पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४०४

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३९८ विजौरी-बिल्व शीशेके समान पारदर्शक होता है । २ बहुत स्वच्छ शीशा से पूजा समाप्त करूं। पश्चात् उन्होंने अरसे बायें जिसके भीतर मैल आदि न हो। स्तन छेद कर महादेवके मस्तक पर चढ़ाया। जब वे बिल्लौरी ( हि वि० ) १ बिल्लौरका बना हुआ, बिललौर दाहिना स्तन काटनेको उद्यत हुई तो महादेवने स्वण - पत्थरका । २ विल्लौरके समान स्वच्छ । लिङ्गमेंसे निकल कर कहा, "दूसरा स्तन छेदनेको आष- बिल्व (सं० पु० : बिल-भेदने उल्वादयश्चेति साधुः। श्यकता नहीं । मैं तुम्हारी भक्तिसे बहुत ही प्रसन्न हुआ हूं। फलक्षविशेष, एक प्रकार फलका पेड़, बेलका पेड़। तुम्हारा जो छिन्न स्तन मेरी पूजामें चढ़ाया गया है वह पर्याय-शाण्डिल्य, शैलूष, मालूर, श्रीफल, महाकपिल, पृथिवी पर 'श्रीफल के नामसे पुण्यप्रद वृक्षके रूपमें समु. गोहरीतकी, पूतिवात, अतिमङ्गल्य, महाफल, शल्य, हृदय- त्पन्न होवे । श्रीफल वृक्ष ही तुम्हारी मूर्तिमती भक्ति समझो गंध, शालाटु, कर्कटाह, शैलपत्र, शिवेष्ट, पत्र श्रेष्ठ, विपत्र, गंध- जावे। जब तक सूर्य और चन्द्र रहेंगे, तब तक तुम्हारी पत्र, लक्ष्मोफल, दुरारुह, विशाखपत्र, विशिख, शिवद्र म, : यह कीर्ति रहेगी। यह वृक्ष मेरा अत्यन्त प्रिय होगा। सदाफल, सत्यफल, सुभूतिक, समीरसार । इसके फलके! इस वृक्षके पत्रके बिना मेरी पूजा कभी भी न हो सकेगी" गुण--मधुर, हृद्य, कषाय, गुरु, पित्त, कफ, ज्वर, और यह सुन कर लक्ष्मी अत्यन्त आह्लादित हुई। अतिसार-नाशक । मूलके गुण -- त्रिदोष-नाशक, मधुर, वैशाख मासकी शुक्ला-तृतीयाके दिन बिल्ववृक्षका लघु और वमन-निवारक । इसके कोमल फलके गुण- आविर्भाव हुआ। श्रीफलवृक्षके उत्पन्न होते ही ब्रह्मा, स्निग्ध, गुरु, संग्राहक और दीपन । पके फलके गुण- नारायण, इन्दादि देवगण और देवपत्नियां, सभी वहां मधुर, गुरु, कटु, तिक्त कषाय, उष्ण, संग्राहक और त्रिदोष समागत हुए। तब सबोंने देखा, कि यह वृक्ष स्निग्ध, नाशक । (राजनि.) शिवस्वरूप और अपने तेजसे देदीप्यमान है। यह वृक्ष ___ भावप्रकाशके अनुसार बालविल्वको विल्वकर्कटी लिपत्रो से सुशोभित है। और विल्वपेषिका कहते हैं। यह धारक और कफ, ____ भगवान् विष्णुने कहा, 'इस चुक्षके इक्कीस नाम रखे वायु, आमदोष तथा शूल नाशक है। मतान्तरमें यह जाते हैं-बिल्य, मालूर, श्रीफल, शाण्डिल्य, शैतृष, शिव, धारक, अग्निप्रदोपक, पाचक, कटुकषाय, तिक्तरस, पुण्य, शिवप्रद, देवावास, तीर्थपद, पापघ्न, कोमलच्छद, उण्णवीय, लघु, स्निग्ध तथा वायु और कफनाशक माना जय, विजय, विष्णु, त्रिनयन, वर, धूम्राक्ष, शुक्लवर्ण, संयमी, गया है। पका फल-- गुरु, त्रिदोषजनक, दुष्पाच्य, वाह्य ! और श्राद्धदेवक। इस वृक्षका जड़से ले कर सौ धनु वायु सुगन्धिकर, विदाही, विष्टम्भकारक, मधुररस, और तक स्थान परमतीर्थ-स्वरूप है। इस वृक्षके तीन पत्र मन्दाग्निकारक हैं। फलोंमें सुपक्क फल ही विशिष्ट तोन तीर्थों के समान हैं। ऊद्धव पत्र शिव, वामपन ब्रह्मा गुणदायक है ; परन्तु इसके लिये वह नियम नहीं, इसका और दक्षिणपल साक्षात् विष्णु हैं। विल्ववृक्षकी छाया कच्चा फल ही विशिष्ट गुणदायक होता है। द्राक्षा, विल्व वा पत्रका लङ्कम करना अथवा पैरों से छना निषिद्ध है। और हरितको आदि फलोंमें सूखने पर ही गुणाधिक्य इस वृक्षके लड्डन करनेसे आयु घटती और पैरोंसे छूने- होता है। (भावप्र०) से श्री-हरण होता है। सहन पनों द्वारा पूजा करनेसे बिल्ववृक्षको उत्पत्तिके सम्बन्धमें गृहद्धर्मपुराणमें लिखा जितना फल होता है, उतना ही फल एक विल्वपन द्वारा है, कि कमला प्रतिदिन सहस्र पनों द्वारा महादेवकी पूजा करनेसे प्राप्त होता है। तुलसीपत्रकी तरह विल्व- पूजा करती थी। एक दिन वे हजार पुष्पोंको २३ बार पत्र तोड़ते समय भी मन्त्रोच्चारण करना पड़ता है। गिन कर पूजाके लिये बैठीं, तो क्या देखती हैं, कि २ पद्म "पुण्यवक्ष महाभाग मालूर श्रीफलप्रभो । कमती होते हैं। तब लक्ष्मीने मन ही मन विचार किया, महेशपूजनार्थाय तत्पत्राणि चिनोम्यहं ॥" कि भगवान् विष्णु मेरे स्तनोंको पन कह कर उल्लेख इस मन्त्र द्वारा विल्वपत्न तोड़ कर पोछे निम्न- किया करते हैं, अतः अपने दोनों स्तनोंको काट कर उन्हीं. | लिखित मन्त्रोचारण-पूर्वक वृक्षको प्रणाम करना चाहिये ।