पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४०६

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बिल्वनाथ-बल्विमंगल बिल्वनाथ (स.पु.) एक हटयोगाचार्य। ! वेश्यायें दीपक ले कर आयों और पड़े हुए बिल्वमंगलको बिल्वपत्र ( स० क्लो० ) बिल्वस्थ पत्र । बेल की पत्तियां । उठा कर ले गया । किन्तु देहसे शवकी पूतिगंध निकलती बिल्यपत्रिका ( स. स्त्री०) बिल्वकस्थिता दाक्षायणो देख उन्हें स्नान कराया और प्रकृत कारण पूछा। बिल्व- मूर्तिभेद । मंगल चिन्तामणिके प्रेममें वे होश थे, शरीरको जरा भी बिल्वपान्तर (सं० पु०) नागभेद । सुधि न थी। विल्यपेषिका ( स० स्त्रो.) बिलवस्य पेषिका। शुरुक ____ उस समय वह वेश्या तमोमदमें उन्मत्त इनको जान बिल्वखण्ड, बेलसोंठ। तिरस्कार भरे बचनोंसे कहने लगी, मैं वेश्या नीच अस्पृश्य बिल्वमंगल ठाकुर --दक्षिणमें रहनेवाले एक ब्राह्मण कुमार । और निंदित हूं। तुम ब्राह्मण-पुत्र हो, यह प्रेम मुझे न कृष्णवेण्वानदो तोरवत्तों किसी गांवमें ये रहते थे। वाल्या. कर यदि तुम इस प्रेमके सौ भागोंका एक भाग भी श्री वस्थामें पिताके वियोग हो जानेमे ये अतुल संपत्तिके . कृष्णके चरणकमलमें समर्पण करते: तो निश्चय ही तुम्हें उत्तराधिकारी और लंपट हो गये । इस नदोके दूसरे पार : चौगुणा फल मिलता। में चिन्तामणि नामको एक वेश्या रहती थी। वे दिनरात चिन्तामणिके इस भर्त्सनावाक्यसे बिल्वमंगलके उसमें आसक्त रह कर प्रेम करते थे। वही प्रेम उनको हृदयमें सख्यभाव उपस्थित हुआ, साथ साथ विवेक एक दिन श्रीकृष्णजीके दर्शन कराने ले गया था। और वैराग्य दिखाई दिया। उस रात्रिको कृष्णलीलाके एक दिन किसी प्रकार उस वेश्याको मालूम हुआ, कि गानमें बिताया, प्रभात होते ही वे दूसरी जगह चले गये। कल बिल्वमंगल मृताह तिथिमें पिताका श्राद्ध करेंगे। रास्तेमें सोमगिरि नामक एक साधुके साथ उनका वेश्याने उस दिन उनका नदीपार होना असंगत जान रात्रि साक्षात् हुआ। बिल्वमंगल उनके निकट कृष्णमंत्रमें में नदी पार होनेसे उन्हें निषेध कर दिया । गृहकर्म करने दीक्षित हुये। एक वर्ष गुरु सेवाके बाद प्रेमवैरागो बन पर बिल्वमंगल फिर स्थिर न रह सके, चिन्तामणिकी उन्होंने विशुद्ध प्रेमधन प्राप्त किया । इसके अनन्तर दर्शनलालसामें उद्विग्नचित्त हो आधी रातमें घरसे चल उनको कृष्णदर्शनकी अभिलाषा उत्पन्न हुई। वृन्दावन- दिये। रास्तेमें जाते जाते काली घटायें उठी, उसके साथ गमनके अभिलाषी हो वे मार्ग मार्ग में विचरण करने साथ झझावात, बज्राघात और वृष्टिपात होने लगा । इस लगे । प्रकारके बाधा विघ्नको अतिक्रम कर वे नदी किनारे नाव कुछ दिन बाद एक गांवमें जा कर वे सरोवरतोरस्थ हूँढने के लिये खडे, हो गये। वात्याविताडित जलराशिने एक वृक्षके नीचे बैठ गये और कृष्णके ध्यानमें दिन भोषणाकार धारण किया था। चारों ओर उत्ताल तरङ्ग बिताने लगे। दैवसे एक बनियेकी स्त्री उस सरोवरमें उठ कर नदीको विभीषिकामयी बना रही थी। प्रेमोन्मत्त स्नान करने आयी। बिल्वमंगलकी निगाह उस पड़ी बिल्वमंगल ऐसे अममय भो स्थिर न रह सके और | और पूर्वाभ्यासके वशसे कामावेशमें उनका मम कुछ जलमें कूद पडे । जलमें कभी डूबते. कभी तैरते चले जा चलायमान हुभा। वे उस रूपवती रमणीके पीछे चल थे। अन्तमें काष्ठभमसे उनके हाथ एक गला हुभा मुर्दा दिये। रमणी तो अपने घरमें चलो गई और साधु लगा। उसीके आश्रयसे नदी पार कर वेश्याके घरके बिल्वमङ्गल घरके दरवाजे पर बैठ रहे। बनियेने साधुको सामने बिल्वमंगल उपस्थित हो गये। रात्रि अधिक हो देख नाना मिष्ट वचनोंसे उन्हें सन्तुष्ट किया। साधुने गई थी, द्वार बंद देख कर वे गृह प्रवेशकी चेष्टामें घर उसकी लोके दर्शनकी प्रार्थना उससे की। वैष्णवप्रीति- के चारों ओर घूमने लगे। प्राचीरकी दरारमें सांपको के लिये बनियेने स्वयं घरमें जा उस सुन्दरीको सुन्दर पूंछ लटकती देख उन्होंने उसे रस्सी जान पकड़ लिया। वस्त्र और आभूषणोंसे सजा एकान्तमें साधुके सामने उसोके सहारे वे प्राचोर पर चढ़े और भीतरके आंगनमें उपस्थित कर दिया। उस समय साधुने स्त्रीके रूपको कूद पड़े । कृदनेको शब्द सुनते ही चिन्तामणि आदि नखसे सिर तक निहार चक्षका खूब तिरस्कार किया।