पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४२७

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बुद्धदेव ४२१ पुत्ररूपमें जन्मग्रहण किया । इस कल्पमें उन्होंने कहलाते हैं। गौतम साधारणतः उक्त पारमिताओंका तृष्णाङ्कर बुद्धसे अनियत विवरण (अनिश्चित आश्वास)! अनुष्ठान करते थे। और दीपडूर बुद्धसे नियत विवरण (निश्चित आश्वास) गौतमबुद्धने खदिराङ्गार-जन्म में अपना मस्तक, नेत्र, प्राप्त किया। तृष्णाङ्कर बुद्धने कहा था, कि गौतम काल- मास. सन्तान, स्त्री तथा सर्वम्ब बितरण कर दानपार क्रमसे बुद्धत्व लाभ कर सकते हैं। किन्तु दीपङ्करका मिताका (१) अनुष्ठान किया था। भूमिदत्त जन्ममें उन्होंने कहना था, कि गौतम अवश्य ही बुद्धत्व लाभ करेंगे। : तीन प्रकारको शोलपारमिता ( २ ) सम्पन्न की थी। गौतम सारमन्दकल्पमें यथाक्रम सुरुचि ब्राह्मण, ! छुद्र सुप्त सोममें काञ्चन, मणि, माणिक्य, दास तथा दासी इत्यादिका त्याग कर सन्यामधर्म ग्रहण किया अतुल नागराज, अतिदेव ब्राह्मण तथा सुजात ब्राह्मणके था और इमो जन्म में उनकी निष्कम पारमिता (३) अनु- नामसे परिचित थे । घरकल्पमें वे क्रमशः यक्षसिंह । और संन्यासिरूपमें प्रादुर्भूत तथा मन्दकल्पमें राजचक्र- ष्ठित हुई । शक्त भक जन्ममे वे प्रज्ञा पारमिता (४) तथा वत्तित्वको प्राप्त हुए। बाद असंख्य कल्प तक संसार घोर महजनक जन्ममें वोय पारमिताकी) चरम सीमा पर पहंचे अज्ञानान्धकारमें निमग्न रहा। थे। क्षान्तिवाद जन्ममें उन्होंने मनुष्यके अन्याय तथा निष्ठुर व्यवहारको अम्लान चित्रसे सहा कर शान्ति पार- ___ इस समय गौतम देव, मनुष्य आदि नाना योनियोंमें । मिताका (६) उज्वल दृष्टान्त दिखाया था। महासुन परिभ्रमण करते रहे। 'पञ्चशत पश्चास जातक' नामक सोमजन्ममें बुद्धने मत्यपारमिता (७), तेमिजन्ममें पालिप्रथमें इनके ५.० जन्मोंका विवरण लिखा है। इनमें- दूढ प्रतिज्ञ हो श्रेष्ठ धर्मका अनुष्ठान कर अधिष्ठान पार- से वे ८३ धार संन्यासी, ५८ बार महाराज, ४३ वार वृक्ष- मिता तथा नरजन्ममें श र मित्र, उपकारी और अप. देवता, २६ बार धर्मोपदेशक, २४ बार राजामात्य, २४ । कागे, झाति और अपरिचित प्रभृति मयोंके साथ सम- बार पुरोहित ब्राह्मण, २४ बार युवराज, २३ बार भद्र- ' भाव दिखा कर उन्होंने मैन्त्री (E) पवम् चित्तके अविषम लोक, २२ बार पण्डित, २० बार, इन्द्र, १८ बार मर्कट, द, भाव या उपेक्षा पारमिताका (१०) परिचय दिया था। १३ बार वणिक, १२ बार धनी, १० बार मृग, १० बार। _____ उपयुक्त पारमिताओं में से प्रत्येकका पूर्णरूपसे अनु सिंह, ८ बार हंस, ६ बार हस्ती, १२ बार कुक्कुट, ५ दार ठान करनेके कारण ही वुद्धका नाम 'दणभूमीश्वर' पड़ा। भृत्य, ५ बार सौपर्ण गरुड़, ४ वार अश्व, ४ बार वृक्ष, ३ , ___ कर्मके विचित्र परिणामसे गौतमबुद्धने नाना जन्मग्रहण बार कुम्मकार, ३ बार अन्त्यज जाति, २ वार मत्स्य, २ किया सही, पर ये कभी भी असत कममें प्रवृत्त न हुए। बार हस्तिपक, २ बार इन्दूर, १ बार कुक्कुर, १ वार सर्प तिर्यगयोनिमें जन्म लेकर भी उन्होंने बुद्धोचित कार्यका अनुः चिकित्सक, १ बार सूत्रधार, १ बार कर्मकार, १ बार धान किया था। बुद्धदेवके कई एक जन्म ग्रहणका विषय मेढ़क, १ बार शशक इत्यादिरूपमें पृथिवी पर अवतीर्ण : जो नीचे लिखा गया है, उसे पढनेसे सभी समझ सकते हुए थे। हैं कि बौद्धचरिताख्यायकोंका ऐसा विश्वास था, कि ____ऊपर जो तालिका दी गई है, वह पूरी नहीं है। गौतमबुद्ध पशु आदि योनिमें जन्म ले कर भी सत्य, गौतमबुद्धने असंख्य जन्मग्रहण किया था, जिसका आमूल क्षान्ति इत्यादि धर्मसे विचलित न हुए। वृत्तान्त संग्रह करना नितान्त दुरूह है। उन्होंने एक एक मर्कटजन्म- प्रज्ञापारमिता। जन्ममें एक एक प्रकारके सत्कर्मका अनुष्ठान किया था। एक समय गौतम बन्दर रूपमें जन्म ले कर ८००० किसी जन्ममें दास्य, किसीमें शीलता, किसीमें नैक्रम, बन्दरोंके अधिपति हुए थे। हिमालयके तराई. किसीमें प्रक्षा और समयानुसार वीर्य, क्षान्ति, सत्य, प्रदेशके जंगल में उनका राज्य था। उसके समीप अधिष्ठान, मैत्री और उपेक्षा आदि सदगुणोंकी पराकाष्ठा किसी छोटे गांवमें एक बहुत बड़ा इमलीका पेड़ था। भी दिखाई थी। उल्लिखित दश गुण दश पारमिता: बन्दरोंके इमली खोनेकी इच्छा प्रकट करने पर गौतमने Vil. XV. 106