पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३८२

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पावर-पावली पियड नाम अमीर तैमूर था। बाघरका मातृकुल भी सामान्य भारतमें ५ वर्ष राज्य किया। ५३० ई०की २६वीं दिस- नहीं था। उनकी माता कुतलग खाँ खानम् मुगलि- म्बरको आगरे उनकी मृत्यु हुई। पहले यमुनाके किनारे स्तानके अधिपति मुनाम खाँकी कन्या और प्रसिद्ध रामबाग उद्यानमें उनकी कब्र हुई थी, पर छ: मासके बाद चङ्गज खांके वंशधर महमूद खाँकी बहन थी। वहांसे काबुल उठा कर लाई गई। यहां उनके परपोतेके १४८३ ई०की १५ फरवरी (६ मुहर्रम, ८८८ हिजरी), लड़के शाहजहान्ने एक अच्छी मसजिद् बनवा दी है, को वावरका जन्म हुभा और १४६४ ई०के जून मास जिसे एक बार देखनेसे ही मन आकृष्ट हो जाता है। ( रमजान, ८६E हिजरी )में पिताकी मृत्युके बाद वे फर-। उनको कनके ऊपर 'बहिस्त-रोजीबाद' अर्थात् स्वर्ग हो गन राजसिंहासग पर बैठे। अान नामक स्थानमें उनका भाग्य है, ऐसा लिखा हुआ है। उनको राजधानो थो। । मृत्युके बाद बावरको 'फीसो-मकानी'को उपाधि उन्होंने ग्यारह वर्ष तक तातार और उजवेकोंके साथ दो गई थी। पीछे उनके बड़े लड़के हुमायू राजतन्त नाना स्थानों में धमसान युद्ध किया था। किन्तु आखिर पर बैठे। वावरके तीन पुत्र थे, मिर्जा कामरान, मिर्जा वे अपना राज्य छोड़ कर काबुलको ओर भाग जानेको। अस्करी और मिर्जा हन्दाल। बाध्य हुए थे। जो कुछ हो, थोड़े ही दिनों के बाद उन्हों- फिरिस्ताने लिखा है, कि बावर अतिशय सुरापायी ने काबुल, कंधार और बदाकसान पर अपनी गोटी जमा और रमणीमें मासक्त थे। आमोद प्रमोद करनेके समय ली थी और २२ वर्ष तक वे वहांका शासन करते रहे | वे काबुलके निकटस्थ अपने प्रमोद काननमें एक चहबच्चे थे। अनन्तर उन्होंने भारतवर्ष में कदम बढ़ाया। को शराबसे भर देते थे और युवती रमणियोंके साथ उनके सौभागाका पथ खुल गया। क्रीड़ा करते थे। मुगल और हुमायुन देखो। इस समय पठान अधिपति इब्राहिम हुसेन लोदी बावरची (फा०पु०) भोजन पकानेवाला, रसोइया। दिल्ली पर आधिपता करते थे। उन्होंने एलबल के साथ बावरचीखाना ( फा० पु०) पाकशाला, रसोईघर।। पतकी लड़ाई में पावरका सामना किया। १५२६ ई०की बावरा ( हिं० वि० ) बावला देखो। २०वीं अप्रिलको बावरने उक्त लड़ाई में विजय प्राप्त की बावरी (हिं० वि० ) बावनी देखो। और उसके साथ साथ भारतवर्षमें मुगल-साम्राज्यकी बावल (हिं० पु०) आंधी, अंधड़। प्रतिष्टाका सूत्रपात हुआ। बावला (हिं० वि०) विक्षिप्त, पागल । . बावर केवल वीर हो नहीं थे, विद्वान और विच- बावलापन (हिं० पु०) पागलपन, भक । क्षण भी थे। वे अति सुललित तुर्की-भाषामें मतापूर्ण बावली (हि. खो०) १ चौड़े मुहका कुआ जिसमें पानी आत्मजोवनी लिस्न गये हैं। यह अपूर्व प्रन्थ 'तूजक तक पहुंचनेके लिये सीढ़ियां बनी हों। २ सीढ़ियां लगी बावरी' नामसे तमाम मशहूर भौर सहारणीय है। हुई छोटा गहरा तालाब । ३ हजामतका एक प्रकार । इसमें भकबरके राजत्वकालमें अबदुल रहीम खानखानाने उक्त माथेसे ले कर चोटीके पास तक बाल चार पांच अगुल प्रथका पारसी भाषामें अनुवाद किया। इस प्रन्थमें | चौड़ाई में मूंड़ दिये जाते हैं जिससे सिरके ऊपर बावरको सविस्तार जीवनी और भनेक ऐतिहासिक चूल्हेकासा भाकार बन जाता है। विवरण मिलते हैं।* बावली पिण्ड-पजाब प्रदेश के अन्तर्गत एक स्थान । पह बावरका राजत्वकाल कुल मिला कर ३८ वर्ष होता है नागपर्वतसे पांच मील दक्षिण-पूर्व दो पर्वतके मध्यवती जिनमेंसे उन्होंने अञ्जानमें ११ वर्षे, काबुलमें २२ वर्ष और कन्दराके समीप अवस्थित है। नमरके ध्वंसावशेष परिणत होने पर भी यहां तथा निकटवर्ती बन्दसमें अशोक-

  • Translated into English by leyden and

स्तूप मादि असंख्य बौद्धकीर्तियां देखने में माती हैं। Wm.Erskine, परिव्राजक यूपनलंगने बस स्थानो देखा था। बावती