नृत्य होता है। वे देहस्थित देवकी फूलोंसे पूजा करते देखते हैं। हैं। पूजा करते समय उन लोगोंके पुत्र पिताके सम्मुख १-सेरङ्गन द्वीपस्थ सकलन मदिरमें सङ्गह्यङ्ग इन्द्र- कुछ समय तक खड़े रहते हैं, बादमें हट जाते हैं। उनके : नामक बनधारी इन्द्रमूर्ति है। नूतन सालके ११ वें दिन प्रसादको राजा आदि सभी ग्रहण करते हैं। वे उसको उस मदिरमें महोत्सव होता है। अमृत के समान मानते हैं। पूजाके समय जिस जलको २-बगलीके जेमपुल मदिरमें भी इन्द्रमूर्सि है। पंडित लोग काममें लाते हैं वह 'तोयतीर्थ' कहा जाता इनके सिवाय जेम्बोना, ३ रम्बोत्सवि, ४ समेतिग और है। यह भी बहुत पवित्र होता है। जनसाधारण इस-! गियान्यरके, ५ किन्तेलगुमि मदिरके देवताका पेशी को पंडित लोगोंसे खरीद कर अपनी देहमें या मृतककी शक्तिकी कथायें प्रचारित हैं।